आज कल शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता हो जब देश में कुछ न कुछ भारत की आत्मा को चोट पहुचने वाला न होता हो. हालात यहाँ तक बिगड़ गए है की आम देशवासियों की सुरक्षा की बात को छोड़ दीजिये, अभी तो देश के सुरक्षाबल भी सुरक्षित नहीं है. हर रोज आप को कही न कही से खबर मिल जाती होगी की आज वहां आतंकियों ने सेना पर हमला किया, आज यहाँ नस्सलियों ने CRPF को निशाना बनाया या वादी में फिर से इकठा भीड़ ने फिर से पुलिस पर पत्थरबाजी की. अगर हम सिलसिलेवार तरीके से इन घटनाओ को देखे तो हम पाते है कि, देश को कमजोर करने वाली ताकतें यह मान कर चल रही हैं कि अगर देश को कमजोर करना है तो सब से पहले वहां के समाज कि सुरक्षा करने वालो को निशाना बनाया जाय. उनका मानना है, कि एक बार सुरक्षबलो का मनोबल टूट गया तो उनको अपनी राष्ट्रविरोधी गतिविधिया पूरी करने में आसानी होगी.
यह बात तो रही उन लोगो कि सोच के बारे में जो देश को कमजोर करने कि फ़िराक में रहते है. अभी बात उन लोगो की करते है जो अपने को देश को चलाते है. देश के अन्दर हो रहे उत्पातो के साथ साथ सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से गोलाबारी एक आम बात हो गयी है, और इन सब के जवाब में हम क्या कर रहे है. सेना के स्तर पर हम “Flag Meeting” का इंतजार कर रहे है और राजनैतिक स्तर पर एक ऐसे दिन का जब पाकिस्तान अपनी सारी धूर्तता छोड़ कर भारत को अपना अच्छा पडोसी मानने लगेगा. मुझे तो डर है कही BSF को यह आदेश न दिए गए हो की अगर पाकिस्तानी सेना गोलीबारी करती है तो आप जवाब तो दे लेकिन सीमा पार किसी को नुकसान न होने पाए. मतलब यह की सेना गोलियां तो चलाये लेकिन निशाने पर नहीं!!! अजीब लगता है सुन के लेकिन यही तो तत्कालीन सरकार की रणनीति है कि कुछ भी ऐसा न करो की जिससे की पाकिस्तान नाराज हो जाये.
मेरे इन वक्तव्यों के पीछे बहुत सीधा गणित है, जब भारत सरकार के अतिउत्साही गृहमंत्री और अतिशांत विदेशमंत्री के पाकिस्तान में होते हुए भी पाकिस्तान से भीषण गोलाबारी, भारतीय सुरक्षा चौकियो पर होती है, तो यह पाकिस्तान की उदंडता और भारत सरकार की कायरता के हद तक लचीले रुख को ही दिखता है. एक तरफ तो माननीय विदेशमंत्री “कृष्णा जी” की पाकिस्तान के विदेश मंत्री “कुरैशी साहब” से इस्लामाबाद में पाकिस्तानी आतंकवाद की शिकायत कर रहे होते है और ठीक उसी समय पाकिस्तानी सेना हिंदुस्तान की सेना पर गोलिया चला रही होती है या फिर भारतीय फौज के सिपाही कश्मीर में कही पाकिस्तान-परस्त अतंकवादियो से दो दो हाथ कर रहे होते है. शायद यही हमारी नीति है, कि बस सहते जाओ चाहे पडोसी गोली चलाये, आतंकवादी भेजे या हिंदुस्तान में हमले करवाता जाये लेकिन नेताओ को तो बस कुछ दिन तक भाषणबजी करनी और फिर मामला रफा दफा कर देना है.
हमारे विदेशमंत्री जी चुप रह जाते है जब पाकिस्तानी विदेशमंत्री हिंदुस्तान के शीर्ष अधिकारी की तुलना एक पाकिस्तानी आतंकवादी से करता है. यात्रा के बाद हमारे विदेशमंत्री वार्ता को बेहतर कहते है, एक भारतवासी होने के नाते मुझे तो कोई बेहतरी नहीं दिखती न तो पाकिस्तान के व्यव्हार में और न पाकिस्तान के चरित्र में. बेहतर वार्तालाप की बात करते समय शायद विदेशमंत्री जी किसी व्यक्तिगत चर्चा की बात कर रहे होगे, न की देशहित की.
हर कोई समझ सकता है अंतरराष्ट्रीय बदवो में भारत सरकार राष्ट्रहित और राष्ट्रभावना की अनदेखी कर बार-बार और हर बार पाकिस्तान के सामने झुक रही है. भारत सरकार जिन देशो के दबाव में इतना लचीला रुख अपना रही है उनमे से किसी भी देश के साथ अगर उसके पडोसी देश ने ऐसा व्यव्हार किया होता तो यह मामला अब तक छल-बल या किसी भी तरह से निपटा लिया गया होता.
यहाँ यह कुछ इस तरह से हो रहा है जैसे एक छोटा शैतान लड़का (पाकिस्तान) एक बड़े शांत लड़के (भारत) को बार बार मरता है और बड़ा हर बार माँ(अमेरिका) के पास शिकायत लेकर पहुच जाता है. चुकी छोटा माँ को जयादा प्यारा होता है वो बस बड़े को समझती है कि कोई बात नहीं छोटा है न भूल जाओ, और बड़ा छोटे को आंखे दिखा कर भूल जाता है. शायद यहाँ असली माँ होती तो वह भी एक हद के बाद सही और गलत का निर्णय कर लेती, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय हितो की बात है और यहाँ हर देश अपना हित देखता है और वही करता और करवाता है जिससे उसका भला हो रहा हो.
पता नहीं लेकिन हर कोई अभी शांति का दूत बनने की दौड़ में अपने देशवासियों की लाशों पर भागता जा रहा है, और हो भी क्यों न बस लाशें ही तो है…
यही कहुंगा की….
तू सुलगता रहे मेरे यार वतन, यहाँ लोगो को धुआं पीने की आदत है…..
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