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लुढ़कता रुपया बढ़ा रहा है मुसीबत

अर्थ विमर्श
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Rupee Depreciation in Indiaतेज रफ्तार से गिरा रुपया हर किसी की सांसें थामने वाला था. हर दिन एक नई गिरावट के साथ नया इतिहास दर्ज कर एक डॉलर के मुकाबले 70 की कीमत तक पहुंच गया रुपया देश के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गया. हर किसी को उम्मीद थी कि रुपया उठेगा लेकिन उसके उठने कोई सुगबुगाहट कहीं नजर नहीं आ रही थी. आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुव्वाराव की विदाई के साथ ही नए गवर्नर रघुराम राजन का देश ने स्वागत किया. इसके साथ ही रुपए ने भी सक्रियता दिखाई और बहुत दिनों बाद दिनोंदिन गिरता रुपया थोड़ा संभला और 70 की करीबी छोड़कर 65 के मुहाने पर आ गया.


शुक्रवार (6 सितंबर 2013) को लंबे समय के बाद भारतीय बाजार को खुशी का एहसास देते हुए गिरावट की बजाय तेजी का रुख करते हुए रुपया 65.24 पर पहुंच गया. सुबह एक डॉलर के मुकाबले 66.32 पर खुला रुपया शाम 65.24 पर बंद हुआ. लेकिन अभी भी इसमें बहुत सुधार होना बाकी है. जितना जल्दी रुपया संभलेगा उतनी ही जल्दी हालात भी सुधरेंगे. पर रुपए की आज की स्थिति पहले के मुकाबले बहुत अलग है.


एक नजर रुपए के इतिहास पर

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आज अपना मूल्य खोता जा रहा रुपया हमेशा ऐसा नहीं था. डॉलर के मुकाबले गिरने के क्रम में साल दर साल, दशक दर दशक कमजोरी आती गई और रुपया इस मुकाम पर है. 1985 में एक डॉलर की कीमत 12.38 रुपया था. 1990 में 17.01, 1993 में 31.37, 2006 में 45.19, 2008 में 48.88 और अब 65.24 रुपया सितम्बर 2013 में हो गया है.

विदेश मुद्रा के अनुपात में हम भारतीय गरीब होते जा रहे हैं. राजकोषीय घाटा, व्यापार अंतराल, लगातार उच्च मुद्रास्फीति, कुल कारक उत्पादकता, और भारत में सोने के आयात ने रुपये पर लगातार दबाव बनाए रखा है. उस पर विदेशी निवेशक भी अपना मुंह मोड़ रहे हैं. भारतीय इक्विटी बाजार में धन का प्रवाह सूख रहा है. यह हाल ही में मुद्रा के उतार-चढ़ाव में ईंधन का कम कर सकता था. पर ऐसा हो नहीं सका.


रुपए का प्रभाव कुछ खट्टा कुछ मीठा

आयातित वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि: रुपए के गिरने का यह सबसे बुरा पक्ष है. फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) जैसे साबुन, शैम्पू आदि के साथ पेट्रोल, दवाइयां, खाद-उर्वरक महंगे होते जा रहे हैं. ये भारत में सबसे ज्यादा आयात होने वाली वस्तुओं में मानी जाती हैं. रुपये में मूल्य ह्रास की वजह से आयातित होने वाले कच्चे माल की लागत ऊंची हो रही है. परिणामत: उनसे बनी हमारी रोजमर्रा की चीजें भी महंगी हो रही हैं. कंपनियां पहले ही लागत के दबाव का सामना कर रहे थीं. रुपया मूल्य ह्रास ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया.

विदेश में पढाई: रुपये के गिरने का सबसे ज्यादा खामियाजा उन छात्रों को भुगतना पड़ रहा है जो विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं या जिन्होंने विदेशी पढाई के लिए ऋण लिया है. जिस कोर्स के लिए वे भारतीय रुपये में 45 लाख का भुगतान कर रहे थे उनका खर्च सीधे 52-54 लाख होगा क्योंकि उनका उधार रुपए में था और लागत विदेशी मुद्रा में.

विदेश यात्रा: अगर आप विदेश जाने की सोच रहे हैं तो यह उपयुक्त समय नहीं है. मूल्य ह्रास में गिरावट के कारण टिकट से लेकर, रहने, घूमने-खाने सबके मूल्य में वृद्धि हो गई है. न तो आप पुराने मूल्यों पर शॉपिंग कर पाएंगे, न ही अच्छी चीजों का लुत्फ़ उठा पाएंगे.

नौकरियां और वेतन: अगर आपकी कंपनी विदेशों से आयात ज्यादा करती है तो आपके वेतन में भी कटौती हो सकती है क्योंकि आपकी कंपनी को रॉ मटीरियल (कच्चा माल) से लेकर हर उस सुविधा का कहीं ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा होगा जो विदेशों से आयात की जा रही हैं. इन कंपनियों को अपने नियंत्रण में लागत को युक्तिसंगत करना होगा. अगर मानव संसाधन का पहलू देखें तो या तो लोगों को कम संख्या में काम पर रखा जाएगा या फिर उनका वेतन स्थिर या कम रखा जाएगा .

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति: रुपए में ह्रास से आगे मुद्रास्फीति में वृद्धि होने की वजह बनेगी. ऐसी स्थिति में आरबीआई नीतिगत दरों में कटौती करने के लिए मजबूर होगा. नीति दर में कोई कटौती बेसब्री से उच्च ऋण पाने का इंतजार कर रहे लोगों को ऋण लेने के संकट से जोड़ देगा.


रुपए का गिरना हमेशा सरकार को भविष्य के संकट से आगाह करता रहा है. सरकार की गलत नीतियों का ही नतीजा है कि आज कि रुपया अपने साथियों के समूह में सबसे कमजोर मुद्राओं में से एक है. अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार अपनी तरफ से भरसक कोशिश कर रही है. वह पूंजी प्रवाह को बढ़ावा दे रही है साथ ही साथ विदेशी मुद्रा के बहिर्वाह को प्रतिबंधित करने की कोशिश भी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जा रहा है. यह समय उन अप्रवासी भारतीयों के लिए अच्छा है जो विदेशों में नौकरी कर रहे हैं या उन कंपनियों के लिए जो विदेशों में निर्यात कर रहे हैं. खैर जब तक रुपए के गिरने की दुविधा सुलझेगी नहीं या रुपया जब तक आपने आप को पूरी तरह स्थिर नहीं कर लेता तब तक आम आदमी की जेब हल्की होती रहेगी और महंगाई का डर सताता रहेगा.

Rupee Depreciation in India

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