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संप्रग सरकार का संकट

जागरण मेहमान कोना
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Balbir Punjघोटालों से घिरी संप्रग सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री की साख रसातल में जाती देख रहे है बलबीर पुंज


सप्रग सरकार के काल में सार्वजनिक धन की जिस तरह लूट मची उसकी परतें अब प्याज के छिलकों की तरह उघड़ती जा रही हैं। 1.75 लाख करोड़ रुपये के 2जी घोटाले के तार अब प्रधानमत्री और तत्कालीन वित्तामत्री पी. चिदंबरम से जुड़ रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग द्वारा सूचना के अधिकार से जुटाई गई जानकारी के अनुसार 2जी स्पेक्ट्रम को सरकार किस तरह बेचे, इसका निर्णय मत्रियों के समूह को करना था, परंतु प्रधानमत्री के हस्तक्षेप के कारण यह काम तत्कालीन सचार मत्री दयानिधि मारन को सौंपा गया। इस कदम के कारण ही मारन और उनके उत्ताराधिकारी ए. राजा जनवरी, 2007 में 2जी स्पेक्ट्रम सन 2001 की दरों पर बेचने का दुस्साहस कर पाए। अब यह स्थापित सत्य है कि प्रधानमत्री ने इस घोटाले की नींव रखी। क्यों?


सर्वोच्च न्यायालय में विगत बुधवार को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सदर्भ में पेश एक हलफनामे में कहा गया है कि वित्तामत्री प्रणब मुखर्जी ने 2जी स्पेक्ट्रम आवटन मामले में तत्कालीन वित्तामत्री पी चिदंबरम की भूमिका पर सवाल उठाया था। इस बारे में वित्ता मत्रालय ने प्रधानमत्री को पत्र भी भेजा था। दस पृष्ठ के उक्त नोट मे कहा गया है कि यदि तत्कालीन वित्तामत्री चिदंबरम ने जोर दिया होता तो दूरसचार मत्रालय 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के आवटन के लिए नीलामी की प्रक्रिया अपना सकता था, किंतु उन्होंने तत्कालीन सचारमत्री राजा को पुरानी दरों पर स्पेक्ट्रम बेचने की इजाजत दी। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रणब मुखर्जी का यह पत्र सर्वोच्च न्यायालय में दस्तावेज के तौर पर पेश किया है। स्वामी के अनुसार स्पेक्ट्रम का मूल्य तय करने के लिए चार बैठकें हुईं, जिसमें से अंतिम बैठक में चिदंबरम और राजा प्रधानमत्री के साथ शामिल हुए थे। यह स्थापित सत्य है कि सप्रग सरकार में हुए कई अन्य घोटालों की तरह राष्ट्रमडल खेलों के आयोजन और 2जी स्पेक्ट्रम आवटन में हुई सार्वजनिक धन की लूट की खबर प्रधानमत्री डॉ. मनमोहन सिह को भी थी। आइपीएल, राष्ट्रमंडल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम, सेटेलाइट स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसाइटी घोटाला, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर दागदार व्यक्ति की नियुक्ति और इन सब घोटालों से प्रधानमत्री मनमोहन सिंह के अनजान होने की मासूम दलील से मनमोहन सिह के साथ-साथ समूची सप्रग सरकार की विश्वसनीयता धुल चुकी हैै। इसके कारण पूरी दुनिया में भारत को एक भ्रष्ट देश के रूप में देखा जा रहा है, जिसे कल तक एक अत्यत ऊर्जावान और उदीयमान सशक्त अर्थव्यवस्था के रूप में दुनिया सम्मान के भाव से देख रही थी और देश-विदेश के निवेशक यहा पूंजी निवेश के लिए उत्सुक थे। इस छवि को जो क्षति पहुंची है, क्या उसके लिए एक लचर व अक्षम नेतृत्व जिम्मेदार नहीं है?


वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिह को कमजोर प्रधानमत्री कहा था। यह सच साबित हुआ। प्रधानमत्री पद पर बैठा व्यक्ति अपने अधीनस्थ मत्रालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार का न केवल मूकदर्शक बना रहा, बल्कि वह देश से झूठ बोलने का अपराध भी करता रहा। 2जी स्पेक्ट्रम मामले मे उन्होंने पहले कहा कि उन्हें घोटाले की कोई खबर नहीं है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय का चाबुक पड़ने के बाद उन्होंने अपनी सफाई देते हुए कहा कि ए राजा ने उनके निर्देशों की अनदेखी की है। भला एक प्रधानमत्री को इतनी गुलाटिया मारने की क्या मजबूरी है? इन प्रश्नों का उत्तार काग्रेस द्वारा जनतत्र के नाम पर जनता से किया गया छल है। प्रधानमत्री मनमोहन सिह के पास पद तो है, किंतु उनके हाथ में सत्ता नहीं है। स्वय उनके मत्रिमडल के सदस्य इस वस्तुस्थिति से भलीभाति परिचित हैं, इसलिए वे सात रेसकोर्स रोड की बजाए दस जनपथ की परिक्रमा की महिमा जानते हैं। वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव का जनादेश खंडित था। तब भाजपा को 138 तो काग्रेस को इससे सात अधिक अर्थात 145 स्थान मिले थे। काग्रेस ने सोनिया गाधी के प्रधानमत्रित्व में सरकार बनाने का दावा ठोंका, किंतु उनकी विदेशी नागरिकता उनकी महत्वाकाक्षा के आगे अवरोध बन गई। सत्ता अपने हाथ में रखने के लिए सोनिया ने जनाधारहीन मनमोहन सिह को प्रधानमत्री पद पर तो बिठा दिया, किंतु सप्रग समन्वय समिति की अध्यक्षा बन सत्ता की कमान खुद सभाल ली। ऐसी गाड़ी का पटरी से उतरना स्वाभाविक था, जिसकी ड्राइवर सीट पर बैठा कोई और हो, किंतु एक्सीलेटर व ब्रेक पर किसी दूसरे के पाव हों। जनतत्र के साथ काग्रेस ने जो यह नया प्रयोग किया वह तो ध्वस्त हुआ ही, देश को भी भारी क्षति पहुंची।


काग्रेस और वामपंथी दलों के गठबधन से बनी संप्रग-1 सरकार को जल्द ही उल्टापुल्टा गठबधन की सज्ञा दी जाने लगी। कम्युनिस्टों के शिकंजे के कारण ‘आर्थिक सुधारों’ के पितामह मनमोहन सिह के हाथ बधे रहे। अर्थनीतियों को लेकर सरकार में मौजूद विरोधाभास से अर्थव्यवस्था का लड़खड़ाना स्वाभाविक था। कम्युनिस्टों द्वारा सप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण सन 2008 में सरकार को विश्वासमत से गुजरना पड़ा। सासदों की खरीदफरोख्त, जिसका खुलासा करने वाले भाजपा के दो सासद अभी जेल में बद हैं, के बल पर सप्रग सरकार बच गई। कम्युनिस्टों से निजात पाने के बाद प्रधानमत्री ने कहा था कि कम्युनिस्टों के दबाव में वह खुद को बधुआ मजदूर समझते थे। कम्युनिस्टों का बधन टूटने के बाद एक सफल अर्थशास्त्री देश की अर्थव्यवस्था को गति दे पाने में क्यों विफल रहा?


सन 2009 के लोकसभा चुनाव मे विदेशों में जमा कालेधन की वापसी को भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया था। काग्रेस ने पहले इसका उपहास उड़ाया, किंतु जब इसे व्यापक जनसमर्थन मिलने लगा तो प्रधानमत्री ने देश से वादा किया था कि सत्ता में आने के सौ दिन के अंदर वह विदेशों में जमा काले धन को वापस ले आएंगे, किंतु कालेधन के विषय पर सप्रग सरकार सोई रही। टैक्स चोर हसन अली के मामले में यदि सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार नहीं लगाई होती तो यह मसला अब तक ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहता। न्यायपालिका की सक्रियता के कारण सरकार हरकत में तो आई है, किंतु विदेशी सूत्रों से जमाखोरों के नाम जानने के बावजूद सरकार कुछ चेहरों को छिपाने पर तुली है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अन्ना हजारे द्वारा सशक्त जनलोकपाल बिल बनाने की माग को सवैधानिक पचड़ों में उलझाने की कोशिश हो रही है। देश के ढाई सौ से अधिक जिले नक्सली हिंसा से त्रस्त हैं तो इस्लामी आतक से कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभ्य समाज लहूलुहान है। कमरतोड़ महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है, किंतु विडंबना यह है कि ईमानदार अर्थशास्त्री प्रधानमत्री इन सबसे तटस्थ हैं। क्या इस परिस्थिति में सप्रग सरकार के हाथों में भारत की 120 करोड़ जनता का भविष्य सुरक्षित है?


लेखकबलबीर पुंजभाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं


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