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सत्तापछ के महासचिव का कथन और आव्हान है की देश में भास्टाचार समाप्त करने के
लिए ऐसे न्यायिक केसों का निपटारा अधिकतम ६ माह में होना चाहिए . राजनैतिक तंत्र
में परिवर्तन होना चाहिए और युवाओं की राजनीति में भागीदारी होनी चाहिए .
समझ नहीं आ रहा है की यह दार्शनिक अभिव्यक्ति है अथवा देश की व्यवस्था में
आमूलचूल परिवर्तन का संकल्प . महासचिव को ये परामर्श अपनी केन्द्रीय सरकार को
देना चाहिए की ६ माह में भ्रष्टाचार के न्यायिक केसों में निर्णय हेतु संसद में बिल पेश करें .
जहां तक राजनैतिक तंत्र-व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन का विषय है तो
महासचिव ने जेबों में क्या मसौदा छिपा रखा है ,देश- संसद के समछ पेश करें और उसे
क्रियान्वित कराये …अब तक किसने रोका है ? भाषणों में श्रोताओं की अनुमति का क्या
तात्पर्य है ?
अब बात युवाओं की राजनीति में भागीदारी की …संभवत महासचिव महोदय
ज़मीनी सच्चाई से वाकिफ नहीं है की विधायक और सांसदों के chunaav में करोणों-
करोणों धनराशी की व्यवस्था आवश्यक है -साथ ही ६ पेक वाले हो -हल्ला करने वाले लोंडो
की ज़मात होनी चाहिए ,जिनके पास अवैध या वैध हथियार भी हो . ..और फिर जो युवा
रोज़ी-रोटी की समस्या से जूझ रहे है वो क्या ख़ाक राजनीति करेंगे ? इस दिशा में
महासचिव क्या सोचते है ?
दरअसल राजनीति तो राजे-रजवाडो और उनके खान्दानियो की विरासत है –
जिन्हें न रोटी की चिंता है ना रोज़गार की और ना ही बहन-बेटियों के विवाह की .
युवाओं के लिए विवशता है तो
प्राथमिकता भी है . दरअसल सर्वप्रथम चुनाव प्रक्रिया में सुधार किये जाने की अपेछा है
ताकि योग्य , ईमानदार,समाज सेवा का संकल्प लिए प्रत्याशी विधान सभा और संसद
तक पहुँच संके .
”
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