उन्नाव और जम्मू के कठुआ में बालिकाऔ के साथ हुए बलात्कार की दुर्दांत घटनाओं ने देश को निर्भया काण्ड के बाद एकबार फिर झकझोर दिया है तो विदेशी मीडिया द्वारा भी देश के हालात पर गंभीर टिप्पणियां की गई हैं ।
अभी महिला सांसद और प्रख्यात फिल्मी कोरियोग्राफर ने राजनीति और फिल्मों में भी यौन शोषण के आरोप लगाये हैं,तो क्या सदा से नारियों का सम्मान दांव पर रहा है।देश में प्रतिदिन हो रहे नारियों पर अत्याचार विशेषकर बलात्कार की घटनाएं निश्चित ही चिंतित करने वाली हैं।यह भी कटु सत्य है कि राजदल इन अप्रिय घटनाओं पर अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार राजनीति भले ही कर लें लेकिन वे सही मायने में गंभीर नहीं हैं,अन्यथा संसद में कब से लटके हुए महिला आरछण बिल पर कब की मुहर लग गयी होती।जहाँ तक बलात्कार की दुर्दांत घटनाओं का प्रश्न है तो यह सामजिक समस्या है,जिस पर चिंतन होना चाहिए।यद्यपि कई मामलों में जातीय अथवा सांप्रदायिक विद्वेष से प्रेरित होकर दुष्कर्म किया जाता है,इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
इन बेशर्म घटनाओं पर ऐसे बयान कतई स्वीकार नहीं किये जा सकते कि ये घटनाएं हमेशा से होती रहीं है,यद्यपि पुरुष और अभिजात्य प्रधान इतिहास पुराण की कहानियों में दलित-निर्धन ही नहीं,नारी की दशा बहुत अच्छी कभी नहीं रही है,जहां इंद्र के षडयंत्र की शिकार अहिल्या पत्थर हो जाती है,जानकी का अपहरण कांड, श्री राम द्वारा गर्भवती जानकी का परित्याग और उनको जंगल में भेजना फिर अग्निपरीछा और अंत में जानकी के धरती मे समा जाने के किस्से अथवा द्वापर युग में भरी राजसभा में द्रोपदी का चीरहरण जैसी निकृष्ट कहानियां और किस्सों पर कैसे गर्व किया जा सकता है?
यद्यपि भगवती दुर्गा और देवियों की मूर्तियों की पूजा-अर्चना भी आजतक होती रही है।वर्तमान देशकाल में भी निरंतर नारियों के प्रति अन्याय दुराचार के मामले सामने आ रहे हैं तो इस तथ्य की पुष्टि होती है कि हमने सभ्यता-संस्कृति के स्तर पर कोई विकास नहीं किया।वहीं धर्म के नाम पर पाखंड,जादू-टोना,हिंसा व्यभिचार,वैमनस्य के मामले बढ़ते जा रहे हैं।बड़े बड़े नामचीन साधु-संत ऐसे आरोप में जेल में हैं। करोड़ों अंधभक्तों के आराध्य गुरु आसाराम को भी घृणित बलात्कार के अपराध में आखिरकार आजीवन कारावास का दंड मिल ही गया। ईश्वर प्रदत्त विवेक शक्ति का प्रयोग कर आधुनिक युग के लिए सर्व जन हिताय विग्यान सम्मत मानवीय धर्म संचालित समाज और राजनीतिक व्यवस्था की परम आवश्यकता है।किंतु यह तभी संभव होगा जब हम पाषाण और तीरकमान युग के पौराणिक समस्त पूर्वाग्रह,अंधविश्वास और पाखंड से मुक्त होकर विचार करने का साहस जुटा सकेंगे।जो धर्म मात्र मानव ही नहीं समस्त प्राणिमात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सक,जहां मानव मानव में सम्प्रदाय,लिंग,वर्ण आधारित कोई भेदभाव न हो,ऐसे नवधर्म की संस्थापना होनी चाहिए। देश को भारतमाता की तरह पूजने वाले समाज में नारियों के सम्मान की रछा होनी चाहिए। मनसा वाचा कर्मणा “वन्दे मातरम्” कहिये।साथ ही बलात्कारी को कठोर दंड ही नहीं राष्ट्रद्रोह का अपराधी घोषित कीजिये।
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