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एक कलेण्डर की मौत!

aaina
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विदा अलविदा ! जा रहे हो, रुक नही सकते, अब तुमको जाना ही है इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के लिए ।सबको जाना है, किसी का खून्टा नहीं गढ़ा है यहाँ , सुर नर मुनि सबको जाना है फिर तुम किस खेत की मूली हो । लेकिन सुना पड़ा है शास्त्र किताबों में लिखा है मृत्यु कहीं नहीं है,वस्त्र बदलने जैसा है नये वस्त्र । लेकिन ये अनुभव की बात नहीं है ,भरोसे में न रहना । तुम तो इसी को सत्य जानना कि अब तुम्हारा अंत आ गया. मृत्यु ।तुम्हारा इस रंगरूप में पुनर्जन्म असंभव है । बीते हर पल छिन और दिन के सुख-दुख पीड़ा के किस्से तुम्हारे नाम दर्ज हुए हैं , इस लेखे जोखे का जिम्मा निश्चित ही तुम्हारा नहीं है ,बस तुम्हारे मत्थे मढ़ दिये गये।

कुछ आदमी जैसे दिखने वाले गुन्डे मवाली धर्मान्ध और नेताओं ने अपने गंदे हाथ तुम्हारे पन्नों से पौन्छ दिए हैं। तुम किसी के दुख दर्द आन्सुओ के लिए जिम्मेदार नहीं हो।कोई पछतावा न करना ,अपने मन पर कोई बोझ लेकर न जाना ।प्राकृतिक आपदा के कहर की तबाही की बात क्या करें, क्रूरअमानवीय व्यवस्था जनित हजारों किसानों की आत्महत्या, बिना दवा के कारण काल के गाल मे समा गए नागरिक अथवा कुपोषण के शिकार मृत बच्चों का शोक न करना ,उन निरीह नागरिकों की हत्याओं के लिये भी नहीं , जिन्हे धर्म के नाम पर पीट पीट कर मार दिया गया ।तुम्हारे पन्नों पर उनके खून के छींटे जरुर है ,जो आने वाली पीढ़ी को बतायेगे बर्बर अमानुष व्यवस्था और राजनीति की कहानियां ।लेकिन तुम्हारा क्या दोष ? तुम तो मात्र साछी रहे हो।

बस हमारे लिए दुआ करना ।परस्पर प्यार मुहब्बत भाईचारा सुख शांति समृद्धि बनी रहे ! सत्रह विदा -अलविदा !! नये और ताजा होकर लौटना एक नये कलैण्डर के रंगबिरंगे पन्नो के साथ –

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