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एक इमानदार यात्रा और दो भ्रष्टाचारी

विचार भूमि
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किसी ने सच ही कहा है, की १० किलोमीटर की यात्रा आप को १००० किताबो से जयादा बाते सिखाती है….तो हम अपनी ..किताबे कम पढने की आदत को इधर उधर घूम के पूरा कर लिया करते है :)…

कुछ दिन पहले ही हम अपने एक बहुत अच्छे और पुराने दोस्त की शादी में मुंबई से विदिशा गए थे ..ये वही विदिशा है जहाँ के बौध कालीन “साँची” के स्तूप विश्व प्रसिद्ध है…ये एक छोटा सा शहर है और भोपाल से करीब ५० किलोमीटर…दिल्ली के रस्ते पर पड़ता है…

मैंने ये यात्रा ठाणे स्टेशन से रात ११:३० बजे शुरू की और जब सुबह आंख खुली तो हम शायद “जलगाँव” और “खडवा” स्टेशन के बीच में कही थे…ट्रेन भी थोड़ी अलसाई हुई..अपने मस्त अंदाज में चली जा रही थी…और पूरब में अरुण देव तो शायद बस निकले ही थे…उनकी लाल रंग की नवजात किरणे सारी धरा को बोल रही थी की उठो अभी सोने का समय ख़तम हो चुका है और एक नया दिन शुरू हो गया है..ट्रेन की पटरी के दोनों तरफ ही किसानो की मेहनत हरा रंग लिए खेतो में लहलहा रही थी…और दूर असमान में पंछी अपने खाने की खोज में एक तरफ से दूसरी तरफ उड़े जा रहे थे..सच में ऐसा लग रहा था की मनो यही बस जाये इन खेतो, नदियों और पहाड़ो के बीच में…

कुछ दूर चलने के बाद..इंसानी बस्तिया आने लगी और ऐसा लगने लगा की जैसे कोई शहर पास आने को है…कुछ देर के बाद ट्रेन सीटी देती हुई अपनी रफ़्तार कम करने लगी और हम “खंडवा” स्टेशन पर पहुच चुके थे…तब तक सुबह का लगभग ९ बज चुका था….और हाँ “खंडवा” वही जगह है जहाँ भारतीय सिनेमा के महान कलाकार किशोरे कुमार जी का जनम हुआ था और बचपन बीता था..तो कम से कम “खंडवा” स्टेशन पर उतर के घूमना को बनता ही था…

स्टेशन पर सामने ही एक सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक दुकान दिख रही थी…और हमने सोचा की चलो कुछ लेते है वहां से..और हम पहुच गए उस दुकान पर..हमने वहां टंगे हुए कुछ रंग-बिरंगे खाने के सामान में से एक उठाया और दुकानदार से उसका दाम पूछा..उसने बिना कोई वक़्त लिए बिना झट से बोल दिया १५/- रूपये…लेकिन जब हमने पैकेट को चेक किया तो उसपर MRP १०/- का ही छपा हुआ था…जब हमने उस दुकानदार से जयादा रूपये मांगने का कारण पूछा तो उसने बोला कि यहाँ ऐसे ही मिलता है…हमने भी सोचा शायदा यहाँ ऐसा ही होता होगा और हम वापस जाने लगे….लेकिन थोड़ी दूर चल के मन में भाव आया की यहाँ ऐसे ही कैसे चल सकता है..जब एक चीज सरे देश में MRP पर बिकती है तो यहाँ MRP से ५०% जयादा पर कैसे बिक सकती है….हम फिर घूमे दूकान की तरफ और सोचा की अगर दुकानदार सही पैसा नहीं लेता तो हम इस बात को स्टेशन मास्टर को बतायेगे..हो सकता है मेरी इस बात को वह दुकानदार भी समझ गया और जब हम वापस पहुचे तो उसने माफ़ी मांगते हुए सही पैसे में वह सामान दे दिया….उसको हम बस इतना ही बोले कि “भईया हो सकता है नौकरी तुमको आसानी से गई होगी लेकिन यह आसानी से बचेगी नहीं अगर किसी ने तुम्हारी शिकायत स्टेशन के किसी अधिकारी को कर दी” …उसने एक झूठी मुस्कान फेकी थी..शायद वह बात के सार को समझने कि कोशिश कर रहा था…

यहाँ बात ५ रूपये कि नहीं थी..अगर उसकी कोई मजबूरी होती तो ५ नहीं ५०० भी दिए जा सकते थे लेकिन एक सरकारी दुकान पर बैठे हुए आदमी को हम १ रुपया भी देने को तैयार नहीं थे….यह तो बस शुरुआत थी इस यात्रा कि..और इससे भी दिलचस्प कुछ इंतजार कर रहा था भोपाल स्टेशन पर…

हाँ चुकी हम अपने दोस्त कि शादी में आये थे..शादी में सब दोस्तोनो ने मिलकर काफी मजे किये…और कहते है जब बारात में आप बेशर्मी से नाचो तो कुछ और ही मजा आता है ..तो दोस्त के विवाह का कार्यक्रम काफी समय से और अच्छे से संपन्न हो गया… और अगले दिन हमें भोपाल से वापस मुंबई के लिए ट्रेन पकडनी थी..हमारे पास तो हमारा टिकेट था लेकिन हमारे एक दोस्त जिसको हमारे साथ वापस आना था. लेकिन उसके पास कोई आरक्षित टिकेट नहीं था और उसने हमसे बोला…. कि हम ही उसके लिए भोपाल स्टेशन पर टिकेट लेकर रख ले ..

