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कृषि के लिए संजीवनी

वित्त व बजट
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इस साल के बजट को कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए संजीवनी कहा जा सकता है। पिछले कई वर्षों से कृषि की विकास दर में जो ठहराव या गिरावट आ रही थी, उसमें 5.4 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई है। बजट में राष्ट्रीय कृषि योजना के लिए 7,860 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए है। इसमे नई कृषि योजनाओं के लिए 2,200 करोड़ रुपये का प्रावधान है। खाद्यान्न मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए सब्जी, दलहन, तिलहन, मोटे अनाजों-ज्वार, बाजरा के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। साथ ही पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति के लिए 400 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कृषि उत्पादन बढ़ाने में कृषि ऋणों का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी को ध्यान में रखकर मार्च 2000 तक कृषि ऋण का बजट 3,75,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4,75,000 करोड़ कर दिया गया है। इसका एक और आकर्षण यह भी है कि जो कृषक अल्पकालीन ऋण निर्धारित समय से जमा करते हैं, उन्हें ब्याज का अनुदान वर्तमान दो प्रतिशत से बढ़ा कर तीन प्रतिशत कर दिया गया है।


कृषि में इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए ग्रामीण मूलभूत विकास निधि को पिछले बजट के 16,000 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 18,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इससे खास तौर पर ग्रामीण इलाकों मे भंडारण व्यवस्था को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी। इसी तरह शीतगृहों और अन्य सप्लाई चेन से संबंधित प्रौद्योगिकी को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दिया गया है। शीतगृहों के उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क घटाकर ढाई प्रतिशत कर दिया गया है। साथ ही शीतगृह कन्वेयर बेल्ट और रेफ्रिजरेशन पैनल पर आबकारी शुल्क समाप्त कर दिया गया है। वर्तमान में हमारे देश में भंडारण क्षमता में 3.2 करोड़ टन की कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए 10,000 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है।


बजट मे 15 मेगा फूड पार्कों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इस बजट को एक मामले में ऐतिहासिक भी कहा जा सकता है क्योंकि लंबे समय से लंबित मिट्टी के तेल, उर्वरकों, खाद्यान्न एव कुकिंग गैस पर प्रत्यक्ष रूप से सीधे लाभार्थियों को नकद छूट देने का प्रस्ताव किया गया है। इस कदम का उद्देश्य खाद्यान्न वितरण प्रणाली को अधिक कारगर और बेहतर बनाना है। इसके लिए पिछले सप्ताह यूआइडीएआइ के अध्यक्ष नदन निलेकणी की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। यह कार्य दल जून 2011 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। मार्च 2012 से इस प्रणाली को लागू करने का प्रस्ताव है।


वर्तमान मे मिट्टी का तेल कम दाम में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को दिया जा रहा है। इसी तरह उर्वरकों पर भी छूट सीधे किसानों को दी जा रही है। आज सब्सिडी का भार उर्वरकों में 54,977 करोड़, खाद्यान्न में 60,600 करोड़ और पेट्रोलियम में 38,386 करोड़ रुपये है जो कुल 1,64,153 करोड़ रुपये है।


प्रस्तुत बजट में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के प्रोत्साहन के लिए 100 करोड़ रुपये की एक निधि बनाई गई है जो छोटी संस्थाओं को प्रोत्साहन देगी। इस निधि का प्रंबधन भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक करेगा। आर्थिक सर्वे में मालेगाम समिति की संस्तुतियों के बारे में जिक्र किया गया है जो भारतीय रिजर्व बैंक के पास विचाराधीन है। माइक्रो फाइनेंस संस्थानों की आलोचनाओं में अधिक ब्याज दर की वसूली, गरीब परिवारों पर बढ़ता ऋण बोझ और वसूली करने की अव्यावहारिक प्रक्रिया शामिल हैं। जहां तक इन सस्थाओं के वित्तीय समावेशन में योगदान की बात है वह प्रशंसनीय है। इस क्षेत्र के नियमन के लिए गठित मालेगाम समिति की संस्तुतियों के लागू होने का व्यापक प्रभाव पड़ेगा।


रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का मानना है कि इन संस्तुतियों के लागू होने से माइक्रो फाइनेंस संस्थानों की संख्या में कमी आएगी। इसी तरह इक्रा रेटिंग एजेंसी का कहना है कि इससे इनके व्यवसाय की विकास दर और लाभ में कमी आएगी। क्रिसिल का यह भी कहना है कि न्यूनतम निवल मालियत की सीमा बढ़ जाने से अब इस क्षेत्र में नई संस्थाओं का प्रवेश कठिन हो जाएगा। साथ ही छोटे स्तर की सस्थाओं के लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो जाएगा। इस समिति की सस्तुतियों के लागू हो जाने पर उन माइक्रो फाइनेंस सस्थाओं को बल मिलेगा जिनकी आंतरिक प्रक्रिया मजबूत है और जो पारदर्शिता एव अभिशासन पर विशेष ध्यान देती हैं। मालेगाम समिति ने इन संस्थाओं द्वारा वसूली जाने वाली ब्याज दरों को 24 प्रतिशत पर सीमाबद्ध कर दिया है। मालेगाव समिति ने निश्चित किया है कि ब्याज दर प्रोसेसिग शुल्क (जो सकल ऋण राशि के एक प्रतिशत से अधिक न हो) और बीमा प्रीमियम ही ऋण से संबद्ध रहना चाहिए।


इन संस्थाओं की दूसरी बड़ी शिकायत बहुविध वित्त पोषण की है। बहुविध ऋण प्रवृत्ति के कारण एक लाभार्थी कई सस्थाओं से अलग-अलग कार्यो के लिए ऋण ले लेता है या एक ही कार्यकलाप के लिए अनेक सस्थाओं से ऋण ले लेता है। इस प्रवृत्ति से गरीब परिवारों विशेषकर महिलाओं पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ जाता है। इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक ऋणकर्ता केवल एक ही सयुक्त देयता समूह या स्वय सहायता समूह का सदस्य बन सकता है। साथ ही एक ऋणकर्ता अधिकतम दो सस्थाओं से ही ऋण लेने का पात्र होगा। समिति ने यह भी निश्चित किया है कि एक ऋणकर्ता के लिए सभी ऋणों की बकाया राशि 25,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। कुल मिलाकर वर्तमान बजट कृषि एव ग्रामीण विकास को एक नई शक्ति प्रदान करेगा।


[राजेंद्र सिंह: लेखक बैंक अधिकारी हैं]


Source: Jagran Nazariya

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