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पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर कैंसर से जूझ रहे हैं । सोशल मीडिया पर उनका संदेश वायरल हो रहा है,इसकी वास्तविकता जो भी हो, किन्तु संदेश बहुत मार्मिक है :_
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“मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के अनेक शिखरों को छुआ।दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे।फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ।आखिर क्यो? जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा ,आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है ।साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं ।अब ध्यान में आ रहा है कि भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। वो शायद रिश्ते नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना भी जरूरी है। “
किन्तु यदि उनके इस संदेश को देखें तो लगेगा कि मृत्यु के निकट खड़े किसी भी व्यक्ति को संसार की निरर्थकता का अहसास होता ही है ,धन पद प्रतिष्ठा का अहंकार मिट्टी हो जाता है,फिर भी ऐसा क्यों है कि संसार में रहते हुए व्यक्ति इन्ही व्यर्थ चेष्टाओं में संलग्न रहता है?जबकि यहां बडे बडे सिकंदर अंत में खाली हाथ निराश- हताश दुनिया छोड़ गये हैं।परिवार समाज राजनीति में अहंकारवश इसी भागमभाग ,घृणा-विद्वेष हिंसा प्रतिस्पर्धा में कब जीवन के बहुमूल्य पल बीत जाते हैं ,पता ही नहीं चलता और यमदूत द्वार पर आ खड़े होते हैं।
यद्यपि इसी संसार में कुछ बिरले व्यक्ति भी होते हैं ,जिन्हे हम अवतार संत फकीर कहते है ,जो उद्घोष करते हैं – बूढ़े थे परि उबरे ,गुरु की लहर चमंकि .बेड़ा देखा जर्जरा ,उतर पडे फरंकि (कबीर)
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