हम भारतीय रेल की तत्काल सुविधा के लिए खिड़की पर पहुचे और TT महोदय से पूछा …

क्या भोपाल से मुंबई के लिए कोई तत्काल में टिकेट उपलब्ध है?

(उन्होंने कुछ सोच के बोला…)

हाँ है…और बोला का टिकेट के लिए आप को ८५०/- लगेगे …

ठीक है..

हमने उनको ८५०/- दे दिए टिकेट के लिए…

TT महोदय ने हम को टिकेट तो दे दिया लेकिन टिकेट पर रूपये लिखे थे ६५०/-..हम को यह समझते देर न लगी की ये २००/- अतरिक्त इन्होने सुविधा शुल्क के ले लिए है..यानि आम आदमी की जबान में कहे तो २०० घूस के लिए हमारे लिए टिकेट का जुगाड़ करने के लिए..

लेकिन घूस देना हम से बनता नहीं है तो …हमने भी मन बना लिया मामले को पूरी तरह से निपटने का और हम जा पहुचे भोपाल स्टेशन इंचार्ज श्रीमान सक्सेना जी के पास…शायद सक्सेना साहब के लिए भी ये अपनी तरह का पहल अनुभव था..वो काफी असहज दिखे जब हमने उनको बताया की उनके विभाग के एक आदमीं ने घूस ली है…पता तो उनको भी था की ये सब होता है स्टेशन पर लेकिन शायद पहली बार किसी ने उनके पास आ कर बोला था…

सक्सेना जी ने बोला की आप TT के पास जाये और उसे बताये की उसने गलत कम किया है और कोई परेशानी हो तो वापस मेरे पास आना…

अब फिर से हमें TT साहब के सामने जाना था…जिनकी शिकायत हमने अभी अभी स्टेशन इंचार्ज से की थी…हम नहीं सोच पा रहे थे की बात कहाँ से शुरू करनी चाहिए..लेकिन अभी जब निश्चय कर लिया था तो ..साहस भी अपने आप आ गया…हम फिर से TT साहब के सामने थे…

मेरे बात शुरू करते ही TT साहब समझ गए थे …की आज उनके साथ वह हो गया है जो कभी नहीं हुआ था …एक आम यात्री ने उनके काले कारनामे को सब के सामने खोल दिया था …तत्काल बुकिंग कार्यालय का माहौल पूरी तरह बदल चुका था ..उनको देख के कोई भी बता सकता था…की TT साहब अपनी नौकरी को ले कर असुरक्षित महसूस कर रहे थे.

फिर TT साहब ने वही किया जो उनको अपनी नौकरी बचाने के लिए..करना चाहिए था…उन्होंने पुरे २००/- रुपये वापस किये ..और माफ़ी मागते हुए बोले की हाँ उन्होंने गलती करी…हमने उनको समझाया कि आप उस कुर्सी पर बैठे है जहाँ लोग आप का विश्वास करते है…आप बोलते हो सीट है लोग मान लेते है ..आप बोलते हो की सीट नहीं है ..लोग वह भी मान लेते है …

हाँ मेरे पास मौका था एक बेईमान हो चुके आदमी को समझाने का और हमने वही किया…

बे-इमानो का सामना ईमानदारी से करने का यह एक जबरदस्त अनुभव था…

भले ही इस पूरी यात्रा हमने सिर्फ २०५/- रूपये ही गलत तरीके से गलत आदमियों के हाथो में जाने से बचाए..लेकिन हमने कम से कम २ बेईमान लोगो के दिलो में ये डर पैदा किया की इस भ्रष्ट व्यवस्था को तोड़ने के हिम्मत अभी भी कुछ लोगो में है…इस लेख को पढने वालो के लिए मेरा बस यही आग्रह होगा की कभी आप से कोई गलत तरीके से या गलत पैसा मागता है तो…अपने लिए नहीं तो कम से कम देश के

लिए…निर्भय हो कर विरोध करे…

बचपन से ही मन में भ्रष्टाचार के खिलाफ आग ने कई बार हमको ऐसी जगह खड़ा किया है , जहाँ हमने बेईमानो में ईमानदारी जगाने की कोशिश करी है, और आगे भी करता रहूँगा. एक बार आप भी ईमानदारी की ताकत से बेईमानो के खिलाफ लड़ने की आदत डाल कर देखे, फिर देखियेगा कितना आनंद आता है सच के लिए लड़ने में…

जय हिंद

(भारत दुनिया में ईमानदारी की लिस्ट में ७२ नंबर पर आता है, और अगर हम अब भी नहीं जागे तो हालत बद से बत्तर हो जायेगे …)

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