वो देश जो अभी तक गीज़ा के पिरामिड और तूतेन खामेन के खजाने लिए विख्यात था, आज कल, वहां हो रहे उग्र जन-आन्दोलन की वजह सारी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. कोई ग्यारह दिन पहले शुरू हुआ जन-आन्दोलन अब हिंसक रूप ले चुका है. सरकार के खिलाफ और सरकार के साथ के लोगो के बीच संघर्ष बढ़ता ही जा रहा है. संयुक्त रार्ष्ट्र की ब्रीफिंग के हिसाब से अब तक कम से कम ३०० लोग इस आन्दोलन में मरे जा चुके है और कोई ८०० से जयादा लोग इसमें घायल हो चुके है. वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की तमाम अपीलों के बाद भी हिंसा नहीं रुक पा रही है.
यह विरोध, वहां पर ३० साल से शासन कर रहे हुस्नी मुबारक के खिलाफ है. वैसे, कहने को तो मिस्र एक लोकतान्त्रिक देश है लेकिन देश वास्तविक रूप से कभी लोकतंत्र की खुली हवा में अधिक दिनों तक साँस नहीं ले सका. १९८१ में “अनवर अल सदत” की हत्या के बाद, हुस्नी मुबारक ने चौथे राष्ट्रपति के रूप में मिस्र का कार्यभार संभाला और तब से वह मिस्र के राष्ट्रपति बने हुए है.
मिस्र, अफ़्रीकी महादीप में एक शक्तिशाली और प्रभावशाली देश है और यह वह देश है जो अफ्रीकी और अरब देशो के बीच सेतु का काम करता है. मिस्र में शांति और अशांति सिर्फ अफ्रीका और अरब देशो में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया पर अपना असर डालती है. शायद यही वजह है की दो दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने “White House” से संबोधित करते हुए, शांति और स्थिरता की अपील की. निश्चित ही अमेरिका के अपने हित है मिस्र की शांति और स्थिरता में, अमेरिका नहीं चाहेगा की हुस्नी मुबारक की इस तरह से विदाई हो. पिछले ३० सालों में मिस्र, अमेरिका का एक सहयोगी ही बन के उभरा है. अमेरिका की उर्जा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मिस्र से आता है. जहाँ इरान के साथ अमेरिका के रिश्ते “शत्रु अधिक मित्र कम” वाले है तो मिस्र के परिपेक्ष्य में यह “मित्र अधिक शत्रु कम” है. अमेरिका के व्यापारिक और सामरिक हितो के लिए मिस्र में शांति और स्थिरता आवश्यक है.
मिस्र की इस उठा-पटक और शांति में भारत के हित भी जुड़े हुए है. दोनों देशो में पुरातन कल से व्यापारिक रिश्ते रहे है और दोनों ही देश एक प्राचीनतम सभ्यता को साथ लेकर के आगे बढे है. भारत के लिए एक दोस्ताना मिस्र कई सहुलियते ला सकता है यह भारत के हित में भी होगा और मिस्र के भी. मेरे विचार से, मौजूदा परिस्थिति में भारत सरकार को मिस्र के बारे में अपनी स्थिति साफ़ करनी चाहिए की वह हुस्नी मुबारक के साथ है या मुहमद अल बरदाई के साथ. मैंने ऐसा महसूस किया है भारत सरकार कई बार कई, कई महत्वपूर्ण मौको पर उदासीनता का रुख अख्तियार करती है. एक तरफ भारत जहाँ सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता के एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है वही दूसरी तरफ लोकतंत्र के लिए हो रहे इस संघर्ष पर भारत सरकार मौन है, उदासीन है. अगर भारत सरकार को लगता है की भारत सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता के लिए तैयार है तो इस तरह के मौको का फायदा उठाना चाहिए और अपनी उपयोगिता सिद्ध करनी चाहिए. दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र ने तो अपने पत्ते खोल दिए है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को भी अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.
अभी ये तो वक़्त ही बताएगा की मिस्र में हुस्नी मुबारक सत्ता से बेदखल होंगे या नहीं, लेकिन पुराने पेड़ की जड़े बड़ी गहरी होती है और उसको हिलाने या गिराने में समय और शक्ति दोनों लगती है.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments