ग़ाफ़िल की कलम से
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मेरे पहलू से जाने को दिल चाहिए
यूँ मुझे आजमाने को दिल चाहिए
बात बिगड़ी हुई भी है बनती मगर
बात बिगड़ी बनाने को दिल चाहिए
याद में मेरी मुद्दत से आए न वे
याद में मेरी आने को दिल चाहिए
बात सुनने सुनाने से हासिल भी क्या
बात सुनने सुनाने को दिल चाहिए
आईना देखते तो हैं सब बारहा
आईना पर दिखाने को दिल चाहिए
होश में जोश आता है किसको भला
होश में जोश लाने को दिल चाहिए
दिल को लूटा है सब ने बड़े शौक से
शौक से दिल लुटाने को दिल चाहिए
बोतलों से ढलाना है आसाँ बहुत
आँख से मय ढलाने को दिल चाहिए
एक ग़ाफ़िल ने भी लिख तो डाली ग़ज़ल
पर ग़ज़ल गुनगुनाने को दिल चाहिए
हाँ नहीं तो!
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