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रेत से तेल निकलने के हमारे प्रयास।

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भारत पाकिस्तान के बीच वार्ता का स्थगित हो जाना,पाकिस्तान के लिए तो एक झटका है ही, भारत में भी इस निर्णय को ले कर विपक्छ की राजनैतिक पार्टीयाँ भी अपना असंतोष प्रकट कर रही है। जम्मू काश्मीर की विधानसभा में तो वार्ता को फिर से शुरू करने के समर्थन में एक बिल भी पास हो गया है। कुछ लोगो के विचार है कि, भारत पाकिस्तान सीमा पर गोली बारी की भी यही वजह है। इस पृष्भूमि में, ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, कि भा ज प सरकार अपने वार्ता स्थगित करने के निर्णय को वापस ले ले।

हमारी वार्ता पाकिस्तान के साथ वर्षो से चलती आ रही है। दो युद्ध भी हुए, हजारों शहीदों की लाशों पर, जीती गयी पाकिस्तान की जमीन भी हमने शांति व सदभाव की भविष्य की सम्भावनाओं पर उंन्हें वापस कर दी, साथ ही उसके बदले अपनी तमाम भूमि, जो उंन्होने अनधिकृत रूप से कब्जे में कर रखी है, वापस भी नहीं ली। हमने रेलें चलाई ,बसें चलाई, जिसके सार्वजनिक रूप में अच्छे परिणाम भी दिखे। वार्तायें भी पूर्वत चलती रहीं। किन्तु इन तमाम प्रयासों का, कोई भी, या एक भी, सकारात्मक परिणाम हमें आज तक क्या देखने को मिला ?

परिणाम यदि देखने को मिले, तो वह है, आतकंवाद का आतंक, जो दशकों से भारत में बर्बादी फ़ैला रहा है। हमने जब – जब भी वार्ता की शुरुआत की तो वह वार्ता सदा ही सीमा पर गोली बारी के बीच ही हुई। ऐसी ही एक शिखर वार्ता के बाद ही कारगिल युद्ध भी हुआ था । इन तमाम कारकों के बाद भी, हमने अपनी शांति प्रक्रिया को, किसी भी प्रकार का आघात नहीं लगने दिया।

25 अगस्त 2014 को होने वाली सचिव स्तर की वार्ता के पहले, पाकिस्तान ने हमारे देश के अलगाववादियों से वार्ता की, जिसके लिए हमने अपनी असहमति पूर्व में ही व्यक्ति कर दी थी। हमारी चेतावनी को नजर अंदाज कर के, यह वार्ता की गयी। इन परिथितियों में सचिव स्तर की, या फिर किसी भी प्रकार की वार्ता करने का क्या औचित्य है ? इस का सीधा अर्थ है, कि पाकिस्तान को यह पूरा भरोसा था, की उस की किसी भी मनमानी के बाद भी भारत वार्ता रोक नहीं सकता।

पाकिस्तान में, एक “मुख्या सत्ता” का स्वरुप है,जो अपने आप में स्वयेत् एवं सर्वशक्तिमान है। उसका एक मात्र उद्देश्य, भारत में विध्वंसात्मक कार्यवाहियों के अनवरत एवं निर्वाध रूप से संचालन करने का है।दूसरी तरफ लोकतान्त्रिक सरकार के माध्यम से, इस को ढक कर रखना भी एक रणनीत का हिस्सा है। इस प्रकार पाकिस्तान दुनिया के सामने, अपनी एक साफ सुथरी और लोकतान्त्रिक छवि प्रस्तुत करने का सफल प्रयास करना चाहता है। पाकिस्तान की लोकतान्त्रिक सरकार पूरी तरह से इस “मुख्य सत्ता ” के पूरी तरह अधीन है। इस का साक्ष्चात उदाहरण, दुनिया ने इमरान खान के आंदोलन में स्पष्ट रूप में देख लिया। जनता के द्वारा चुनी हुई बहुमत की सरकार,आंदोलन में कितनी निरीह हो गयी। “मुख्या सत्ता ” ने दोनों पक्छों को यह अहसास करा दिया, की उसकी इक्छा के अनादर का कोई भी भयंकर परिणाम हो सकता है। विचारणीय प्रश्न यह भी है, की इमरान खान को, इस समय ही आंदोलन का विचार क्यों कर आया ? नवाज़ शरीफ को, यह किस बात की नसीहत दी गयी है ? इस पृष्ठ भूमि में, हम पाकिस्तान से वार्ता कर कौन सा निष्कर्ष निकाल लेंगे ? किस विषय पर हम पाकिस्तान में “किस” से बात करें ?

