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ये अच्छी बात है क्या ?

aaina
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–9 लाख करोड बैंक के एनपीए वाले भैया लोग की चल अचल संपत्ति कुर्क कर जेल भेजो ससुरो को, क्या दिक्कत है,अपन की समझ नहीं आ रहा है ।इधर 10-20 हजार के कर्ज वाले बैंक वालों से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे हैं ,वो ससुर सुशील ,विजय माल्या और अब नीरव मोदी हजारों करोड लूटकर रफूचक्कर हुए जा रहे है,कोई बात है ,ये सरकार के कौन ?दामाद हैं क्या ?
-चचे पर आज फिर नरंगी सवार है सो बड़बड़ा रहे हैं , जब नरंगी सवार हो तो चचे अपने बाप की भी नही सुनते ।मजे की बात ये है कि चचे जब तक होश में रहते हैं तो शान्तिप्रिय नागरिको की श्रेणी में रहते हैं ,लेकिन पव्वा भर घूंट जैसे ही गले से नीचे उतरे कि चचे सजग नागरिकों सी बातें करने लगते हैं ।सरकार की नीतियों पर सवाल पर सवाल दागने लगते हैं,सुनने वाले उन्हें देशद्रोही तक करार देने लगते हैं .बताईये अपनी सरकार पर कोई सवाल उठाता है क्या ? उठाना चाहिए क्या ?
ये लो चचे फिर शुरू हो गये ।
– हर साल हमारे हजारों अन्नदाता कर्ज के कारण आत्महत्या कर लेते हैं और इधर ये धन्नासेठ बैंको से कर्ज लेकर दिवालिया हो जाते है फिर लोन पे लोन और आखिर में सरकार के इन चंदामामाओं के कर्ज बट्टेखाते में डाल देते हैं ,धत ससुर इनकी और इनके आकाओं की ऐसी-तैसी होनी चाहिए कि नहीं .पहले से चला आ रहा हैं सालों से ,अबे कोई शास्त्र किताबो में लिखा है कि परंपरा है चलेगी यूं ही।ये कोई बात है ? सरकार और धन्ना सेठों की मिलीभगत से ही देश की 75% रकम एक प्रतिशत धनकुबेर दबाये बैठे हैं ,है कि नहीं ?
चचे अब सो जाओ, बहुत -बहुत ज्यादा बोल गये है आप ।आप को न तो देश के अर्थशास्त्र की समझ है और न ही समाजशास्त्र की –
– बेटा हमें समझा रिया है हैं ? अबे और कोई समझ हो न हो न हो राजनीति और नेतालोग को खूब समझते हैं ,उम्र हो गई देखते देखते ।अबे जब सरकारी बैंक का हिसाब-किताब नहीं देख पा रहे हो तो -तो सौंप दो निजी बैंक को .अरे हां ,यही लग रहा है ।अब समझ आया कि मामले के पीछे क्या मामला है ।ये है राजनीतिक अर्थशास्त्र का बीजगणित !!
तभी चच्ची की पुकार आई और हमारे चचे हमेशा की तरह अच्छे बच्चे की तरह पतली गली से निकल लिए ।उनकी अंटशंट बातों से सिर अभी तक भन्ना रहा है .चलिए देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए” दो घूंट जिन्दगी के” लिए जायें ,गर्मागर्म पकौड़े के साथ । मानाकि समाज और राजनीति में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है ,लेकिन क्या करें परंपरा है ।

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