सालों पहले गांधी जी ने कहा था “भारत की आत्मा उसके गावों में निवास करती है”, विकास के नाम पर नया भूमि अध्यादेश उस आत्मा की हत्या का निर्णायक हथियार है। गावों की दुर्दशा के लिए निश्चित ही, हमारी सरकारों की अदूरदर्शी नीतियां ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। वह किसान, जो सारे देश का पेट भरते हैं, लोन न भर पाने की वजह से हज़ारों की संख्या में हर साल आत्महत्या कर लेते हैं। आज़ादी के ६५ साल से अधिक गुजर जाने के बाद भी, हम कृषि को मुनाफे का व्यवसाय नहीं बना पाये हैं। खाद्यय श्रंखला का हर व्यक्ति, बिचौलिए से ले कर थोक व्यापारी तक, थोक व्यापारी से लेकर खुदरा व्यापारी तक हर कोई मुनाफा उठता है, लेकिन किसान मुनाफा नहीं, खेती का जोखिम उठता है।
इस नए अध्यादेश पर हमारा सबसे बड़ा विरोध, दो बातों को लेकर है पहला अधिग्रहण के समय किसी भी तरह की आम सहमति की आवश्यकता नहीं होगी, दूसरा सरकार की दृष्टि में उपजाऊ और गैर उपजाऊ दोनों ही जमीनें समान है। इन दो बातों से यह प्रतीत होता है कि, नया अध्यादेश किसानों और खेती के हितों को पूरी तरह नदरअंदाज करता है। नया भूमि अध्यादेश, यह सन्देश देता प्रतीत होता है कि किसानों को खेती करनी छोड़ देनी चाहिए, क्योकि खेती देश के विकास में रोड़ा है।
एक संतुलित भूमि अधिग्रहण कानून वह होता, जिससे किसान और उद्योगपति दोनों लाभान्वित होते। जिसमे किसान और उद्योगपति, विक्रेता और क्रेता न हो कर साझीदार होते। कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई जाये जो एक बार के मुआवजे तक ही न सीमित हो बल्कि कुछ इस तरह की हो जिससे किसान के परिवार को निरंतर आमदनी का साधन उपलब्ध हो सके। एक बार के मुआवजे से किसान की आने वाली पीढ़ियों को कुछ हाथ नहीं लगेगा लेकिन अगर उनको साझीदार बनाया गया, तो न सिर्फ आज की पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों की भी जीविका चल सकेगी।
ऐसे समय जब, भविष्य में देश खाद्यान संकट का सामना करने वाला है। उपजाऊ जमीनो पर उद्योग लगाने का औचित्य समझ से परे है। देश में लाखो बीघे ऊसर या गैर उपजाऊ जमीने हैं, यह अधिग्रहण वहां क्यों नहीं हो सकता? क्यों नहीं ऐसे जगहों पर जरूरी सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, सड़क की व्यवस्था कर के उद्योग लगाये जा सकते हैं, क्यों यह आवश्यक है की सारे उद्योग कुछ गिने चुने शहरों के पास ही लगाये जाये और फिर जनसँख्या के दबाव में नयी समस्याओं को जन्म दिया जाये।
इससे पहले किसानों का यह रोष एक उग्र रूप धारण कर ले, केंद्र सरकार को “सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय” की सूक्ति पर काम करते हुए, उचित कदम उठाने चाहिए। एक ऐसा मसौदा जो किसानो की हित में भी हो और उद्योगपतियों के हित में भी हो, वही देश का सर्वांगीण विकास कर सकता है।
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