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आम आदमी की मेहनत और कमाई का एक हिस्सा टैक्स के रूप में सरकार ले लेती है और उससे जमा राशि और अन्य राशियों की मदद से देश के विकास का कार्य तेजी से किया जाता है. इस कार्य को करने के लिए पहले एक रूपरेखा बनाई जाती है जो देश के विकास का एक ब्लू प्रिंट भी होता है और इसे हम बजट कहते हैं. देश की आर्थिक स्थिति, योजनाएं और कार्यक्रम आदि का सारा लेखा-जोखा सरकार तैयार करके लोकसभा में पेश करती है. इस साल भी देश के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी वित्त वर्ष 2012-13 का आम बजट 16 मार्च को लोकसभा में पेश करेंगे. इससे पहले रेल बजट 14 मार्च को पेश होगा और 15 मार्च को आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा.
इस समय पूरी दुनिया में सरकारें अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मंदी और यूरोप की मुसीबत से बचाने के लिए हर संभव कदम उठाने लगी हैं वहीं हमारी सरकार लगातार तीन साल साल से कमजोर बजट की वजह से अपनी फजीहत करा चुकी है. यूपीए सरकार के लिए यह बजट बेहद खास इसलिए भी हैं क्यूंकि अगला बजट 2013 एक चुनावी भाषण की तरह होगा और 2014 का बजट दूसरी सरकार बनाएगी. इस तरह से यूपीए को इसी बार बड़ा खेल खेलना होगा.
आम जनता को भी पता है कि जो कुछ होना है इसी साल होगा क्यूंकि इसके बाद तो बस चुनावी भाषण की तरह डींगे हांकी जाएंगी और नई सरकार नए वादे करेगी.
मंदी के अंधेरे, दुनियावी संकटों की आंधी और देश के भीतर अगले तीन साल तक चलने वाली चुनावी राजनीति के बीच यह अर्थव्यवस्था के लिए आर या पार का बजट है . इस बार चूके तो दो साल के लिए चूक जाएंगे.
अंधेरे की उलझन
इस समय हर तरफ अंधेरा फैला हुआ है. महंगाई अपने चरम पर है और राजस्व में भी कमी आ रही है. राजकोषीय घाटा सभी उम्मीदों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत है. भारतीय बजट का यह बेहद जटिल व पुराना रोग एक अर्से बाद वापस लौट रहा है. उत्पादन में गिरावट से राजस्व संग्रह घट गया है. सार्वजनिक उपक्रमों को बेचकर भी पैसा नहीं आया. इस बीच खर्च ने छलांगें भरीं और सब्सिडी बिल एक लाख करोड़ रुपये को पार कर गया.
सरकार का कर्ज राजकोषीय घाटे का दूसरा नाम है. नए वित्त वर्ष में सरकार रिकॉर्ड कर्ज उठाएगी, जिसका नकारात्मक असर ब्याज दर कम करने की कोशिशों पर होगा. राजकोषीय घाटे ने अर्थव्यवस्था में बहुत सी मुसीबतें पैदा की हैं. 2012 में यह अंधेरा फिर घिर सकता है.
पिछले चार साल से महंगाई अपने चरम पर पहुंच चुकी है. आम आदमी की हालत बेहद खराब है. हां, हालांकि महंगाई में कुछ गिरावट जरूर देखने को मिली है जो खाद्यान्न सस्ते होने के कारण आई.
यह बजट पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के नतीजों के बाद आएगा. इस बजट के ठीक बाद कई अन्य राज्यों में चुनाव की तैयारी शुरू होगी, जो दो हजार चौदह के लोक सभा चुनाव तक जाएगी. यानि घोर सियासत के माहौल में आर्थिक उम्मीदों के लिए यह आखिरी मौका है. पिछले बजट के बाद एक साल में सिर्फ घोटाले, सियासत व मुसीबतें बढ़ी हैं और सरकार कहीं गुम हो गई है. आर्थिक चुनौतियां खुली किताब की तरह हैं और समाधानों को लेकर कहीं कोई दो राय नहीं है. यह बजट सरकार की आर्थिक सूझ से कहीं ज्यादा साहस का इम्तहान है. बजट से उम्मीदें जरूर जोड़िए, क्योंकि 16 मार्च की शाम यह तय हो जाएगा कि उपभोक्ताओं, निवेशकों, उद्योगों, रोजगार के लिए अगले दो साल कैसे होंगे.
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