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समाज का शर्मनाक चेहरा

जागरण मेहमान कोना
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उच्चतम न्यायालय ने हाल में एक बार फिर इस पर चिंता जताई कि उसके तमाम आदेशों-निर्देशों के बावजूद कार्यस्थलों पर महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। इसके साथ ही उसने नए सिरे से सभी राज्यों को अपने यहां के विभागों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावशाली तंत्र की स्थापना के निर्देश दिए।नि:संदेह यह समस्या गंभीर है। पहले हरियाणा में दुष्कर्म की घटनाओं में वृद्धि राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी और फिर इनके संदर्भ में अनेक राजनेताओं और खाप अध्यक्षों की टिप्पणियों ने समाज को शर्मसार किया। सभ्यता के उत्तर आधुनिक होने, नारी के सशक्त होने, समाज के शिक्षित होने के बावजूद महिलाओं के यौन शोषण की बढ़ती घटनाएं समाज को आदिम साबित कर रही हैं। जिस दिल्ली में सत्तारूढ़ दल की सबसे ताकतवर नेता के साथ-साथ लोकसभा की अध्यक्ष और विपक्ष की नेता आबाद हों, उसके बारे में ये आंकड़े रोंगटे खड़े कर देते हैं कि देश में महिलाओं के प्रति होने वाले कुल अपराधों में दिल्ली का 9 फीसद योगदान है। यही नहीं, दिल्ली के कुल अपराधों में 34 फीसदी अपराध केवल महिलाओें के साथ होते हैं।


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दिल्ली की बात छोडि़ए, जिस अमेरिका को दुनिया का सबसे उन्नत देश माना जाता है उसके राष्ट्रपतियों पर भी यौन शोषण के आरोप लगते रहे हैं। 90 के दशक में अमेरिका की महिला सैनिकों ने सेना में भर्ती के समय यौन शोषण की बात कहकर तहलका मचा दिया था। महिलाओं के साथ हो रहे इन अपराधों की रोकथाम को लेकर सबके अपने तर्क हैं। ओम प्रकाश चौटाला ने तर्क दिया कि बाल विवाह करने से दुष्कर्म की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है, किंतु आंकड़े उनके सुझाव को झुठलाते हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बाल विवाह की दर सर्वाधिक है। मध्य प्रदेश के रतलाम, मंदसौर, राजगढ़ और गुना में 78 फीसद लड़कियों का विवाह 14 से 19 वर्ष के बीच हो जाता है, लेकिन यहां भी छेड़छाड़ और दुष्कर्म की शिकायतें वैसे ही हैं, जैसे अन्य जगहों पर। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि औरत को अपना चेहरा और बदन ढककर रखना चाहिए ताकि उस पर किसी की नजर न पड़े। अरब देशों में औरतें ऐसा ही करती हैं, फिर भी उनके साथ दुष्कर्म होते हैं। इसके उलट आदिवासी समाजों में जहां महिलाएं लगभग नग्न या अ‌र्द्धनग्न रहती हैं, दुष्कर्म की घटनाएं लगभग शून्य हैं। कुछ विचारक मानते थे कि जब समाज स्त्री-पुरुष के संबंधों से पाबंदियां हटा लेगा और स्त्री दुर्लभ प्राणी से सुलभ की श्रेणी में आ जाएगी तो उसके प्रति अपराध कम होंगे, लेकिन पश्चिमी देशों के उदाहरण इस दलील को ठुकराते हैं। वहां भी उनके साथ दुष्कर्म नहीं रुके।


दरअसल, समस्या पुरुषों की मानसिकता में है। यह वही मानसिकता है जो स्ति्रयों के प्रति पुरुषों के मन में सम्मान का भाव जागृत नहीं होने देती। पिछले दिनों लखनऊ में एक आइएएस अधिकारी ने ट्रेन में जब एक महिला के साथ छेड़छाड़ की तो उस अधिकारी को बचाने के लिए कई आइएएस अधिकारी लामबंद हुए। खबरें हैं कि मुख्यमंत्री की सांसद पत्नी डिंपल यादव ने हस्तक्षेप किया तब जाकर उस अधिकारी को जेल भेजा जा सका। यह उस प्रशासनिक सेवा का हाल है जिसे इस्पात का चौखटा कहा जाता है। स्त्री की देह उसकी अपनी नहीं है। उसे भी पुरुष अपने ढंग से नियंत्रित करता है। तमाम कट्टरपंथी महिलाओें के लिए ड्रेस कोड बनाते हैं। ऐसा क्यों होता है? पुरुषों ने स्ति्रयों पर कब्जा करने के लिए धर्म की आड़ भी ली। इस्लाम में औरतों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। पाकिस्तान में जिया उल हक के दौर में हदूद जैसा कानून बना, जिसमें दुष्कर्म की शिकार महिला को चार चश्मदीद गवाह पेश करने पड़ते हैं और असफल रहने पर उस महिला को छह वर्ष की सजा मिलती है। यानी शुचिता केवल औरत के लिए अनिवार्य है। अफ्रीका के आदिम कबीलों में औरत का कौमार्य परीक्षण किया जाता है, लेकिन पुरुष के लिए कुंवारा होना कोई शर्त नहीं है। आखिर यह कैसी मानसिकता है जो औरतों को एक वस्तु मानती है। क्यों समाज के एक बड़े वर्ग में स्ति्रयों की इच्छा का कोई मूल्य नहीं है? साहित्य में स्त्री विमर्श जरूर चर्चा में है, लेकिन स्त्री विमर्श केवल स्त्री की देह उघाड़ने और उसके नख-शिख सौंदर्य के रूपगान में ही ज्यादा मस्त रहा।


स्ति्रयों के साथ हो रहे यौन अपराधों का एक सामाजिक संदर्भ भी है। दुष्कर्म की घटनाएं दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के साथ ही ज्यादा हो रही हैं, क्योंकि वहां प्रतिरोध की गुंजाइश कम है। अमेरिका सहित पश्चिम के कई मुल्कों में महिलाएं कभी सत्ताशीर्ष पर नहीं पहुंचीं, लेकिन तीसरी दुनिया के देशों मसलन भारत, पाक, श्रीलंका, बांग्लादेश के लिए यह एक साथ गौरव और शर्म का विषय है कि यहां महिलाओं को सत्ता प्रमुख बनने का मौका मिला, फिर भी आम महिला सशक्तीकरण से दूर रही। बेनजीर भुट्टो अपने कार्यकाल में हदूद जैसे अमानवीय कानून को रद करने का साहस नहीं कर पाई थीं। स्ति्रयों के साथ छेड़छाड़ की सबसे अधिक घटनाएं उनके अपने परिवार और रिश्तेदारी के लोग करते हैं। किसी लड़की को लड़के से अलग होने और उसके स्त्री होने का अहसास भी उसके परिवार के लोग ही कराते है। तभी तो किसी ने कहा है कि स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है। दुनिया में दलितों, गुलामों और मजदूरों को जब अपनी लाचारी और बेबसी का अहसास हुआ तो अपनी मुक्ति के लिए वे जाति-धर्म की बंदिशें तोड़कर एक हुए। आज नारी को शोषण से मुक्ति के लिए शक्ति की जरूरत है और उसका एक ही रास्ता है कि दुनिया की औरतें एक हों।


लेखक कौशलेन्द्र प्रताप यादव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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