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भारत में नेता और अभिनेता के बाद अभी कोई बहुत लोकप्रिय है तो वह है रुपया. आजकल ये इतनी चर्चा बटोर रहा है कि पूछो मत. लोगों की नजर बस एक ही बात पर टिकी है कि कब रुपया गिरा और कब रुपया संभला. हर जतन कोशिश की जा रही है कि रुपया और न गिरे. अगर गिर गया तो देश कैसे संभलेगा! आरबीआई ने आनन- फानन में एक चमत्कारी पुरुष को ढूंढ़ निकाला जो रुपया को उठाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. उस चमत्कारी पुरुष का नाम है रघुराम राजन, आरबीआई के नए गवर्नर!
India Government Policy of Gold Reserve
रघुराम राजन: संक्षिप्त परिचय
रघुराम राजन भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के 23वें गवर्नर हैं. डी सुब्बाराव (D Subbarao) के कार्यकाल समापन के बाद इन्हें तीन वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया गया. राजन का कॅरियर ग्राफ काफी ऊंचा रहा है, इसलिए सरकार और देश को गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने में इनकी सफलता की पूरी उम्मीद है.
राजन इससे पहले वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी रह चुके हैं. इतना ही नहीं 2003 से लेकर 2007 तक वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के मुख्य अर्थशास्त्री भी रहे. 3 फरवरी, 1963 को भोपाल में जन्मे रघुराम राजन 50 साल के हैं. 1985 में उन्होंने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. 1987 में आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया. सबसे दिलचस्प बात यह है कि आईआईएम और आईआटी दोनों जगह ही वे गोल्ड मेडलिस्ट थे. उन्होंने 1991 में पीएचडी भी किया जिसमें उनका विषय था प्रबंधन पर निबन्ध.
Raghuram Rajan: रघुराम राजन की खास बातें
रघुराम राजन को तब जाना गया जब उन्होंने एक भविष्यवाणी की थी और ये दावा किया गया था कि 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट आएगा. 2005 में उन्होंने एक पत्र पेश किया जिसका शीर्षक था ‘फाइनेंशियल डेवलपमेंट मेड द वर्ल्ड रिस्कियर. हालांकि उनका यह पत्र नामंजूर कर दिया गया था. जनवरी 2003 में अमेरिकी वित्त एसोसिएशन के द्वारा उन्हें फिशर ब्लैक पुरस्कार से सम्मानित किया जो हर साल 40 बरस उम्र से नीचे के उस वित्तीय अर्थशास्त्री को दिया जाता है जिसका वित्त के सिद्धांत और व्यवहार में महत्वपूर्ण योगदान हो. अर्थशास्त्र के अलावे टेनिस, स्क्वाश, भारतीय राजनीति और इतिहास में उनकी काफी रुचि है.
Rupee Value: गिरता रुपया और रघुराम राजन के वक्तव्य एवं सलाह
राजन ने कार्यभार संभालते ही कुछ बोल्ड सुधारों और त्वरित कार्रवाई का वादा किया है. उन्होंने कहा “भारत की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण हालत से गुजर रही है पर इसे देश का संकट नहीं कहा जा सकता है”. “हमें निश्चित रूप से झूठे आशावाद की जरूरत नहीं है …पर “उदासी और कयामत” समाप्त हो चुका है”. उन्होंने देश की स्थिति को देखते हुए कहा कि ‘यह आसान समय नहीं है और देश अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना कर रहा है. पर इसी समय के साथ, भारत की मौलिक अर्थव्यवस्था सुनहरे भविष्य की आहट दे रही है’. उनका वक्तव्य “हमारा काम आज वैश्विक वित्तीय बाजारों द्वारा उत्पादित तूफानी लहरों पर, भविष्य के लिए एक पुल का निर्माण करना है. मेरा विश्वास है कि हम ऐसा करने में कामयाब होंगे”, उनकी आशावादी सोच की झलक देता है.
रघुराम राजन आरबीआई के पहले कदम के बारे में कहते हैं कि इसकी नई भूमिका यह होगी कि वह केंद्रीय बैंक के कामकाज में ‘पारदर्शिता और भविष्यवाणी’ पर ध्यान केंद्रित करेगी. उन्होंने भारतीय राजनीति के वर्तमान हालात को देखते हुए कहा कि ‘ऐसे समय में जब वित्तीय बाजार अस्थिर है और घरेलू राजनीति में आगामी चुनाव की वजह से अस्थिरता बनी हुई है, भारतीय रिजर्व बैंक को अपने उद्देश्यों में स्थिर होना चाहिए’. उन्होंने यह भी कहा कि ‘यह नहीं कहा जाना चाहिए कि हम अपनी कार्रवाई से बाजार को आश्चर्यचकित नहीं करेंगे. एक केंद्रीय बैंक कभी भी ‘कभी नहीं’ नहीं कहता (never say never), पर पब्लिक के पास एक स्पष्ट रूपरेखा होनी चाहिए कि हम कहां जा रहे हैं और उन्हें समझना चाहिए कि हमारी जो नीतिगत करवाई होगी वह कैसे उस ढांचे में फिट बैठेगी’.
आलोचनाओं के संबंध में टिप्पणी करते हुए राजन का कहना था कि ‘एक केंद्रीय बैंक की लोकप्रियता की शुरुआत काफी ऊंचाई से होती है पर हो सकता है की मेरी द्वारा की गई कुछ कार्रवाई लोकप्रिय नहीं हों. केंद्रीय बैंक के गवर्नर का मतलब एक वोट जीतना या फेसबुक लाइक करने जैसा नहीं होता”.
रघुराम राजन के विश्वास और भरोसे ने बाजार को एक नई गति दी है. देश के अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि रघुराम राजन जल्द ही बाजार की स्थिति संभाल लेंगे. उनके आने के बाद रुपया भी थोड़ी स्थिरता दिखा रहा है. शेयर बाजार ने भी रघुराम राजन में अपना विश्वास दिखाया है और कुछ अंक चढ़ा है. राजन मानते हैं कि समाज में आपके अच्छे और बुरे काम दोनों के आलोचक मौजूद हैं. इसलिए उन्हें भी आलोचनाओं की उम्मीद है पर वे सही चीज करेंगे और आलोचकों की परवाह न करते हुए उनसे कुछ सीखने की कोशिश करेंगे. रघुराम की बातें और शुरुआती असर सकारात्मक है. देश इनसे चमत्कार की उम्मीद किए बैठा है. हो सकता है बेकाबू होता रुपया रघुराम राजन के हाथ की कठपुतली बन जाए.
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