Menu
blogid : 1336 postid : 448

सरकार की नियत और लोकपाल की नियति

विचार भूमि
विचार भूमि
  • 49 Posts
  • 463 Comments

आज लोकपाल पर, राज्यसभा में, चर्चा बड़ी ही अभूतपूर्व रही. आज सारा देश, अपने नेताओ को सुन और देख रहा था, हर किसी के मन में ये जिज्ञासा थी कि राज्यसभा में ऊंट किस करवट बैठेगा. किसी बॉलीवुड के चलचित्र की तरह आज के सत्र में सब कुछ था- गंभीरता, व्यंग, संवाद – विवाद, ड्रामा और “धोखा”. शुरू से ही लग रहा था, एक ऐसा दल जो राज्यसभा में अल्पमत में है, आखिर वह कैसे लोकपाल बिल को सभा में पास करवाएगा.

 

कहीं पढ़ा था कि, पूरे मन से शुरू किया गया काम अपने आप ही आधा पूरा हो जाता है, और आज यह सबने देख लिया कि आधे मन से शुरू किया गया काम, अपने अंजाम तक पहुचने से पहले ही रुक जाता है ख़तम हो जाता है. लोकतंत्र में यह पहली बार हुआ है कि जब एक सत्तारूढ़ दल, खुद के बनाये किसी बिल पर वोटिंग से इस तरह से भागे. आज रात जो राज्यसभा में हुआ उसकी कहानी आज और कल में नहीं इस संसद सत्र के शुरू होने से पहले ही लिखी जा चुकी थी…

 

बीसियों साल से रुके हो एक बिल को संसद में पेश करने का वक्त और प्रारूप, सत्र शुरू होने के पहले ही निधारित किया जा चुका था. ऐसे समय जब सारा देश लोकपाल बिल के एडी छोटी का जोर लगाये हुए था, सरकार कि प्राथमिकता में इसका नंबर आखिरी था. यह समय जान भूझ के चुना गया था, यह प्रारूप सोच समझ के बनाया गया था. जानबूझ के इस तरह के बिंदु रखे गए, जिससे विवाद हो, ड्रामा हो और अंत में नतीजा “सिफर” हो.

 

सरकार के किसी मंत्री ने बिल के समय को लेकर कहा था कि खाद्य सुरक्षा और FDI जैसे बिल देश के लिए जयादा जरूरी है. वह मंत्री जी यह भूल गए कि भ्रष्टाचार के बिना तो, सरकारी कार्यालय में पत्ता भी नहीं हिलता – तो खाद्य सुरक्षा या किसी और कानून के फायदे कैसे जनता तक पहुचते. यह वैसी ही सोच है, कि बर्तन में बड़ा सा छेद है और आप पानी भरना चाह रहे है, कोई कैसे समझाए उनको, कि बिना छेद भरे हुए आप कितना भी पानी बर्तम में भरते जाओ, पीने वाला प्यासा ही रहेगा.

 

एक ऐसा लचर कानून, जिससे फायदा कम नुकसान जायदा है. जिसमे भ्रष्टाचारियो की सजा से जयादा सुविधाओ का धयान रखा गया. कांग्रेस ऐसे बिल को संवैधानिक दर्जा देना चाह रही थी. सरकार की नियत शायद यही थी की जैसे तैसे कर के एक खोखला और बल विहीन कानून देश पर थोप दिया जाये और कल को जब कोई इसमें बदलाव करना चाहे भी, तो उसको सदन में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत हो. सरकार की चाल ही यही है कि लोकपाल को भी “CVC” जैसा सफ़ेद हाथी बना दिया जाये और जब लोकपाल से भी भ्रष्टाचार न रुके तो कह दिया जाय की “सरकार के पास भ्रष्टाचार को ख़तम करने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है”

 

आज अगर राज्यसभा में बिल हर एक सुझाव पर बहस के बाद वोटिंग के लिए आता, जैसा की लोकसभा में हुआ था तो शायद एक अच्छी तस्वीर निकल के सकती थी; लेकिन जब आप की नियत ही नहीं है तो आप अपने छुपे हुए सहयोगियों से पर्चे फडवाएंगे या फिर सदन में अराजकता फैलाएंगे और फिर पीठ दिखा के भाग जायेंगे.

 

कहना चाहूँगा…

 

“किसी भी युद्ध में हराने वाला भी योधा ही होता है लेकिन भागने वाला हमेशा कायर…”

 

जय हिंद !!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh