मैं गीत नहीं गाता हूँ –श्रृद्धांजलि !
कभी संसद में नेहरूजी की नीतियों की सारगर्भित आलोचना करने वाले अटलजी के ओजस्वी चरित्र, कुशाग्र बुद्धि-कौशल, हास्य व्यंग से परिपूर्ण भाषा शैली से उनके विरोधी ही नही,अपितु राजनीति की समझ रखने वालों से लेकर आमजन तक उनके प्रशंसक हैं।अपने प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान किये कई चौंकाने वाले फैसलों से अटलजी एकाएक वैश्विक स्तर पर चर्चित और प्रसिद्ध हुए ।
उन्होंने स्वंय सेवक के रुप में अपना कैरियर शुरू किया तो स्वाभाविक रुप से आजीवन कांग्रेस के प्रखर विरोधी रहे और अपनी राजनीतिक समझ का विवेकपूर्ण उपयोग कर समय समय पर सत्ताधारियों पर जम कर प्रहार करते रहे।उनकी वाक्पटुता और हास्य व्यंग्य के चुटीले प्रहार से अक्सर सत्ताधारी बगलें झांकने पर विवश दीखते थे ,तो संसद ठहाकों से गूंज उठती थी ।लेकिन कभी नेहरुजी के विरोधी रहे अटलजी उनकी छाया से मुक्त नहीं हो सके ,जो यदाकदा उनके भाषणों में अभिव्यक्त होता रहा । अपने धुर विरोधियों से भी उनके सौहार्दपूर्ण संबंध रहे ।राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के दौर में उनकी शख्सियत को सभी दल सम्मान से देखते रहे हैं।यद्यपि आलोचना और संदेह से परे किसी भी व्यक्ति का जीवन नहीं रहा है। किन्तु सार्वजनिक जीवन में एक सज्जन व्यक्ति, सफल राजनेता और भावुक कवि के रूप में अटल जी सदैव स्मरणीय रहेंगे।जिनके उदार हिंदूवादी दृष्टि के कारण भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी बनने का सफर तय किया।एक विपछी के रूप में अत्यंत विनम्रता से सत्ताधारियों की नीतियों की आलोचना की तो प्रधानमंत्री के रूप में संसद में विरोधियों का सम्मान बनाये रखा।
भले ही उनकी पृष्ठभूमि आर एस एस की रही ,लेकिन प्रधानमंत्री के कार्यकाल में अटलजी कांग्रेसी विचार-दर्शन से ओतप्रोत नीतियों से सामंजस्य बिठाते दिखाई दिये तभी अल्पसंख्यक समुदाय में भी वे सहज स्वीकार्य ही नहीं बेहद लोकप्रिय हो गए ।
उनकी अनूठी काव्य प्रतिभा ने उनकी प्रसिद्धि में चारचांद लगा दिये ।अध्यात्म दर्शन ही नहीं भारतीयता की रंगबिरंगी छटा उनकी कविताओं में देखी जा सकती है ।तभी अटलजी राजनीति ही नहीं साहित्य के लिये भी अमूल्य निधि हैं ।
सच में आज जब अटल जी जैसे राजधर्मी नेतृत्व की बेहद जरूरत है,उनका स्वर्गारोहण मृत्युलोक को वीरान कर गया है ।राजनीति में ही नहीं समाज में एक खामोशी खिंच गई है ।
क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।
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