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कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग-1 और संप्रग-2 सरकार में हुए सिलसिलेवार घोटालों के बाद पार्टी की छवि को नुकसान हुआ है और आम जनता में भी सरकार के खिलाफ गुस्सा साफ दिखाई दे रहा है। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका तो कांग्रेस के सिपहसालार भ्रष्टाचार पर गंभीर होने के बजाय अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को भ्रष्ट बताने में जुट गए। कभी कांग्रेस के कई आला मंत्री और नेता बाबा रामदेव के योग शिविर में बैठकर अनुलोम-विलोम करते नजर आते थे, लेकिन जब बाबा ने काले धन का मसला उठाया तो दिग्विजय सिंह बाबा रामदेव को ठग बताने में जुट गए। अब पार्टी के युवा सांसद मनीष तिवारी असभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हुए अन्ना हजारे को भ्रष्ट बता रहे हैं। मनीष तिवारी का कहना था था कि अन्ना तुम खुद ही भ्रष्ट हो। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि अदालत द्वारा नियुक्त किए गए जांच आयोग ने ऐसा कहा है। दरअसल, इस तरह की भाषा का इस्तेमाल अब कांग्रेस में कुछ खास किस्म के नेता करने लगे हैं।
24 अकबर रोड पर कांग्रेस मुख्यालय के गलियारों में यह भी सुनने को आता है कि इस तरह के बयान देने वाले नेता दस जनपथ और राहुल गांधी की नजरों में खुद को पार्टी का तेजतर्रार और वफादार बताने की कोशिशों में जुटे रहते हैं। हर नेता राहुल गांधी के करीब आने के लिए लालायित है और इसके चलते वह ऐसे बेतुके बयान देकर राहुल गांधी की नजरों में चढ़ना चाहता है। यह बात अलग है कि जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इलाज के लिए विदेश गई तो कुछ तथाकथित वफादार नेताओं को कोर कमेटी में अपना नाम नहीं देखकर झटका लगा। ऐसे ही कुछ नेताओं ने इन दिनों रहस्यमय ढंग से चुप्पी भी साध रखी है। इस कमेटी में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, रक्षामंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एंटनी, सोनिया के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल और पार्टी प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी को शामिल किया गया।
सोनिया गांधी कोर कमेटी तो बना गई, लेकिन कांग्रेस में इसके बाद से राजनीतिक खींचतान जमकर चल रही है। सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में कांग्रेस पार्टी इन दिनों एक साथ कई मोर्चो पर लड़ाई लड़ रही है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का यह रवैया क्या वाकई देश हित में कहा जा सकता है? 74 साल के एक बुजुर्ग ने अपनी सादगी, संवेदनशीलता और गांधीवादी तरीके से देश के युवाओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट कर दिया और कांग्रेस के एक मंत्री वीरभद्र सिंह को यह मदारी के डमरू की ताल पर एकजुट होने वाली भीड़ नजर आती है। कांग्रेस के कुछ नेताओं में भले ही बेतुके बयान देने की होड़ लगी हो, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि कांग्रेस में अनिल शास्त्री जैसे संजीदा किस्म के नेताओं की भी भरमार है। यह बात अलग है कि इस तरह के नेताओं को पार्टी ने हाशिये पर लाकर रख दिया है। मनीष तिवारी के बयान के बाद केंद्रीय मंत्री रह चुके और पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल शास्त्री ने साफ कहा कि अन्ना हजारे को भ्रष्ट कहना गलत होगा।
अनिल शास्त्री कुछ भी कहें, लेकिन कांग्रेस का कोई नेता अन्ना हजारे के आंदोलन को लोकतंत्र के खिलाफ बता रहा है तो किसी को लगता है कि संसद के विशेषाधिकार का हनन हो रहा है। इन सबके बीच सबसे ज्यादा हैरानी अन्ना के आंदोलन पर कांग्रेस पार्टी के युवा महासचिव राहुल गांधी की चुप्पी पर है। दिल्ली के इंडिया गेट पर हजारों की तादाद में जुटी भीड़ राहुल गांधी के विरोध में भी नारा लगा रही थी, देश का युवा जाग गया, राहुल गांधी भाग गया। एक बुजुर्ग व्यक्ति हाथ में पोस्टर थामे हुए थे, जिसमें राहुल गांधी की फोटो के नीचे लिखा हुआ था, मैं आंदोलन में शामिल नहीं हो सकता, क्योंकि मम्मी ने आने को मना किया है। कहने का आशय यह है कि लोगों में खासतौर से युवाओं में इस बात को लेकर नाराजगी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ देश के इस सबसे बड़े आंदोलन में भले ही सारा देश एकजुट होता जा रहा है, लेकिन कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने इसे लेकर अपनी बात सामने क्यों नहीं रखी? अन्ना हजारे के आंदोलन पर राहुल गांधी की खामोशी के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस की ओर से कहा गया कि राहुल गांधी को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। वह उस वक्त बोलेंगे, जब उन्हें मुनासिब लगेगा। वह कोई तोता नहीं हैं। इस तर्क से भला कौन सहमत होगा।
डॉ शिवकुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं
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