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टूटने वाली है कमर, तैयार रहिए – भाग 2

अर्थ विमर्श
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भारतीय बाजार को किस प्रकार प्रभावित करेगा यह?


पिछले  भाग से आगे….

(ii) दूसरा प्रभावित होने वाला कारक है प्राइवेट से इतर सरकारी आयात. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत अपने पेट्रोलियम तेल और गैस की जरूरतें पूरी करने के लिए लगभग पूरी तरह आयात पर ही निर्भर है. पेट्रोलियम आज की मूलभूत जरूरतों में है. बिजली की कमी में उसके विकल्पों की जरूरत हो या यातायात या घरेलू गैस, हर जगह पेट्रोलियम उत्पादों की जगह है. यानि घर हो या ऑफिस, कारखाना हो या आपको यात्रा करनी हो, हर जगह पेट्रोलियम बहुत जरूरी उत्पादों में है और सरकार देश में इसकी आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात पर निर्भर है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में किसी भी देश से पेट्रोलियम की खरीद डॉलर में ही होती है. अत: पेट्रोलियम खरीदने के लिए डॉलर खरीदना जरूरी है. जहिर है रुपए की गिरती हुई कीमतों में डॉलर खरीदने के लिए रुपया ज्यादा खर्च करना पड़ेगा. इस प्रकार पेट्रोलियम की खरीद महंगी हो जाती है. इसका नकारात्मक असर घरेलू स्तर पर लगभग हर क्षेत्र में पड़ता है.

पेट्रोलियम की खरीद से महंगाई में बढ़ोत्तरी

आप पूछेंगे पेट्रोलियम की खरीद से महंगाई में बढ़ोत्तरी कैसे? वह ऐसे कि पेट्रोलियम पदार्थों में डीजल, पेट्रोल, गैस आदि आते हैं. यातायात को ही लेते हैं. यातायात में पेट्रोल-डीजल की जरूरतों से आप अच्छे से वाकिफ होंगे. आपको कार से ऑफिस जाना हो या बच्चों को बस से स्कूल; हवाई यात्रा हो या ट्रक से माल को एक जगह से दूसरे जगह लाना-ले जाना, लाइट कट गई तो जेनेरेटर चलाना हो, हर जगह पेट्रोल की जरूरत हैं. अगर इसका आयात मूल्य बढ़ेगा तो घरेलू बाजार में उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोलियम पदार्थों डीजल, पेट्रोल, घरेलू गैस आदि की कीमतें बढ़ जाएंगी. घरेलू स्तर पर आप रसोईघर में रसोई गैस के खर्च में कमी नहीं कर सकते, खाना तो आखिर किसी भी हाल में खाना ही है. ऐसे में आप अपने बाकी खर्चों में कमी करेंगे तो पहले वाली स्थिति बन जाएगी(पिछला भाग).

परिवहन मूल्य और उत्पादों की कीमत

इसके बाद आता है आज का अति महत्वपूर्ण क्षेत्र ‘परिवहन’. परिवहन और यातायात में पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतें किस हद तक प्रभावित कर सकती हैं, यह तो आपको अंदाजा होगा ही. पढ़ाई पहले ही महंगी है, उस पर बच्चों के स्कूल बस की फीस भी महंगी हो जाएगी. शहर में आप रहते हैं, पर जरूरी नहीं कि सब्जियां आपके शहर में ही उगें. ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में फल और सब्जियां ग्रामीण इलाकों, जहां यह बड़ी मात्रा में उगाई जाती हैं, से आयात की जाती हैं. जैसे दिल्ली में अधिकतर सब्जियां हरियाणा से आती हैं. इन सब्जियों को ट्रकों या ट्रेनों पर लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं. पेट्रोल-डीजल के दामों में बढोत्तरी होने से इनका परिवहन मूल्य भी बढ जाता है. जाहिर है विक्रेता इस नुकसान की  भरपाई अपना बिक्री मूल्य बढ़ाकर ही करेंगे.

इसी प्रकार सब्जियों के दाम बढ़ जाते हैं और आप एक बार फिर सब्जियों के बढ़े हुए मूल्य के अनुसार अपना बजट-संतुलन बनाए रखने के लिए किसी अन्य जरूरत में कटौती करते हैं या पहले के मुकाबले सब्जियों की खरीद कम कर देते हैं. इस प्रकार कम बिक्री होने से किसानों, सब्जी-फल विक्रेताओं, सभी को नुकसान होता है. इस प्रकार उनकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती है और प्रोडक्शन कम हो जाता है. प्रोडक्शन कम होने से सब्जियों-फलों की कीमतें और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं. इस प्रकार समूची अर्थ्व्यवस्था को यह प्रभावित करती है. महंगाई बढ़ जाती है. कम मूलभूत जरूरतों में ही ज्यादा पैसे खर्च करने के कारण बाकी की जरूरतें जैसे टीवी या नया टीवी, नया फोन, कार या पुरानी कार को बेचकर नई कार लेने की इच्छा आप त्याग देते हैं. इस प्रकार बिक्री कम होने से इन कंपनियों को भी नुकसान होता है. यह एक बार फिर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाला होता है.

हालांकि यह अर्थव्यवस्था की एक ऐसी डरावनी शक्ल दिखाता है, जो किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से जुड़े हैं. अगर ऐसा ही चलता रहे तो शायद यह बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था कभी भी सुधर नहीं पाएगी. तो यह कैसे सुधरेगा?

क्रमश:…….

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