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संविधान निर्माता डा0अम्बेडकर की जयंती महोत्सव की अवधि में सभी राजदलों में उनके प्रति सम्मान अर्पित करने की होड़ मची है,लेकिन स्मरण रहे पुरातन आस्था और विश्वास के साथ उनके दर्शन को नहीं समझा जा सकता।यदि महात्मा बुद्ध के दर्शन को स्वीकार करने का साहस हो,तभी आधुनिक युगीन महान चिंतक और क्रांतिकारी प्रबुद्ध डा0अम्बेडकर के प्रति मन से सम्मान व्यक्त कर सकेंगे।मात्र माल्यार्पण कर वोटबैंक के लिये भाषण बाजी कर उनका सम्मान नहीं हो सकता,अपितु धर्म,समाज-राजनीति, न्याय-कानून के प्रति उनके विचार-दर्शन की स्वीकृति ही नहीं,देश में उनके अनुरूप व्यवस्था की साकार अभिव्यक्ति से ही ये संभव है।देश में दलित-शोषित ही नहीं बल्कि नारी उत्थान के लिए उनके अथक प्रयास स्मरणीय रहेंगे।
डाक्टर आंबेडकर के नाम पर आजादी उपरान्त से ही कोरी राजनीति होती रही है। उनके अनुयायियों के वोट हथियाने के लिए उनकी मूर्तियों पर माल्यार्पण के भोंडे नाटक किये जाते रहे हैं। आंकड़े बताते हैं दलित-शोषितों के प्रति सामाजिक भेदभाव में रत्ती भर की कमी नहीं आयी है उत्तरोत्तर उनके विरुद्ध अन्याय अत्याचार की घटनाएं बढ़ती ही गयी हैं।उनके नाम पर नौटंकी बंद होनी चाहिए।
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