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जबसे वित्त मंत्री ने 2011-12 का बजट पेश किया है, विश्लेषकों के बीच स्टूडियो में न्यूज चैनलों के एंकरों की हां में हां मिलाकर तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करने की होड़ मची है। बजट पर टिप्पणियां और विश्लेषण पढ़ते-पढ़ते पाठक बोर हो चुके है, फिर भी वे नहीं समझ पा रहे है कि उनके दैनिक जीवन पर बजट का क्या प्रभाव पड़ेगा? वित्त मंत्री के प्रस्तावों के अपने जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में आम आदमी जानना-समझना पसंद करता है। इसी के आधार पर वह सामान खरीदने, बचत करने और निवेश करने के बारे में फैसला लेता है। आय व खर्च में बढ़ोतरी या कमी अर्थव्यवस्था की चाल, करों के स्तर और महंगाई आदि पर निर्भर करती है। इस परिदृश्य में बजट प्रावधानों के मूल्यांकन से आम आदमी को शायद चीजों को समझने में सहायता मिले। बजट के प्रस्तावों में मुख्य रूप से चार क्षेत्रों पर जोर दिया गया है-राजकोषीय सुदृढ़ीकरण, सुधार , बुनियादी ढांचे में निवेश को प्रोत्साहन और बेहतर शासन।
राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे को 4.6 प्रतिशत पर रखने और 2014 तक इसे फिस्कल रेस्पोंसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट (एफआरबीएम) के अनुरूप लाने का खाका पेश किया है। इसके अलावा वित्त मंत्री ने कर की दरों में वृद्धि के बिना ही सरकारी ऋण को 3.4 लाख करोड़ रुपये तक सीमित रखने का प्रस्ताव रखा है। आयकर में न्यूनतम छूट सीमा को बढ़ाने और कॉरपोरेट आय कर के सरजार्च में कटौती से व्यक्तिगत और कॉरपोरेट करदाताओं को हल्की राहत मिली है। अप्रत्यक्ष करों में भी राहत पैकेज के तौर पर उत्पाद और केंद्रीय करों में दी गई छूट को कायम रखा है। इसके अलावा गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) और डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) व्यवस्था को अप्रैल से लागू करने का प्रस्ताव है। शासन में सुधार के लिए इसी साल से सूचना प्रौद्योगिकी को अधिक प्रभावी, व्यापक और गहन बनाया जा रहा है। ऋण को जीडीपी के 56 प्रतिशत तक सीमाबद्ध करने की 13वें वित्त आयोग की सिफारिश से भी काफी कम 46 प्रतिशत तक लाने का प्रस्ताव भी बजट में रखा गया है।
राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लक्ष्य की पूर्ति के लिए वित्त मंत्री की अधीरता स्पष्ट नजर आ रही है। राजकोषीय सुदृढ़ीकरण से महंगाई पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। इससे अर्थव्यवस्था में अधिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा और जीडीपी दर में वृद्धि होगी। जाहिर है, आमदनी बढ़ने और खर्च कम होने से आम आदमी को फायदा होगा। हालांकि इस लक्ष्य को पूरा कर पाने में संशय है। खर्चो पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयासों पर वाह्य और आंतरिक वातावरण का असर पड़ेगा, खास तौर पर सब्सिडी के रूप में दी जाने वाली राशि से, जिसे कम नहीं किया गया है।
वित्तीय सेवा क्षेत्र के सुधारों में बीमा और एलआइसी एक्ट, एसबीआइ एंड सब्सिडरीज एक्ट, आरबीआइ एक्ट, बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, कंपनीज एक्ट और भारतीय स्टांप एक्ट आदि में संशोधन, पेंशन फंड रेगुलेटेरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) को स्वीकृति, ऋण प्रबंधन प्राधिकरण का गठन, सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश जारी रखना और बैंकों का पुनपरूंजीकरण शामिल है। एक महत्वपूर्ण कदम विदेशियों को म्युचुअल फंड योजनाओं में प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देना है। साथ ही एक छोटा कदम रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता