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आम बजट से ठीक पहले वित्त मंत्रालय ने देश का आर्थिक सर्वेक्षण संसद के दोनों सदनों में पेश किया. इस सर्वेक्षण में पिछले एक साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है. बुधवार को पेश किए गए इस सर्वे में यह उम्मीद जताई गई है कि देश की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौट सकती है. आर्थिक सर्वे में 2013-14 के वित्त वर्ष के लिए 6.1 से 6.7 फीसदी के विकास दर का अनुमान लगाया गया है.
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इतना ही नहीं सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि बढ़ती महंगाई भी काबू में आ रही है. अगर ऐसा है तो रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर सकता है जिससे एक बार फिर उद्योगों में रौनक देखने को मिल सकती है. लेकिन बुरी खबर यह भी है कि सर्वेक्षण में सब्सिडी का भार कम करने के लिए डीजल और रसोई गैस की कीमतों में इजाफे की बात कही गई है. अगर ऐसा होता है तो लोग अपने खर्चों में कटौती करेंगे जिससे महंगाई के फिर से बेकाबू होने की पूरी संभावना है.
सर्वेक्षण में कृषि की हालत बुरी बताई गई है और कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में पिछले पांच साल में विकास का चार फीसदी का लक्ष्य भी पूरा नहीं किया जा सका. सरकार के सामने इस क्षेत्र को उबारने के लिए निरंतर कड़ी चुनौतियां मिल रही हैं. कई तरह की सब्सिडी और सहूलियतों के बावजूद इस क्षेत्र की स्थिति काफी दयनीय है. ऐसे में आगामी वर्षों में इस क्षेत्र की क्या स्थिति रहने वाली है यह देखने वाली बात है.
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समस्या विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर भी है. निरंतर बढ़ रहे आयात से खासकर सोने और कच्चे तेल के आयात से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ रहा है. पिछले साल दिसंबर अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार 295.6 अरब डॉलर पर स्थिर बना हुआ है. आर्थिक सर्वे में चालू खाते में घाटे से निपटने के लिए सोने के आयात को नियंत्रित करने की बात कही गई है.
सरकार के इस आर्थिक सर्वेक्षण में राहत कम और चुनौतियां ज्यादा हैं. फिलहाल तो सरकार के सामने चुनौतियां राजकोषीय घाटे को कम करने की हैं जो लगातार बेकाबू होता जा रहा है. दूसरी समस्या यह है कि किस तरह से मंहगाई को नियंत्रण में लाया जाए. 2013-14 के आम बजट में भी वित्तमंत्री पी. चिदंबरम इन दो बातों का जरूर ध्यान रखेंगे.
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