पिछले कुछ वक़त से देश के राजनीतिक और सामाजिक हालात बहुत ही तेजी से बदल रहे है. इसे अभी कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के रूप में देखे या कुछ राजनीतिक पार्टियों को अपनी जमीन मजबूत करने की मजबूरी में देखे..कारण वही है की इस समय हर राजनीतिक पार्टी और उसके कार्यकर्ता अधिक से अधिक जनता की नज़रो में आना चाहते है. चुकी देश में इस समय सही और गलत के बारे में सोचने का वक़्त और समझाने का साहस कम ही लोगो में है, इसलिए लोगो की नज़र में आने के लिए राजनीतिक कार्यकर्ता और उनकी पार्टीयां कुछ भी करने को तैयार है. वह चाहे विधानसभा इस्पीकर पर चप्पल फेकना हो, विधानसभा में गाली-गलौज करना हो, विधानसभा के बाहर गमले तोडना हो या बंद के नाम पर गरीब और कमजोर लोगो को परेशान करना, मंशा यही है की बात पार्टी में ऊपर तक पहुचे की देखिये कितने कर्मठ कार्यकर्ता है हम, और हमें भूलिएगा नही टिकट वितरण के समय…
ऐसे कठिन समय में जब देश के बाहर और अन्दर दोनों तरह से देश पर हमले हो रहे है, और भ्रष्टाचार के नित नए आयाम टूट रहे है, राजनेता और उनके कार्यकर्ता असल मुद्दों से आंख मूँद कर, अपने-अपने हित साधने में लगे हुए है. इस लेख में, मै कुछ उन मंत्रियो की कार्यशैली के बारे में लिखूंगा जिनकी देश को तो बहुत जरूरत है लेकिन उनको देश की शायद कहीं कम जरूरत है.
एक खाद्य मंत्री, जिसने देश को भूँखा छोड़ अंतर्राष्ट्रीय खेल संस्था को पकड़ा… जी हाँ, जब देश में एक तरफ अनाज सड़ रहा था और और दूसरी तरफ लोग भूख से मर रहे थे…जब एक तरफ बाढ़ से फसलें बर्बाद हो रही थी और दूसरी तरफ देश, ऐतिहासिक रूप से बढ़ी हुई महगाई झेल रहा था. तब, देश के खाद्य मंत्री ने, प्रधानमंत्री जी से निवेदन किया की उनको कार्य के बोझ से मुक्त किया जाये. कारण साफ था, क्योंकी वह अध्यक्ष बन गए है दुनिया के सबसे धनि खेल संस्थाओ में से एक संस्था के. अभी अधिक आर्थिक लाभ तो उनको वही से मिलेगा, मंत्रीपद तो भारतीय लोकतंत्र के दुरुपयोग से उनको फिर मिल ही जायेगा.
एक विदेशमंत्री जिनकी नीतियां विदेश में ही तय होती है…. पहले तो अपने सारे पुराने दावों को जुठलाते हुए विदेशमंत्री ने फिर से पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढाया और पाकिस्तान ने फिर से बन्दूक से उस दोस्ती का जवाब दिया. मुंबई हमलो के बाद, विदेशमंत्री ने दावा किया था की भारत पाकिस्तान से किसी भी तरह की बात नहीं करेगा जब तक पाकिस्तान मुंबई हमले के शाजिशकर्ताओ को सजा नहीं दिलाता. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबावों के चलते हम हमेशा की तरह इस्लामाबाद में एक बार फिर झुके. साथ ही भारत वापस आ कर विदेशमंत्री जी ने कहा वार्ता अर्थपूर्ण रही. सब कुछ ठीक था जब तक उनकी यात्रा के विवरण पर पर्दा था, लेकिन पाकिस्तानी विदेशमंत्री के दुनिया के सामने दिए गए बयानों से मतभेद खुल कर सब की नज़र में आ गए. साख बचाने के लिए विदेशमंत्री जी ने गृहसचिव की बात का समर्थन और उनका बचाव किया, लेकिन फिर अफगानिस्तान में हुई अमेरिकी विदेशमंत्री से मुलाकात ने विदेशनीति फिर से बदल दी. आज गृहसचिव बलि का बकरा हैं और उनको सीधे मीडिया से बात करने पर पाबन्दी है. मुंबई में अपने लोगो की क़ुरबानी दे कर तो भारत नहीं हरा लेकिन इस्लामाबाद में पाकिस्तान के आगे झुक कर हम आतंकवाद और पाकिस्तान दोनों से जरूर हार गए.
