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ये ससुर गब्बर काहे पूछता रहता है कब है होली?होली से इसका कोई न कोई कनेक्शन जरुर है,या पगला गया है लगता है ।इ तो वैसे भी हर दिन खून की होली खेलता रहता है ,इसको लाशों को देखकर मजा आता है ,ये कमजोर असहाय गिडगिडाते लोग को देखकर हंसता है ठहाके लगाता है और ताज्जुब तब होता है जब गब्बर के साथ उसके संगी-साथी भी जोर का हंसते है ठहाके लगाते हैं, उचित अनुचित को दरकिनार कर उसकी हां में हां मिलाते हैं । कमाल हैं गब्बर ,न बच्चा देखे न बूढा उसके शोषण दुख दर्द में पता नहीं काहे का मजा लेता है?जरुर पैशाचिक योनि से आया है । देखो कैसे दूसरों की तकलीफ पर खींसे निपोरता है ,जैसे जंगली जानवर खून से सने होंठो पर जीभ फिराता है।
धर्म जात नस्ल के आधार पर घृणा या सत्ता पर वर्चस्व के लिए शोषण- दमन -हिंसा ,ये गब्बर की वृत्ति है ,ऐसे नरपिशाच विश्व में हर जगह हैं ,हर देश में । -आज चचे फिर सरक गये हैं ,जब भी इन्हे गब्बर की याद आती है और होली पर तो गब्बर की याद आ ही जाती है तो एकदम तेज जोर का गुस्सा करने लगते हैं ।लेकिन ये भी गलत बात हैं न कि होली जैसे त्योहार पर भी मंदिर मस्जिद जैसे आदिम झगड़े झंझट ,गरीब गुरबा पर हिंसा अत्याचार और राजनीति में शकुनि के कुटिल पांसे छल प्रपंच के समाचार ? और तो और सीरिया में जो खून की होली चल रही है उसके फोटो देखकर तो चचे क्या कोई भी इंसान दुखी हो सकता है। अब इसी बात पर चचे चिंघाड़ रहे हैं ।उन्हें हर तरफ गब्बर ही गब्बर दिखाई दे रहे हैं , देश में परदेस में।उसके सवाल डरा रहे है वो पूछता फिर रहा है -कब है होली ?
– अरे चचे मैं तो होली मिलने आया था ,आप भी न -वही बात शहर के अंदेशे ! छोडिये न इन आततायियों की बातें,आज तो हैप्पी होली ! अच्छी दुनिया अच्छे लोग के लिए दुआ कीजिए ।शोषित किसान मजदूर के जीवन में रंगबिरंगे फूल खिलें ।चहुँओर सुख आनंद वैभव बरसे रंग बरसे -मन हरषे !
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