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आज जब हम बाजार जाते हैं तो हर चीज सोच-समझ कर खरीदते हैं लेकिन आज से 8 साल पहले जब हम बाजार जाते थे तो जो चीज पसंद आती थी वो ले लेते थे. पहले पायल 100 रुपए में ढेर सारे सामान ले के आती थी जो एक रिक्शे पर भी ठीक से नहीं आता था लेकिन अब ये स्थिति हो गई है कि 500 रुपए का सामान भी एक छोटे से बैग में ही आ जाता है. कारण पैसों की कीमत का कम होना और यह स्थिति मुद्रास्फीति कहलाती है.
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जब बहुत कम माल के लिए बहुत अधिक धन की आपूर्ति करनी पड़े तब इसका जन्म होता है या फिर हम इसको इस तरह समझ सकते हैं कि आज से दो साल पहले हम कोई सामान 100 रुपए में खरीदते थे लेकिन आज उस सामान को खरीदने के लिए 2000 हजार रुपए देने पड़ते हैं. यानि समय के साथ मुद्रा की कीमत कम हो जाने से उसी सामान के लिए मूल्य अधिक चुकाना पड़ता है. इस स्थिति को हम मुद्रास्फीति कहते हैं.
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मुद्रा स्फीति के कई प्रकार होते हैं जो अर्थव्यवस्था की अलग-अलग स्थितियों को दर्शाते हैं जिनमें से मुख्य प्रकार निम्नवत हैं:
1. Creeping Inflation: (धीरे-धीरे बढ़ता हुआ) – इसमें मुद्रास्फीति धीरे-धीरे बढ़ती है यानि 1 साल में लगभग 10%.
2. Galloping Inflation (तेजी से बढ़ने वाली) – इसमें मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ती है यानि 1 साल में 20,100,200…%.
3. Hyperinflation (अति मुद्रा स्फीति) – इसमें मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ती है यानि 1 साल में 30% से भी ज्यादा.
4. Stagflation (रुकी मुद्रा स्फीति) – इसमें मुद्रास्फीति की स्थिति न तो बढ़ती है न ही घटती है.
5. Deflation: (अपस्फीति) – इसमें मुद्रास्फीति की स्थिति एक दम कम हो जाती है या ये कहें कि इस स्थिति में पैसे का सही मूल्य पता चलता है.
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