भारत पाकिस्तान, वार्ता की आड़ मिल जाने से, पाकिस्तान को भारत में अपनी आतंकवादी गति विधियों को सक्रीय रखने के तमाम सुलभ साधन उपलब्ध हो जाते है। वह इस प्रकार मैत्री पूर्ण माहौल का पूरा – पूरा लाभ अपने आतंकियों को भारत में भेजने व यहाँ के सेकुलर माहौल में घुला – मिला कर छुपा देने के लिए कर लेता है। आतंकियों के पाकिस्तानी होने के सक्छ्या उंन्हें देने पर, वे दिए गए सक्छ्या या तो उन तक पहुंच ही नहीं पाते या फिर वे पर्याप्त ही नहीं होते। अर्थात हम हर हाल में तमाशा बन गए है।

हमारी तटस्था, वार्ता न करने की, हमारे आंतरिक सुरक्छा को अवसर देगी, अधिक समर्थ होने की, साथ ही हम अपनी बाह – सुरक्छा को भी तमाम ओप्चरिकताओ से स्वतंत्र हो कर, इसे और भी परिपक्वता प्रदान कर सकेंगे।

आज के समाचारों में, अलकायदा के जारी किये गए विडिओ सन्देश का जिक्र है। इस प्रकार की संभावनाओं की आशंका को पूर्व में भी व्यक्त किया जा चूका है। अब शायद वह समय आ गया है, जब देश की सुरक्छा एक कुशल एवं समर्थ प्रतिकार के द्वारा ही शायद संभव हो सकेगी। अब समय आ गया है, की आँख मिला कर आगे की बात की जाय ।
— भारत पाकिस्तान के बीच वार्ता का स्थगित हो जाना,पाकिस्तान के लिए तो एक झटका है ही, भारत में भी इस निर्णय को ले कर विपक्छ की राजनैतिक पार्टीयाँ भी अपना असंतोष प्रकट कर रही है। जम्मू काश्मीर की विधानसभा में तो वार्ता को फिर से शुरू करने के समर्थन में एक बिल भी पास हो गया है। कुछ लोगो के विचार है कि, भारत पाकिस्तान सीमा पर गोली बारी की भी यही वजह है। इस पृष्भूमि में, ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, कि भा ज प सरकार अपने वार्ता स्थगित करने के निर्णय को वापस ले ले।

हमारी वार्ता पाकिस्तान के साथ वर्षो से चलती आ रही है। दो युद्ध भी हुए, हजारों शहीदों की लाशों पर, जीती गयी पाकिस्तान की जमीन भी हमने शांति व सदभाव की भविष्य की सम्भावनाओं पर उंन्हें वापस कर दी, साथ ही उसके बदले अपनी तमाम भूमि, जो उंन्होने अनधिकृत रूप से कब्जे में कर रखी है, वापस भी नहीं ली। हमने रेलें चलाई ,बसें चलाई, जिसके सार्वजनिक रूप में अच्छे परिणाम भी दिखे। वार्तायें भी पूर्वत चलती रहीं। किन्तु इन तमाम प्रयासों का, कोई भी, या एक भी, सकारात्मक परिणाम हमें आज तक क्या देखने को मिला ?

