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अभी और रुलाएगी महंगाई

अर्थ विमर्श
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बाजार में मंहगाई घटने का नाम नहीं ले रही है, पर महंगाई और बढ़ने के कारण बढ़ते जा रहे हैं. सरकार महंगाई कम होने के प्रयासों के दावे करती है कि महंगाई बढ़ने का एक और नया कारण सामने आकर सरकारी दावों की पोल खोल देता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य घटता जा रहा है. अगर यही हाल रहा तो जो थोड़ी बहुत मंहगाई घटने के आसार दिख रहे थे, वह फिर से बढ़ जाएगी. कैसे? जरा इधर गौर कीजिए.


rupee11 जून को बाजार के खुलते ही डॉलर के मुकाबले रुपया फिर गिरकर 58.95 के स्तर पर पहुंच गया. डॉलर के मुकाबले रुपए की लगातार घटती यह कीमत अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. विशेषज्ञों की मानें आने वाले दिनों में इसके और गिरने के आसार हैं. 1966 से पहले तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाउंड में मापा जाने वाला रुपया जब 1966 से डॉलर में मापा जाने लगा तो 1 डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत थी मात्र 7.5 रुपए. उस वक्त महंगाई भी इतनी थी. आप 10 रुपए में कई सामान ले आते. आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1 डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत है 58.95 रुपए. आज महंगाई इतनी बढ़ चुकी है कि 10 रुपए में एक किलोग्राम तो क्या, शायद आधा किलोग्राम सब्जी भी न आए. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए का घटता मूल्य चिंतित करने वाला है.


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क्यों गिरता है रुपया?

कमजोर वैश्विक रुख और आयातकों द्वारा डॉलर की मांग बढ़ने से रुपये के मूल्य में गिरावट आती है. अमेरिका में नए आर्थिक आंकड़ों को लागू किए जाने के बाद यह गिरावट और बढ़ रही है, रुकने का नाम नहीं ले रही. लगातार पांच सप्ताह से यह स्थिति संभलने की बजाय और बदतर होती जा रही है. पर इसकी मुख्य कारण आयात-निर्यात के तत्वों में छुपा है. देश में ज्यादा आयात करने से विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा डॉलर बाहर भेजने से उसकी मांग बढ़ती है और निर्यातों के बढ़ने और विदेशी निवेशकों द्वारा विदेशी मुद्रा लाए जाने से डॉलरों की पूर्ति बढ़ती है. ऐसे में जब भी आयातक ज्यादा आयात करते हैं या विदेशी निवेशक डॉलर बाहर भेजते हैं तो स्वाभाविक तौर पर रुपया कमजोर होता है यानी प्रत्येक डॉलर के लिए अब ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं.


गिरता रुपया बढ़ाएगा महंगाई

अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की घटती कीमतें घरेलू बाजार में महंगाई का बड़ा सबब हैं. घरेलू बाजार में इससे तेल, पेट्रोल की कीमतों में बढ़त की आशंका बढ़ जाती है. आप सोचेंगे रुपए के मूल्य से पेट्रोल, तेल की कीमतों का क्या वास्ता? पर है. भारत अपनी कुल जरूरत के 80 प्रतिशत तेल के लिए आयात पर निर्भर है. इसके अलावे एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईरान के अलावे बाकी सभी देश डॉलर में व्यापार करते हैं. ईरान ही एकमात्र देश है जो तेल व्यापार रुपयों के मूल्य में करता है. पर भारत की विडंबना देखो कि अमेरिका के दबाव में यह ईरान से कच्चे तेल के आयात में बहुत अधिक कमी कर चुका है. इस प्रकार अन्य देशों पर कच्चे तेल के निर्यात के लिए भारत की निर्भरता बढ़ी है.


1960 के बाद से भारत में कच्चे तेल की मांग में भी बहुत वृद्धि हुई है. इस प्रकार डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य घटने से तेल के आयात में सरकार को पहले की तुलना में अधिक रुपए खर्च करने पड़ेंगे. इससे जाहिर है घरेलू बाजार में भी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का मूल्य बढ़ने की आशंका बनी रहेगी क्योंकि सरकारी घाटे की क्षति पूर्ति के लिए सरकार के पास यही विकल्प बचता है. इसके अलावे आयातों पर भी कर बढ़ेगा. इससे छोटे आयातकों के व्यापार को नुकसान पहुंचेगा. इसका सीधा असर घरेलू बाजार में उत्पादों के मूल्य वृद्धि के रूप में दिखेगा.


किसे होगा फायदा?

यूं तो किसी भी देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उसकी करेंसी का मूल्य गिरना कभी भी फायदेमंद नहीं हो सकता. विभिन्न आयामों पर यह स्थिति देश की अर्थव्यवस्था को तोड़ने का काम करती है. महंगाई बढ़ने से आम जनता को सीधे तौर भी इसके दुष्प्रभावों से रूबरू होना पड़ता है. फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें इससे लाभ पहुंचता है, जैसे; रिजर्व बैंक और वैसे आम भारतीय जिनके रिश्तेदार विदेशों में रहते हैं. रिजर्व बैंक सोने के आयात पर कर बढ़ा सकता है. इसके अतिरिक्त अन्य आयात-निर्यात की वस्तुओं पर कर लगाने से रिजर्व बैंक को लाभ होगा. इसके अलावे जिन आम भारतीयों के कमाऊ परिजन विदेश में हैं, उन्हें भी डॉलर एक्सचेंज करवाने पर उसके मुकाबले ज्यादा रुपया मिलेगा.


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