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ऑपरेशन ग्रीन हंट और अद्दिवासी समाज

विचार भूमि
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सरकार ने बड़े ही जोर शोर के साथ देश के एक बड़े हिस्से में ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया है. देश के लिए इससे जयादा दुर्भाग्य की बात कुछ और नहीं हो सकती जब देश की सेना को अपने ही लोगो के ऊपर बन्दूक तन्नी पड़े और अपनों को ही मरना पड़े. कोई भी मरे इस ऑपरेशन में खून दोनों तरफ भारतीयों का ही बहेगा.

 

 

मेरे विचार से ये एक बहुत ही जल्दबाजी में लिया गया फैसला है. सरकार ने इस बहुत ही बड़ी समस्या का बड़ा ही फौरी हल निकला है, की फैसला बन्दूक से कर लेते है की कौन जीतता है. माननीय गृहमंत्री जी ने यह समझाने के बजाये की नक्सलवाद की जड़ कहाँ से शुरू होती और कहाँ तक जाती है, सेना को आदेश दे दिया की मरते जाओ जब तक सब ये न मन ले की सरकार के द्वारा चलाई जा रही सारी गतिविधिया एक दम सही है. ये वही सरकार है जो गाँधी के नाम पर जीत के सत्ता में आई है, लेकिन शायद आज गाँधी भारत सरकार की नोट में जयादा और उनके व्यव्हार में कम हैं.

 

 

गौर करने लायक बात यह है की नस्सलवाद उन इलाको में जयादा फैला है जो इलाके देश में सब से जयादा खनिज सम्पदा से भरे पूरे है, लेकिन साथ ही साथ वहां रहने वाली लोगो की ग़रीबी और बेरोजगारी चरम पर है. यह वो इलाके है जिनका प्राइवेट और सरकारी कंपनियों ने पूरा दोहन किया है लेकिन छोड़ा सिर्फ भुखमरी और गरीबी है. इन इलाको में वही के लोगो को उनकी जमीन और घर से बाहर निकल दिया है. हर तरफ खदान माफिया, जंगल माफिया और भू माफिया का राज है. जिस किसी ने सरकार या इन माफियाओ के खिलाफ आवाज उठाई वो या तो जेल में डाल दिए गए या फिर मर दिए गए.

 

 

मैं नस्सलवादियों को आतंकवादी नहीं कहूँगा वो वो मजबूर लोग है जिनकी जब किसी ने नहीं सुनी तो अपने हाथो में बन्दूक उठाली. वो लोग जिनकी जमीने हथिया ली गयी हो, वो लोग जिनके घर उजाड़ दिए गए हो, वो लोग जिनके बच्चे भूखे मर रहे वो और वो जिन्होंने जब आवाज उठाई तो जेल में डाल गए हो, वो मेज पर आ कर सरकार से बात नहीं करेगे.  हम  एक पूरी तरह से बर्बाद लोगो से वार्ता की उम्मीद करते है  तो यह मानना  नाजायज ही होगा.

 

 

हम बंद कमरों में बैठ के टीवी पर खबर सुनते है की नस्सलियो ने ट्रेन की पटरिया उखड दी और समझ बैठते है की नस्सलियो ने बड़ा गलत किया. हमें कोई भी विचार उन गरीब और मजबूर लोगो के खिलाफ बनाने के पहले खुद को उनकी जगह रखा होगा और शायद तब हम उनका दर्द उनका पागलपन समझ पाएगे.

 

 

सरकार को अगर कुछ ख़तम करना ही है तो पहले वहां का माफियावाद, भ्रष्टाचार, अत्याचार ख़तम करे और फिर देखते है की उन इलाको में क्या रहता है, नस्सलवाद या राष्ट्रवाद.

 

 

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