यदि लोगों में आमचर्चा है कि गोरे अंग्रेज देश से गये तो काले अंग्रेज शासक बन बैठे और कुछ नहीं बदला, तो उचित ही है, क्योंकि व्यवस्था और उसके तौर-तरीके वही हैं. उच्च, सभ्रांत नागरिक सर्व शक्तिमान है और निम्न-निर्धन, वंचित की आवाज कोई सुनने वाला नहीं. निश्चित ही ये शहीदों के सपनों का भारत नहीं है.
अभी संसद में फाईनेंस बिल पारित हुआ. अब राजदलों को विदेशों से मिलने वाले चंदे की जांच नहीं होगी. एनपीए वाले हजारों करोड़ के कर्जदार, डिफाल्टर पूंजीपतियों और उनके गारंटर से वसूली नहीं होगी. मंदिरों में जमा भक्तों के द्वारा चड़ाए गये लाखों-करोड़ों का कोई हिसाब किताब नहीं होगा न ही इस धन का उपयोग देश के विकास में किया जायेगा.
सांसद-विधायक आयकर के दायरे से बाहर रहेंगे. इनको एक बार चुने जाने पर आजीवन पेंशन मिलेगी. जनप्रतिधियो के निर्वाचन के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं होगी ।
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