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वित्त मंत्री पी. चिदंबरम गुरुवार 28 फरवरी को संसद भवन में देश का आम बजट का पेश करेंगे. माना जा रहा है इस बार का बजट वित्त मंत्री के लिए कई सारी चुनौतियां लेकर आया है जिससे पार पाना यूपीए सरकार और चिदंबरम के लिए आसान नहीं होगा.
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बेकाबू हो रहा राजकोषीय घाटा: इस समय सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है राजकोषीय घाटे को कैसे संतुलन में लाया जाए. लोकलुभावन योजनाओं और अनियंत्रित खर्चों के चलते सरकारी खजाना पूरी तरह से खाली हो चुका है. राजकोषीय घाटे का मतलब है देश के विकास में रुकावट. वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के सामने राजकोषीय घाटे को चालू वित्त वर्ष में जीडीपी के 5.3 फीसदी तक और अगले वित्त वर्ष में इसे जीडीपी के 4.8 फीसदी तक सीमित रखने की चुनौती है. वित्त मंत्री इसकी प्रतिबद्धता पहले ही जता चुके हैं.
ऊंचे चालू खाते का घाटा: देश में ऊंचे चालू खाता घाटे का मतलब होता कि देश में विदेशी करेंसी की मांग ज्यादा बढ़ गई है जिसका असर घरेलू मुद्रा पर होता है और इसके कारण घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है. इससे देश में निवेश आने की बजाय मुद्रा का फ्लो बाहर की तरफ हो जाता है. चिदंबरम को इससे भी निपटने की जरूरत है.
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टैक्स बढाने को लेकर दबाव: चिदंबरम के सामने इस बात का दबाव होगा कि खाली हो रहे खजाने को कैसे भरा जाए. राजस्व को बढ़ाने के लिए कौन-कौन से उपाए किए जाएं ताकि सरकार अपनी लोकलुभावन परियोजनाओं को आगे बढ़ा सके. ऐसा माना जा रहा है कि धन को इकट्ठा करने के लिए वित्तमंत्री टैक्स को बढा सकते हैं. सुपर रिच पर टैक्स और विरासत पर कर लगाने पर भी विचार चल रहा है.
आगामी आम चुनाव: आम आदमी की सरकार माने जाने वाली कांग्रेस की यूपीए सरकार के सामने ऐसी कई परियोजनाएं हैं जिसको अमली जामा पहनाना बाकी है जिसमें फूड सिक्योरिटी बिल और कैश ट्रांसफर की नीति महत्वपूर्ण है. चुनाव को देखते हुए वित्तमंत्री पर दबाव होगा कि वह ऐसी परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था करें. ऐसा माना जा रहा है कि वित्तमंत्री सब्सिडी को लेकर नरम रुख अपनाएंगे.
अनियंत्रित महंगाई: निरंतर बढ़ रही महंगाई से सरकार की काफी किरकिरी हो रही है. महंगाई पर काबू पाने के हर प्रयास विफल हुए हैं. वित्त मंत्री इस बात को ध्यान में रखेंगे कि जो वह बजट लेकर आ रहे हैं उससे न तो महंगाई बढ़े और न ही विकास की रफ्तार थमे.
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