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ईश्वर कहां नहीं है?

aaina
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फिलीपींस के राष्ट्रपति चर्चा में है,अभी उन्होने कहा कोई ईश्वर नहीं है और यदि कोई ईसाई ईश्वर के होने का सबूत दे तो वे तुरंत स्तीफा दे देंगे,उन्होने कैथोलिक चर्च में पैसे चढ़ाये जाने की आलोचना की है ।
ये सनसनीखेज वक्तव्य किसी ऐरेगैरे नत्थूगैरे का नहीं वरन फिलीपींस के राष्ट्रपति ने दिया है,जिसकी कल्पना मुस्लिम अथवा हमारे जैसे देश में नहीं की जा सकती।फिलीपींस के राष्ट्रपति ने आगे कहा कि यदि ईश्वर है तो प्रमाणित करो अथवा ईश्वर के साथ सैल्फी लेकर दिखाओ मैं तभी मानुंगा और स्तीफा दे दुंगा।

बात तो सही है,नास्तिक ऐसे ही बात करेंगे,यही प्रश्न उठायेंगे।ईश्वर होने का सबूत दो।
आस्था अंधभक्ति पर आधारित है,उसे कोई एक चेहरा-मोहरा बंसी या धनुष उठाये कोई व्यक्ति रुपी भगवान की आकांक्षा है।पुराण शास्त्र गीता रामायण कुरान या बाईबिल में वर्णित ईश्वर ही सर्वेश्वर है,ऐसा-ऐसा ही है ,इससे पृथक कल्पना ही नहीं की गई।

लेकिन निरे नास्तिक लोगों को प्यासे भूखे और कैद मे रहे व्यक्ति को देखना चाहिए,जिसके लिये जल ,वायु ,अन्न ईश्वर से कम नहीं है,सूर्य को देखना चाहिए जो समस्त प्रकृति का पोषण कर रहा है,इसीलिए सूर्य चंद्र जल,वायु और वृक्ष तक को देव-ईश्वर कहा गया है।भूखे आदमी को रोटी में भगवान दिखाई देता है तो कैद व्यक्ति के लिए सांस के लिए हवा मात्र ईश्वरीय प्रसाद हैं।सोचो बिना सूरज के जीवन की कल्पना संभव है?इसी तरह चांद सितारे सब ग्रह,पेड पौधे,समूची प्रकृति हमारा जैविक जगत हैं।जो प्रति पल हमें प्राण दान दे रहे हैं।प्रकृति के विभिन्न स्रोत देवता की तरह प्राणिमात्र का पालन-पोषण कर रहे हैं।ईश्वर प्रकृति-जगत का संयुक्त संयोजन है,एक ईश्वरीय व्यवस्था है।अनंत की प्रतिमा नहीं बन सकती,इसीलिए सहूलियत के लिए किसी कृष्ण राम बुद्ध महावीर या यीशु की उपासना का चलन हुआ ।
नास्तिक खुली आन्ख से प्रकृति के अनंत विस्तार को देखना शुरू करेगा तो निश्चित ही उसे आंतरिक दृष्टि होगी कि ईश्वर सर्वत्र विराजित है।
सूर्य चांद सितारों को देखो
कलकल बहती नदी में उठती गिरती लहर
पहाड़ी से गिरते झरनों के स्वर सुनो
सुनो पछियों का कलरव संगीत
हर सुबह कली फिर रंगबिरंगे फूल और
उन पर आसक्त तितली भंवरे को देखो
सावन में घिर आये काले मेघ और कड़कती बिजलियाँ
जंगल में नाचते मोर को देखो
और सुनो समंदर के सन्नाटे को
कबीर कहते हैं -*लाली मेरे लाल की जित देखूं उत लाल,लाली खोजन मैं चली मैं भी हो गई लाल*
भारत ही नहीं विश्व में अनेकानेक धर्म-संप्रदाय हैं और उनकी पृथक पृथक आस्था है,किंतु स्मरण रहे ईश्वर के साछात अनुभव के लिए अर्जुन जैसा संदेह से भरा हुआ चित होना जरूरी है और प्रश्न भी,क्योंकि ऐसे प्रश्न सामान्य नहीं हैं,अपूर्व हैं।कृष्ण अर्जुन संवाद के अंत में अर्जुन ने कहा है हाँ अब मुझे स्मृति प्राप्त हुई है.
कबिरा ये घर प्रेम का खाला का घर नाहीं,सीस उतारै हाथ धरि सो बैठे घर माहिं☆
अतीत -शास्त्र-पुराण की मान्यता अथवा रटंत विद्या से रहित कोरी आंखे खोलो इस प्रकृति के अनंत विस्तार से आंख मिलाकर देखो और बताओ ईश्वर कहां नहीं है ?
‘जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर या फिर वो जगह बता जहां खुदा न हो’

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