Bugyal
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“देर रात तक बैठे, सपनो को संजोये हुए
हम चले अपने कर्तव्य पथ पर
रात को सुबह में बदलते हुए
मंजिल को बाहों में समेटे हुए”
“लगता है सारा जहाँ मुझ पर ही बहस कर रहा
टक- टंकी लगाये वक़्त मुझको ही देख रहा
मगर मैं भ्रम – विडम्बना से परे
अपना रक्त जलाकर, स्वाभिमान को सहेज रहा”
“मान – सम्मान बढ़ाना है
अपना इतिहास बनाना है
कि नज़रें जब घूमे मुझ पर बाजार में
तो लोग कहें, ये इंसान जाना पहचाना है
ना रुकना है कभी, चलता रहूँ मैं हर दम
कि जीवन अपना सजाना है ”
“देर रात तक बैठे, सपनो को संजोये हुए
हम चले अपने कर्तव्य पथ पर….
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