अभी कल चेतन भगत जी का ट्वीट दैनिक जागरण में पढ़ा था, जिसका लबोलुअब था कि भाजपा ने भ्रष्टाचार की वजह से येदुरप्पा को बाहर किया और जनता ने भाजपा को. यह ट्वीट, कर्णाटक के एग्जिट पोल की रौशनी में किया गया था, जिसमे कांग्रेस को बढ़त दिखाई गई थी. सतही तौर पर ये सोच सही लगती है, लेकिन हमें थोडा गहराई में जाना होगा. पिछले कुछ विधानसभा चुनाव बड़े ही दिलचस्प परिणाम लेकर आये हैं. जहाँ गुजरात में नरेन्द्र मोदी जी तीसरी बार चुनाव जीते, वही हिमांचल में भ्रस्टाचार के आरोपी वीर भद्र सिंह जी ने राज्य की सत्ता में फिर से वापसी की. हमें ये सोचना पड़ेगा की आखिर वो क्या कारण है, की जब देश भर में केंद्र की सरकार को हर तरफ से मुश्किलों का सामना कर रही है, वो चाहे देश के अन्दर हो या बाहर, फिर भी विधानसभा चुनायों में, उनका प्रदर्शन संतोष जनक ही रहा है. कांग्रेस को पूरा हक है अपनी पीठ थप थापने का, और भाजपा के लिए समय है मंथन करने का.
भाजपा के थिंक टैंक को सोचना पड़ेगा कि, आखिर वो क्या वजहें है, जो उनके इतने शोर शराबे के बाद भी, माहौल भाजपा के पक्ष में नहीं बन रहा है. इसके लिए हमें थोडा पीछे जाना पड़ेगा, याद कीजिये जरा वो दिन, जब भ्रष्टाचार के नाम पर, दोनों ही प्रमुख केंद्रीय पार्टियों में तलवारें खिची थीं. सच मानिये विचारधारा के तौर पर हम अपने आप को, भाजपा के थोडा करीब पाते हैं लेकिन जिस तरह से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने कर्णाटक के भ्रष्टाचार को मौन सहमति दी थी. उस एक गलती ने, भाजपा के दमन में बड़े गहरे दाग छोडें है. जिस तरह से, रेड्डी बंधुओं ने कर्णाटक की सरकार को बंधक बना लिया था, जिस तरह से लिंगायत समुदाय को ध्यान में रखते हुए येदुरप्पा के खिलाफ अनमाने ढंग से अति विलम्ब से फैसला लिया गया था, जिस तरह से गडकरी जी की कंपनियों के हेरफेर के छुपाने की प्रयास किये गए थे, यह सब मिल के भाजपा को उतनी क्षति पंहुचा गए, कि राज्य स्तर पर न तो मोदी जी की और न शिवराज सिंह चौहान की सभाएं किसी काम आई.
जो लोग कर्णाटक की जीत को, राहुल गाँधी की जीत या जनता की भ्रष्टाचार को लेकर उदासीनता मानती है, उनकी सोच पूरी तरह से गलत है. राहुल गाँधी का प्रभाव सिर्फ उनके स्वामी भक्तों के लिए ही है, तो इस जीत का सेहरा उनके सर बांध ही नहीं सकता है. वह व्यक्ति जिसके पास किसी भी ज्वलंत मुद्दों की सोच और समझ ही न हो, उससे इतने बड़े फेर बदल की उम्मीद करना बेईमानी होगी. रही बात जनता की उदासीनता की, तो उसने बड़ी समझदारी से नयी सरकार का चुनाव किया. राज्य स्तर पर, पिछले पांच सालों में अगर आखिर के कुछ महीनो को छोड़ दें, राज्य में भ्रष्टाचार का ही बोलबाला रहा है. उनके लिए कोई फर्क नहीं है कांग्रेस में और भाजपा के भ्रष्टाचार में. उन्होंने स्थानीय मुद्दों को तरहीज दी. बिजली, पानी, अच्छी सड़के ये वो सारी मूलभूत चीजें है जो किसी भी राज्य की जनता चाहती है, और भाजपा सरकार पांच साल तक सिर्फ सरकार बचने में लगी रही न की, जनता की उमीदों को पूरा करने में.
ये चुनाव सभी पार्टियों के लिए आंख खोलने वाले होने चाहिए, कि वो वक़्त चला गया जब देश में लहर होती थी और पार्टी के नाम पर लोग आंख मूँद कर वोट डाल देते थे. आज आप को अपना चरित्र और सही उमीदवारों का चयन दोनों पर ध्यान देना होगा. एक कुख्यात लेकिन जिताऊ उमीदवार आप को एक सीट तो दिला देगा लेकिन उसकी वजह से आप की बीस और सीटें चली जायेंगी. ये उन युवा मुख्यमंत्रियों के लिए भी एक सबक होगा, जिन्होंने ने लैपटॉप तो बाँट दिए, लेकिन बिजली नहीं दे पा रहे हैं, प्रदेश को. जो कानून की बात तो कर रहे हैं और साथ ही बाहुबलियों को मंत्री भी बना रहे हैं. ये परिणाम सब नेताओं के लिए सबक है, कि आप को या तो काम करना पड़ेगा या फिर घर पर आराम.
टिप्णी: येदुरप्पा का अलग होना भी भाजपा की इतनी बड़ी पराजय का एक एहम कारण है लेकिन येदुरप्पा के साथ होने से भी हार तो भाजपा की होती ही. क्यों की शायद जनता अभी ये ठान चुकी है “जहाँ सुशासन नहीं वहां अगली बार पार्टी का शासन नहीं”.
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