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राजनीति के नरेश!

aaina
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संभवत: किसी भी राजदल के पास न कोई विचार बचा है, न नीति-आदर्श का बोध। राजनीति में सब के सब नरेश हैं। राजनीति सत्ता-पावर-पैसा हथियाने का शार्टकट है। माननीया जया बच्चन जी के लिए एक नेता की अभद्र टिप्पणी पर हायतौबा चल रहा है। कुछ अनहोनी हुई है क्या? हर रोज किसी न किसी नेता या सामाजिक- धार्मिक संगठन के लोगों की जुबान गंदगी उगलती है। घृणा-विद्वेष या चरित्र हनन भरे आरोप -प्रत्यारोप का दौर है।

 

 

जिन लोगों से उम्मीद है कि उन्नत, सभ्य समाज के निर्माण के लिये आचरण व्यवहार के उदाहरण प्रस्तुत करें, वे गणमान्य ही ओछे लोग हैं। यही चरित्र-आचरण आपाधापी के अराजक व्यवहार के परिदृश्य सड़क पर भी आयेदिन प्रतिबिंबित हो रहे हैं। ताज्जुब तब होता है, जब हमारा देश धर्म अध्यात्म दर्शन के स्वयम्भू राष्ट्र का ढोल पीटता रहता है। आए दिन के राजनैतिक छल प्रपंच ,आरोप -प्रत्यारोप की निकृष्ट भाषा बोली -व्यवहार आचरण के समाचार मन खट्टा कर देते हैं?

 

70-80 के दशक से क्रमश: चहुंओर चारित्रिक पतन होता चला गया है, जो अब हर वर्ग चेतना का स्थायी भाव बन गया है, आमजन ने भी स्वीकार कर लिया है कि देश में सब चलता है और यही है देश की चाल चरित्र और चेहरा। अध्यात्म दर्शन संस्कृति की राग रागनियों के स्वर स्वार्थ के जंगल में सूखे पत्तों की तरह चरमरा रहे हैं।

 

नहीं, ये हमारे महान भारत वर्ष का तेजस चेहरा नहीं है, भाषा संस्कृति भी नहीं। देश की गिरती हुई चारित्रिक विकास दर की चिंता हर एक नागरिक को करनी चाहिये। जब राजनीति बाजार में तब्दील होती जा रही है, तो देश के सामाजिक संगठनों को जागृत और सचेत हो जाना चाहिए, ताकि देश का गौरव बना रहे। अन्यथा बाजारू राजनीति के कुटिल खिलाड़ी देश की संस्कृति को नष्ट भ्रस्ट करने पर आमादा हैं।

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