के रूप में है। वित्तीय सेवा क्षेत्र में सुधारों से निवेश दर बढ़ेगी। इससे पूंजी निर्माण में वृद्धि होगी और अंतत: इससे आम आदमी की आय में भी बढ़ोतरी होगी। असलियत में वित्तीय क्षेत्र में सुधारों से वित्त मंत्री ने लंबित मामलों का निपटारा किया है। इस मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल का समर्थन होने के कारण लगता है कि ये सुधार सिरे चढ़ जाएंगे। वित्तीय व्यवस्था के उपायों से बुनियादी क्षेत्र को लाभ मिलने की उम्मीद है। इसके तहत बजट में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में नए क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसके अलावा करमुक्त बांड जारी करना, विदेशियों द्वारा दिए जाने वाले कॉरपोरेट कर की सीमा बढ़ाना और विदेशी निवेश को मिलने वाले लाभांश पर विद्यमान करों की दरे घटाना जैसे उपाय किए गए है। वित्त मंत्री ने शहरी और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए प्रावधान में वृद्धि की है। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, भवन, सड़क और मेट्रो जैसे क्षेत्र शामिल है। इस मद में पिछले साल के मुकाबले 23.3 प्रतिशत की वृद्धि करके 2,14,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का प्रस्ताव है।
इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार से जीडीपी संवृद्धि बढ़ेगी और प्रति व्यक्ति आय में इजाफा होगा। हालांकि इन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण, मजबूत नियामक ढांचे का निर्माण और बड़े स्तर पर वित्तीय व्यवस्था के महत्वपूर्ण मुद्दों पर बजट खामोश है। सब्सिडी हस्तांतरण की सीधी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का सरलीकरण और प्रौद्योगिकी के अधिकाधिक इस्तेमाल से शासन में सुधार के प्रयास किए गए है। बेहतर शासन से न केवल लोगों की जेब में अधिक पैसा आएगा, बल्कि उनका जीवन आसान और सुखी भी होगा। हालांकि ऐसी घोषणाएं पहले भी होती रही है, लेकिन उन पर गंभीरता से अमल नहीं किया गया। शासन में सुधार एक कठिन चुनौती है और केवल जबानी जमाखर्च से इसे हासिल नहीं किया जा सकता। इन चारों घटकों के मेल से ही जीडीपी संवृद्धि दर में वृद्धि और लोगों की आय बढ़ाई जा सकती है। इसी से महंगाई पर काबू पाया जा सकता है। हालांकि इन प्रस्तावों की प्रकृति से लगता है कि महंगाई जल्दी कम होने वाली नहीं है। वित्तमंत्री ने भी कहा है कि यह 7 प्रतिशत के आसपास मंडराती रहेगी।
दो मूल क्षेत्रों-कृषि और निर्माण में बड़े सुधारों की घोषणा नहीं है। 1991 में सेवा क्षेत्र से भारत ने सुधारों की यात्रा शुरू की थी। दो दशक बाद यह अब भी उसी दिशा में जा रही है। हालांकि भारत जैसे लोकतंत्र में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे आर्थिक मुद्दों पर हावी रहते है, लेकिन किसी भी राष्ट्र के जीवन में ऐसी अवस्था भी आती है जब समाज की खुशी और समृद्धि के लिए अर्थव्यवस्था को कमान अपने हाथ में लेनी पड़ती है। फिलहाल भारत उसी अवस्था में है। अगर समाज की बेहतरी के लिए जरूरी कदम उठाने में राजनीतिक साहस की कमी दिखाई देती है तो इससे अगर भारत की सदी पटरी से नहीं उतरेगी तो उसकी गति धीमी जरूर पड़ जाएगी। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि बजट भाषण और प्रस्ताव सकारात्मकता की पूर्व घोषणा है। हालांकि विधायी कार्यो की गति, बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता तथा कथनी और करनी में अंतर पाटने से ही करोड़ों भारतीयों पर इसका पूरा प्रभाव देखने को मिलेगा।
[जीएन वाजपेयी: लेखक एलआइसी और सेबी के पूर्व चेयरमैन हैं]
Source: Jagran Nazariya
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