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सोना एक कीमती धातु है इसलिए इसकी गुणवत्ता और शुद्धता को लेकर हमारे दिमाग में कई तरह के सवाल खड़े होते हैं. पहला सवाल तो यही है कि शुद्ध सोने की पहचान कैसे की जाए ताकि खरीदारी करते समय हमें कोई ठग न सके. अगर आप एक जागरुक उपभोक्ता हैं तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है बस आपको सोने के आभूषणों की खरीदारी करते समय कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए.
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हॉलमार्क है अहम
आभूषणों की खरीदारी में धोखाधड़ी को देखते हुए सरकार ने सोने के आभूषणों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हॉलमार्क चिह्न अनिवार्य कर दिया है. इसकी सहायता से हम आभूषणों की गुणवत्ता को पहचानते हैं. हॉलमार्किंग का तरीका बहुत पुराना है. अलग-अलग देश में इसका अपने ढंग से इस्तेमाल किया जाता है. भारत में सोने के आभूषणों में हॉलमार्क की शुरुआत 2000 से हो गई थी. हॉलमार्क वाले आभूषण अंतरराष्ट्रीय मानक के होते हैं. इस पर भारत सरकार की गारंटी होती है.
अगर ग्राहक हॉलमार्क गहने खरीदना चाहते हैं तो उन्हें 10 से 15 फीसदी ज्यादा मूल्य चुकाना होगा क्योंकि हॉलमार्किंग गहनों में मेकिंग चार्ज ज्यादा लगता है, लेकिन इससे वे सोने की शुद्धता के लिए आश्वस्त हो सकते हैं. ज्यादातर सुनारों के पास हॉलमार्क उपलब्ध रहते हैं लेकिन कम मुनाफा होने की वजह से वह इसे ग्राहक को नहीं दिखाते.
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हॉलमार्क पहचानने के तरीके
1. भारत में आमतौर पर 22 कैरट सोने का इस्तेमाल किया जाता है. इसका मतलब ये कि सोना 91.6% होना चाहिए. अगर ऐसा है तो उस आभूषण पर 916 का ठप्पा लगा होगा. आप सोने की शुद्धता इन्हीं अंकों से पहचान सकते हैं.
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3. सोने की हॉलमार्किंग का काम भारतीय मानक ब्यूरो, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को सौंपता है. जांच-पड़ताल करते समय हॉलमार्किंग करने वाली इन्हीं एजेंसियों के नाम होंगे.
अगर आपको हॉलमार्किंग होने के साल के बारे में पता करना हो तो आप इसकी जांच अंग्रेजी अल्फाबेट के आधार पर कर सकते हैं. हॉलमार्किंग की शुरुआत 2000 में हुई इसलिए 2000 में हॉलमार्क किए गए आभूषण पर ‘ए’ लिखा होगा. इसी तरह अगर हॉलमार्किंग 2013 में की गई है तो ‘एन’ लिखा होगा.
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