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मौजूद समय में हम आसानी से कह सकते हैं कि भारत और चीन विश्व आर्थिक जगत की महाशक्तियां बन गयी हैं. व्यापार जगत में दुनिया को पछाड़ना इतना आसान नहीं था, खासकर उन ऐसे दो देशों के लिए जो कई साल तक गुलामी की बेड़ियों से जकड़े हुए थे. परन्तु दोनों देशों ने अपने अतीत से सीख लेकर अपना भविष्य सुदृढ़ बनाया.
भारत और चीन की सफलता का मुख्य कारण उनकी उदारीकरण की नीति को कह सकते हैं. जहां चीन ने 80 के दशक में ओपन डोर पॉलिसी अपनाई वहीं भारत ने 1992 के दशक में एमपीजी की नीति अपनाई. क्योंकि चीन ने उदारीकरण की नीति भारत से पहले अपना ली थी तो उसका फायदा चीन को भारत से पहले हुआ, 1992 से चीन निरंतर विदेशी निवेश का केंद्र बना हुआ है. हालांकि भारत ने इन नीतियों को अपनाने में कुछ ज़्यादा समय लगा लिया लेकिन आज वह दूसरे स्थान पर है. इसके अलावा दोनों देश इतने आगे इसलिए भी निकल सके क्योंकि उन्होंने आबादी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया क्योंकि ज़्यादा आबादी मतलब ज़्यादा व्यापार. दोनों देशों में कम मजदूरी को हम सफलता का तीसरा स्तंभ कह सकते हैं.
लेकिन तकनीकी क्षेत्र में सबसे आगे जापान का मानना है कि भारत चीन से आगे निकल गया है. इसकी सबसे बड़ी वजह चीन में बढ़ती श्रम लागत को बताया गया है. इसके अलावा कुछ समय से चीनी बाज़ार में अनिरन्तरता का दौर चल रहा है. आज जब दूसरी कंपनियां चीन में निवेश करने को सोचती हैं तो उन्हें चीन के लोगों द्वारा विरोध का सामना भी करना पड़ता है स्वाभाविक है कि इससे व्यापार प्रभावित होगा.
जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोआपरेशन का मानना है कि विदेशी निवेश के क्षेत्र में भारत अगला स्तंभ बनकर उभरा है. आज भारत में निवेश करने के लिए माहौल अनुकूल है. इसके अलावा विश्व व्यापार जगत में आई आर्थिक मंदी का भी भारत में असर नहीं देखने को मिला. हालांकि वर्तमान में अभी भी विदेशी निवेश के मामले में चीन शीर्ष स्थान पर कायम है लेकिन आने वाले तीन सालों में उसकी कुर्सी खिसक जाएगी.
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