इस बार अन्ना का आंदोलन न तो गरम हुआ न ही चरम पर पहुंचा,न भीड़भाड़ न गाना कीर्तन ।मीडिया वालों ने भी खास तवज्जो नहीं दी।लोग सोच रहे हैं आखिर हुआ क्या?अन्ना का जादू खत्म हो गया?
यूपीए सरकार के विरूद्ध हुए अन्ना के महाआंदोलन में क्या जोर का जमघट,नारे- गीत-गाना-नाटक नेता -अभिनेता, सितारों की चमक दमक रही। यूपीए सरकार के विरोधियो के हाथ तो जैसे अन्ना के नाम की लौटरी लग गई थी,यहाँ तक कि अन्ना को दूसरा गांधी तक कहा गया।देश-विदेश का मीडिया जंतर-मंतर से हटने का नाम ही नही ले रहा था। लोकपाल पर संसद में जोरदार बहस भी देखने को मिली और सर्वसम्मति से जन लोकपाल पर आनन् फानन में प्रस्ताव भी पारित हुआ। बात वही, इस बार आंदोलन फुस्स क्यों हो गया,बात कुछ हजम नहीं हो रही।अन्ना को जैसे-तैसे लाज बचानी पड़ी । कई कारण हो सकते हैं –पूर्व अन्ना आंदोलन में यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार के मामलों के व्यापक प्रचार-प्रसार से जनजन में असंतोष,मंहगाई,बेरोजगारी,सरकार विरोधी राजदलों की एकजुटता और आरएसएस- रामदेव के इशारे पर समर्थकों की कट्टर भीड़ का जोरदार तमाशा।विशेषकर अरविन्द केजरीवाल के साथ जुटे एनजीओ समूह तो जैसे इस ऐतिहासिक आंदोलन में चार चांद लगा रहे थे। वर्तमान सरकार के विरूद्ध भी जनता में भारी गुस्सा है,किसान मजदूर नौकरीपेशा,छात्र बेरोजगार सब अलग-अलग आंदोलन कर रहे हैं।लेकिन अन्ना के साथ एकजुट नहीं हुए।ये आश्चर्य नहीं तो क्या कहें?बात वही आरएसएस समर्थित सरकार को लगा “अच्छा हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊ”।उधर रामदेव भी अन्ना के पचड़े में नहीं पडे।अब वो पापड अचार से लेकर सबकुछ बेच रहे हैं और समझदार व्यापारी कभी किसी पचड़े में नहीं पडता।अरविंद केजरीवाल अब सत्ता सुख भोग रहे हैं और कीचड़ में उतर करकीचड़ साफ करने के प्रयोग में लगे हैं।
एक बात और भी है पब्लिक को लगा कि 2014 में सरकार तो बदली,लेकिन व्यवस्था जस की तस है और इस जुलुस ने उनको एकबार फिर छला है।
अन्ना आंदोलन के कारण 2014 के ऐतिहासिक घटनाक्रम में जमा जमाया कांग्रेस का वटवृक्ष जड़ सहित उखड़ गया. लेकिन नई नवेली एनडीए सरकार में व्यवस्था जनित दोष और अधिक उभर कर आ गये।जोरदार आकर्षक नारे -नीति -भाषण और विग्यापन से भी जनता के दुखदर्द कम नहीं हुए ।न मंहगाई पर नियंत्रण हैं न सुरसा की तरह मुंह फाड़ती बेरोजगारी का कोई समाधान ही हुआ है ।किसान -मजदूर के सामने जीने-मरने की समस्या है तो घोटालेबाज अब भी धमाचौकडी खेल रहे हैं।नित नये सिरदर्द सरकार को झेलने पड़ रहे हैं।ये सच है अभी तो उम्मीद पर खरी नहीं उतरी हैं नयी सरकार।आगे आगे देखिए होता है क्या ? वैसे कहावत के अनुसार उम्मीद पर सरकार कायम है । फिलहाल तो लौट के अन्ना घर को आये !
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