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वैश्विक अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स की बढ़ती भूमिका (Role of BRICS Countries in World Economy)

अर्थ विमर्श
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वर्तमान में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) का शिखर सम्मेलन चीन के सान्या में आयोजित किया जा रहा है जहॉ इन देशों ने एक जरूरी समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए डॉलर की बजाय अपनी ही मुद्रा में एक दूसरे को कर्ज और अनुदान देने का फैसला किया है. ये फैसला काफी महत्वपूर्ण है और भविष्य में आपसी संबंधों को मजबूत बनाने के साथ वैश्विक व्यापार में बड़ी भागीदारी का भी रास्ता खोलता है. हालांकि इसका इस्तेमाल फिलहाल इन देशों की कंपनियां अपने कारोबार में नहीं करेंगी मगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स देशों का दबदबा बढ़ने पर यह भी संभव हो सकता है. इस समझौते के पीछे ब्रिक्स देशों का मकसद सतत आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ दीर्घकालिक, मजबूत और संतुलित विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान करने की इच्छा भी है.


अभी इन देशों की हिस्सेदारी वैश्विक अर्थव्यवस्था में 25 फीसदी है. वर्ष 2020 तक इनकी हिस्सेदारी बढ़कर 48 फीसदी हो जाने की उम्मीद है. समझौते के तहत ये देश एक-दूसरे को स्थानीय मुद्रा में कर्ज और अनुदान देने के साथ-साथ पूंजी बाजार एवं अन्य वित्तीय सेवाओं के मामले में भी सहयोग कर सकेंगे. ब्रिक्स देशों के पास दुनिया की कुल मुद्रा भंडार का करीब 40 फीसदी हिस्सा है लेकिन इसमें ज्यादातर अमेरिकी डॉलर के रूप में है.


सही मायने में विकसित देशों के साथ कदमताल करने और उन पर दबाव बनाने के लिए ब्रिक्स देशों को आपसी व्यापार के साथ राजनीतिक-सामरिक और सांस्कृतिक संबंध और मजबूत करने चाहिए ताकि तमाम वैश्विक संगठनों में उनकी आवाज मजबूत बन कर उभरे और संयुक्त राष्ट्र संगठन व सुरक्षा परिषद में सुधार की कवायद तेज की जा सके. ब्रिक्स देशों में भारत और चीन का एक-दूसरे पर अविश्वास जरूर इस राह में एक रोड़ा है लेकिन यदि कूटनीतिक चिंतन को सही दिशा मिल सके तो आपसी मनमुटाव को दूर कर सभी क्षेत्रों में संबंध बढ़ाना दोनों देशों सहित पूरी दुनियां के हक में होगा.

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