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बजट 2011-12 : काला धन और भ्रष्टाचार केवल चर्चा के विषय

वित्त व बजट
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“काला धन” और “भ्रष्टाचार” भारतीय राजनीतिक और व्यापार जगत में गत वर्ष से सबसे अधिक चर्चा में रहने वाले शब्द युग्म रहे हैं. बाबा रामदेव सहित कुछ अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों ने तो काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरा-पूरा मोर्चा ही खोल रखा है, और राजनीतिज्ञों को सबसे ज्यादा परेशान करने वाले इश्यू भी यही बने.


यहॉ तक कि काले धन पर बार-बार चुनौती देने के कारण कई बार बाबा रामदेव को राजनेताओं के ताने भी सुनने पड़े. सरकार भी काले धन का पता लगाने और विदेश में जमा काले धन को भारत लाने के लिए तरह-तरह के संकल्प व्यक्त करती रही. अब जबकि वित्त वर्ष 2011-12 का बजट पेश किया जा चुका है तो काले धन पर सरकार द्वारा दिए जा रहे आश्वासनों का पूरा पत्ता ही गोल नजर आ रहा है. सारे संकल्प बस संकल्प के रूप में ही नजर आ रहे हैं.



Budget-2011-2012सरकार के चेहरे को दागदार कर रहे भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दों से निपटने के लिए अभी सरकार कोई ठोस उपाय नहीं ढूंढ सकी है. लिहाजा, विदेश में जमा काला धन वापस लाने के लिए सरकार ‘पंचकर्म क्रिया’ को ही आगे बढ़ाएगी और भ्रष्टाचार के क्रियाकर्म का फार्मूला मंत्रिमंडलीय समूह खोजेगा. सरकार ने आम बजट में इन दोनों मुद्दों को अपनी प्राथमिकता में रख निकट भविष्य में कुछ निदान तलाशने की उम्मीद जरूर जगाई है.



मौजूदा माहौल और राजनीतिक दबाव का ही नतीजा था कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के मुद्दे को वित्त मंत्री के भाषण में प्रमुखता से जगह मिली. काले धन की वापसी के लिए उन्होंने पहले ही घोषित पांच सूत्रीय फार्मूले को आगे बढ़ाने का एलान किया. उन्होंने काले धन की कमाई और उसके उपयोग पर गंभीर चिंता जताते हुए व्यापक मुहिम चलाने की घोषणा की. इस कड़ी में उन्होंने माना कि नशीले पदार्थो की तस्करी काले धन का एक बड़ा जरिया है. इसकी रोकथाम के लिए उन्होंने नारकोटिक्स कानूनों को और प्रभावी करने के संकेत दिए. वित्त मंत्री ने कहा कि नशीली दवाओं की तस्करी रोकने के लिए भविष्य में व्यापक राष्ट्रीय नीति घोषित की जाएगी.



हालांकि ये पहली बार है जबकि सरकार ने भ्रष्टाचार को अपनी पहली पांच चुनौतियों में रखा है. वित्त मंत्री ने माना कि जनता में धारणा है कि सरकार अपने काम से डिग रही है और जवाबदेह नहीं है. इसके लिए उन्होंने भ्रष्टाचार की समस्या का मुकाबला मिलकर करने की जरूरत बताई. हालांकि, बजट में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कोई घोषणा या कदम उठाने के बजाय वित्त मंत्री ने इस समस्या पर गठित जीओएम का जिक्र किया. इस समूह को चुनाव में धन-बल का प्रयोग रोकने, नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर शीघ्र कार्रवाई, सरकारी ठेकों में पारदर्शिता, केंद्रीय मंत्रियों की विवेकाधीन शक्तियों और प्राकृतिक संसाधनों के उचित दोहन के उपाय तलाशने हैं. समयबद्ध तरीके से मंत्रिमंडल अपनी सिफारिशें देगा.

लेकिन समस्या कहीं जस की तस ना बनी रहे और सरकार आश्वासन देती रहे. किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक का काम करने वाल “काला धन और भ्रष्टाचार” हमेशा से महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है और अभी अरब देशों में सरकार के खिलाफ हो रहे आंदोलन इस तथ्य की पुष्टि करते नजर आते हैं कि यदि समय रहते सरकारों ने इस ओर गंभीर कदम नहीं उठाए तो जनता स्वमेव उपयुक्त कदम उठा लेगी. आखिरकार जनता के सेवकों को स्वामी बनने की आकांक्षा पर लगाम लगा कर अपने कर्तव्यों को अंजाम देने की चेष्टा करनी ही होगी अन्यथा…………!

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