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कालिंदी !!!

विचार भूमि
विचार भूमि
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यमुना हिमालय में...
– यमुना हिमालय में…

 

कल जब पुल से गुजरते हुए नीचे देखा …
उस सांवली नदी का रंग कुछ और भी गहरा देखा…
नहीं बलखाती है वो अब …रहती है चुपचाप अक्सर ..
घूमती रहती है तन्हाई में …काली रात बनकर ..
वो रात जिसका ग्रहण, ख़तम नहीं होता…
वो रात जिसमे साथ, कोई नहीं देता…
मिलने अनंत सागर से,… वो पीहर को छोड़ आयी थी….
नहीं तस्वीर अपनी ऐसी…. कभी उसने बनाई थी….
सोचती थी , रम जाउंगी… गाँव और नगरो के बीच….
दूँगी जीवन जंगलों को, और खेतों को सींच….
निकलूंगी जब मथुरा के किनारे से….
चरण गोपाल के मैं, धोती चली जाउंगी….
मोहबत के शहर, जब आगरे से निकलूंगी….
रात चांदनी, ताज महल के साथ बिताउंगी ….
ये ख्वाब उसके, तो बस टूटते ही गए ….
मिली मैदान से तो, सब छूटते ही गए ….
वो जिनसे मिलने को, अकुलाई इतनी आतुर थी….
तज हिमालय को, आयी जो सबके खातिर थी…
घेर के सबने यहाँ, उसको मार डाला है …
इस शहर दिल्ली ने ‘हाय’, क्या कर डाला है….
-(लेखक)

 

अब मथुराधीश भी नहीं, आचमन मेरा लेते….
नहीं बच्चे भी मेरी गोद में खेला करते….
मिले कभी जो घनश्याम, उनसे पूछूंगी….
देखो इंसानों ने तुम्हारे, मेरा क्या हाल किया ….
प्रभु तुमने भी अपनी ‘संवरी’ को क्यों बिसार दिया ….
प्रभु तुमने भी अपनी ‘यमुना’ को क्यों बिसार दिया ….
-(नदी)

 

 

यमुना दिल्ली में...
– यमुना दिल्ली में…

जय हिन्द…

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