परिणाम यदि देखने को मिले, तो वह है, आतकंवाद का आतंक, जो दशकों से भारत में बर्बादी फ़ैला रहा है। हमने जब – जब भी वार्ता की शुरुआत की तो वह वार्ता सदा ही सीमा पर गोली बारी के बीच ही हुई। ऐसी ही एक शिखर वार्ता के बाद ही कारगिल युद्ध भी हुआ था । इन तमाम कारकों के बाद भी, हमने अपनी शांति प्रक्रिया को, किसी भी प्रकार का आघात नहीं लगने दिया।

25 अगस्त 2014 को होने वाली सचिव स्तर की वार्ता के पहले, पाकिस्तान ने हमारे देश के अलगाववादियों से वार्ता की, जिसके लिए हमने अपनी असहमति पूर्व में ही व्यक्ति कर दी थी। हमारी चेतावनी को नजर अंदाज कर के, यह वार्ता की गयी। इन परिथितियों में सचिव स्तर की, या फिर किसी भी प्रकार की वार्ता करने का क्या औचित्य है ? इस का सीधा अर्थ है, कि पाकिस्तान को यह पूरा भरोसा था, की उस की किसी भी मनमानी के बाद भी भारत वार्ता रोक नहीं सकता।

पाकिस्तान में, एक “मुख्या सत्ता” का स्वरुप है,जो अपने आप में स्वयेत् एवं सर्वशक्तिमान है। उसका एक मात्र उद्देश्य, भारत में विध्वंसात्मक कार्यवाहियों के अनवरत एवं निर्वाध रूप से संचालन करने का है।दूसरी तरफ लोकतान्त्रिक सरकार के माध्यम से, इस को ढक कर रखना भी एक रणनीत का हिस्सा है। इस प्रकार पाकिस्तान दुनिया के सामने, अपनी एक साफ सुथरी और लोकतान्त्रिक छवि प्रस्तुत करने का सफल प्रयास करना चाहता है। पाकिस्तान की लोकतान्त्रिक सरकार पूरी तरह से इस “मुख्य सत्ता ” के पूरी तरह अधीन है। इस का साक्ष्चात उदाहरण, दुनिया ने इमरान खान के आंदोलन में स्पष्ट रूप में देख लिया। जनता के द्वारा चुनी हुई बहुमत की सरकार,आंदोलन में कितनी निरीह हो गयी। “मुख्या सत्ता ” ने दोनों पक्छों को यह अहसास करा दिया, की उसकी इक्छा के अनादर का कोई भी भयंकर परिणाम हो सकता है। विचारणीय प्रश्न यह भी है, की इमरान खान को, इस समय ही आंदोलन का विचार क्यों कर आया ? नवाज़ शरीफ को, यह किस बात की नसीहत दी गयी है ? इस पृष्ठ भूमि में, हम पाकिस्तान से वार्ता कर कौन सा निष्कर्ष निकाल लेंगे ? किस विषय पर हम पाकिस्तान में “किस” से बात करें ?

भारत पाकिस्तान, वार्ता की आड़ मिल जाने से, पाकिस्तान को भारत में अपनी आतंकवादी गति विधियों को सक्रीय रखने के तमाम सुलभ साधन उपलब्ध हो जाते है। वह इस प्रकार मैत्री पूर्ण माहौल का पूरा – पूरा लाभ अपने आतंकियों को भारत में भेजने व यहाँ के सेकुलर माहौल में घुला – मिला कर छुपा देने के लिए कर लेता है। आतंकियों के पाकिस्तानी होने के सक्छ्या उंन्हें देने पर, वे दिए गए सक्छ्या या तो उन तक पहुंच ही नहीं पाते या फिर वे पर्याप्त ही नहीं होते। अर्थात हम हर हाल में तमाशा बन गए है।

हमारी तटस्था, वार्ता न करने की, हमारे आंतरिक सुरक्छा को अवसर देगी, अधिक समर्थ होने की, साथ ही हम अपनी बाह – सुरक्छा को भी तमाम ओप्चरिकताओ से स्वतंत्र हो कर, इसे और भी परिपक्वता प्रदान कर सकेंगे।

आज के समाचारों में, अलकायदा के जारी किये गए विडिओ सन्देश का जिक्र है। इस प्रकार की संभावनाओं की आशंका को पूर्व में भी व्यक्त किया जा चूका है। अब शायद वह समय आ गया है, जब देश की सुरक्छा एक कुशल एवं समर्थ प्रतिकार के द्वारा ही शायद संभव हो सकेगी। अब समय आ गया है, की आँख मिला कर आगे की बात की जाय ।

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