लम्बे समय की भारत-चीन सीमा पर शांति के बाद, आज दोनों देशों के रिश्ते, पिछले कुछ दशको के निम्नतर स्तर पर हैं. एक सेना अध्यक्ष के रूप में, ये आप की सबसे बड़ी चुनौतियों के तौर पर देखी, जा सकती है. हिंदुस्तान की सेना भले ही सरहदों पर रहती हो, लेकिन उसकी जगह हमेशा हिन्दुस्तानियों के दिल में ही रही है. एक दिशाविहीन और विकल्पविहीन सरकार के शासन में, देश की सारी उमीदें भारतीय सेना की समझ और पराक्रम पर ही टिकी हुई हैं. आप ये मान के चलिए, वो विदेश मंत्री जिनके लिए चीन का ये अतिक्रमण, सिवाय एक मुहासे से अधिक कुछ नहीं है; इस शासन तंत्र से किसी भी तरह की उम्मीद करना, एक छलावे से अधिक कुछ नहीं होगा. बीस दिन से भी अधिक, बीत जाने के बाद भी, हमारी कूटिनीति, चीन से यह तक नहीं मनवा पाई है, कि उन्होंने ने कुछ गलत किया है. चीन अभी तक, यही रट लगाये हुए है कि उन्होंने ने सीमा का कोई उल्लंघन नहीं किया है. यह सीधी चुनौती है भारतीय पक्ष की, जिसका सामरिक महत्व का ७५० वर्ग किलोमीटर भूभाग पिछले बीस दिनों से चीन के कब्जे में है.
हमें ये समझना होगा, हम हिंदुस्तान के उस दौर में जी रहे हैं, जहाँ अधिसंख्य भारतीय युवाओं के लिए, आईपीएल एक बड़ी चर्चा का विषय है, और अधिसंक्य राजनीतिज्ञों के लिए २०१४ का चुनाव एक बड़ा चिंता का विषय. आश्चर्य है, देश के बड़े बड़े राजनीतिक दल भी इस विकट समस्या पर सिर्फ रस्म अदायगी ही कर रहे हैं. ऐसे वक़्त जब सरकार पर दबाव बनाने के लिए, सभी राजनीतिक दलों को सड़को और संसद में एक साथ होना चाहिए था, हर कोई सरकार बनाने या बचने में व्यस्त है. सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही एक ऐसे राजनेता के रूप में सामने आये हैं, जिनकी चिंता में वास्तविकता झलकती है.
जरनल साहब, हिंदुस्तान हमेशा से आभारी रहा है, हमारी सेनाओं के बलिदान और वीरता का. जरनल के ऍम कर्रियप्पा और जरनल मनेकशा जैसे सेना अध्यक्ष और अनगिनत वीर सिपाही, भारतीय फ़ौज ने देश को दिए हैं. आज फिर से वही समय आ गया है, जब भारतीय फौजें, चीन को माकूल जवाब दें. १९६२ में, जब साधन विहीन भारतीय फ़ौज ने चीन को नाकों चने चबवा दिए थे, तो अब तो ब्रह्मपुत्र में बहुत पानी बह चुका है. एक बार भारतीय पक्ष ने जमीनी स्तर कड़ा प्रतिरोध किया तो, यकीन मानिये, चीनियों को पीछे हटते देर नहीं लगेगी.
हिंदुस्तान सरकार तो अपना इक़बाल खो ही चुकी है, हमें सजग रहना होगा की कहीं यही सोच दुनिया, भारतीय फौजों के ले लिए भी न बना ले. भारतीय सिपाहियों के सर काट के ले जाने वालों को अभय दान, भारत भूमि पर जबरन कब्ज़ा करने वालों को सम्मान, भारतीय फ़ौज की परम्परा नहीं रही है. लोकतंत्र का पालन अपनी जगह है, राष्ट्र हित अपनी जगह. सलमान खुर्शीद और मनमोहन सिंह जैसे नेता सिर्फ नमक का हक अदा कर रहे हैं अपने मालिक के प्रति, लेकिन भारतीय फौजों को मिट्टी का हक अदा करना होगा. हमें उम्मीद है आप हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसे सेना अध्यक्ष के रूप में अपना नाम नहीं लिखवाना चाहेंगे, जिनकी सरपरस्ती में सैनिको के सर कटते रहे, हिंदुस्तान की जमीने छिनती रही, और सेना भ्रष्ट, नकारा सरकार के सामने नतमस्तक रही हो.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments