कल कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी जी को टीवी पर सुना. मन बड़ा खिन्न हुआ सुन के, कि सत्ता पर काबिज एक दल का नेता, सत्य की आवाज उठाने वाले के खिलाफ इस तरह बोल सकता है. वह सरकार जो भ्रष्टाचारियो और देशद्रोहियों के खिलाफ बिलकुल नरम है, एक इमानदार आदमी के खिलाफ पूरी तरह से आक्रामक और मुखर है. आज सरकार के संगठित भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी आवाज उठती है, सरकार उसे “साम-दाम-दंड-भेद” से दबा देती है या दबाने का पूरा प्रयास करती है.
सरकार की दलील है, कि “अन्ना” एक गैर-निर्वाचित भारतीय है और उनका आन्दोलन गैर- संवैधानिक है और वो निर्वाचित सदस्य हैं. सत्ता के इन साहूकारों को कोई कैसे समझाए कि देशवासियों ने उनको एक बार चुन कर, देश को उनके पास पांच साल के लिए गिरवी नहीं रख दिया. लेकिन वह सरकार जो भ्रष्टाचारियों की बैसाखी पर टिकी है, वह कैसे खड़ा होने दे एक ऐसे आन्दोलन को जिससे उनको ही सबसे जयादा नुकसान होगा.
मुझे शिकायत है इस समाज से, जो क्रिकेट, फिल्म और यहाँ तक कि राखी सावंत और पूजा पाण्डेय को तो “डिस्कस” करता है लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आन्दोलन से जुड़ने में झिझक रहा है. हमको ये मानसिकता त्यागनी होगी कि “हम क्रांति तो चाहते है लेकिन क्रन्तिकारी पडोसी के घर में”.
मुझे भरोसा है, आज भी हम जब देशभक्ति के गीत या चलचित्र देखते है तो हमारे खून में एक तेजस्वी स्पंदन दौड़ जाता है. इस देशभक्ति के भावना को सिर्फ १५ अगस्त, २६ जनवरी या पाकिस्तान से युद्ध के समय, के लिए बचा के न रखें. आज देश की मांग है, कि आप और हम आगे आये और इस आन्दोलन और बड़ा, और मजबूत बनाये; जिससे ये अहंकारी सत्ताधीश समझ सके की देश सोया जरूर था लेकिन मारा नहीं था.
मुझे पता नहीं, मेरी यह अपील “featured” होगी या नहीं लेकिन मै वह हर साधन और संसाधन का उपयोग करूंगा जो “अन्ना” के आन्दोलन को और मजबूत बनायेगा. मै सभी पाठकों और लेखकों से निवेदन करूंगा, कि वह देश हित में जिस भी तरह से हो सके जुड़े. आप लिखे, बात करे, स्वयं, अपने मित्रो और परिवार को इस क्रांति से जोड़े.
अगर हम इस बार भी नहीं जगे तो निश्चय ही हम वह अधिकार खो देंगे, जब हम यह कह कर अपने आप को इमानदार और सजग समझ लेते हैं कि “फलां नेता चोर हैं, देश में भ्रष्टाचार बहुत है और इसका कुछ नहीं हो सकता”; क्योंकि जब आप के पास भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने और ख़तम करने के मौका था “तब आप ने, घर में आराम से बैठ कर टी वी पर आन्दोलन को उठते और ख़तम होते देखना चुना”.
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