देश में कांग्रेस के आपातकाल के विरूद्ध जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में वर्ष ’77 में हुई समग्र क्रांति के उपरांत उ0प्र0 के नेता मुलायम सिंह यादव का नाम राष्ट्रीय राजनीति में एकाएक सुर्खियों में आ गया था,जो साम्प्रदायिक पार्टियों के विरूद्ध राजनीति करने वाले योद्धाओं में प्रमुख कहे जाते हैं। साथ ही कांग्रेस गठबंधन के प्रत्यछ या अप्रत्यक्ष रुप से सहयोगी के रुप में भी उनका नाम लिया जाता रहा है ।
अभी हाल में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की हार और सपा की जीत के संदर्भ में उनका बयान आज की राजनीति पर तीखी टिप्पणी है,जिसके निहितार्थ देश के नागरिको को भली-भांति समझ लेना चाहिए ।
राजनीति से लगभग रिटायर हो चुके मुलायम सिंह यादव जी की प्रतिक्रिया है कि राजनीति में कोई संन्यासी नहीं है ,ये टिप्पणी 4 दशक की राजनीति को देखने ,जानने -समझने वाले खांटी समाजवादी नेताजी कर रहे हैं ,तो नागरिको को देश की वर्तमान राजनीति और विशुद्ध बाजारू नेताओं के चेहरे को भली-भांति देख लेना चाहिए ,जो येन-केन-प्रकारेण सत्ता ,पावर, कुर्सी को पाने को बेताब है ।
भारत मे अध्यात्म दर्शन संस्कृति की परंपरा को दरकिनार कर धन और बाहुबल के आसरे देश में राजनीति करने वालोँ का दबदबा देश में बढ़ रहा है ,तो उनके अनैतिक तौर-तरीके ,व्यवहार भी संसद से सड़क पर दृष्टिगोचर हो रहे हैं ।
देश के समछ दुखद परिस्थिति है कि अन्नदाता किसान कर्ज के बोझ तले आयेदिन आत्महत्या कर रहे हैं,हजारो करोड के बैंक के कर्जदार कानून को धता बताकर विदेश भाग रहे हैं ,बेरोजगार फांसी झूल रहे हैं और दिनोंदिन नागरिकों का जीवन यापन दुष्कर होता जा रहा है। इधर देश के राजदल और नेता मंदिर- मस्जिद जैसे अवास्तविक मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट, संसद और सड़क पर जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं तो आश्चर्य स्वाभाविक है।
आंकड़े बताते हैं कि सांसदों -विधायकों की संपत्ति दिनदूनी चारगुनी बढ़ती ही जा रही है। इनकी पार्टियों के पास करोड़ों अरबों का पार्टी कोष है ,जिसके चन्दामामाओं तक के नाम का अतापता नहीं हैं। सर्व विदित है जब इन पूंजीपतियों से पार्टी कोष निरंतर संमृद्ध होता है तो इनके काले पीले कामों में राजनीतिक पार्टियों की मदद होनी ही चाहिए। सच है नेता सन्यासी नहीं हैं,अपितु चाहे जैसे धन पद प्रतिष्ठा बनाये रखने वाले छुद्र स्वार्थी लोग हैं।
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