एक रेलमंत्री, जिसने दुर्घटना में मरे गए लोगो की चिता के जलने से पहले ही राजनीतिक रोटियां सेकी …
जहाँ पिछले एक साल से भारतीय रेल दुर्घटनाओ का शिकार हो रही है और गाहे-बगाहे ट्रेन दुर्घटनाओ में अनेको लोगो की जाने जा रही है. इन दुर्घटनाओ से कोई सीख लेने और पुखता सुरक्षा इंतजाम करने के बजाये रेलमंत्री जी का पूरा ध्यान पश्चिम बंगाल की राजनीती पर है. 19 जुलाई 2010 के ट्रेन हादसे के 48 घंटे के अन्दर 21 जुलाई 2010 मंत्री जी एक भव्य शहीद रैली करती है और दो दिन पहले मरे गए ६० से भी जयादा लोगो को भूल कर CPI(M) को जी भरकर कोसती है…भले ही मारे गए लोगो के परिवारजन अपनों की लाशे पाने में न सफल हुए हो लेकिन रेल मंत्री जी की रैली जरूर सफल रही …
एक गृहमंत्री, जिसने अपने ही लोगो से बात करने से पहले बन्दूक चलाने के आदेश दिए.. अभी अगर कोई नस्सल्वादियो के साथ बन्दूक की रणनीति का विरोध करता है तो वह अचानक से ही राष्ट्रद्रोही हो जाता है, यहाँ समझाने वाली बात यह है की यह बन्दूक उठाये नस्सल्वादियो का समर्थन नहीं बल्कि यह विरोध है उस भ्रष्ट सिस्टम का जिसने वहां नस्सल्वाद के हालत पैदा किये. वह बेगुहन लोग जिनकी जानें नस्सली हमलो में गई, वो जानें बच सकती थी अगर हालत इतने नहीं बिगड़े होते. वह जंग जो बात-चीत और सुधर के उपाय कर के जीती जा सकती थी, बन्दूक उठा के हारी गई. वो चाहे सुरक्षाबल मरे, आम नागरिक मरे, नस्सल्वादी मरे..अंत में एक भारतीय ही मरेगा . वह लोग और वह कारण जो नस्सलवाद की जड़ है वह आज भी सुरक्षित और स्वाथ्य है. शांति की एक बड़ी उम्मीद चेरुकुरी राजकुमार “आजाद” को मर कर सरकार ने आचार्य अग्निवेश के उन सरे प्रयासों को मिटटी में मिला दिया जिसके लिए वह अरसे से काम कर रहे थे.
एक प्रधानमंत्री, जिनकी सबसे पहली निष्ठां कांग्रेस के लिए है.. चुकी वह कांग्रेस के चुने हुए प्रधानमंत्री है न की देश के द्वारा चुन के आये हुए जनप्रतानिधि, कई बार मजबूरीवश ही सही वह कांग्रेस के लिए जयादा खड़े नज़र आते है न की देश के लिए. ऐसे वक़्त जब देश को एक सबल नेतृत्व की जरूरत है, प्रधानमत्री जी पता नहीं कहाँ है. वह चाहे देश में कमरतोड़ महगाई हो, देश के अन्दर और बाहर सुरक्षा के खतरे हो, देश में दिन प्रतिदिन बढ़ता भ्रष्टाचार हो…देश प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व को तरसता रहता है…लेकिन प्रधानमंत्री जी या तो विदेशो में बोलते है या बुधिजीवियो के बीच में, देश की आम जनता से जुड़ने में थोडा बचते है वो.
मुझे गर्व है की देश के पास इतने काबिल और पढ़े-लिखे नेता है जो देश कही बहुत आगे लेकर जा सकते हैं लेकिन कम्बखत वोट बैंक और राजनीती ऐसी चीजे है जहाँ आदमी चाह कर भी हमेशा सच के साथ नहीं खड़ा हो पता है.
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