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विश्व के लिए खास अवसर

जागरण मेहमान कोना
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C.Udaybhaskarपिछले कुछ सप्ताह से दुनिया दो प्रमुख देशों-अमेरिका और चीन के घटनाक्रम पर निगाह लगाए हुए है। अमेरिका में बराक ओबामा दूसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव जीतने में सफल रहे तो चीन में राष्ट्रपति हू जिंताओ के उत्तराधिकारी के रूप में शी जिनपिंग का चयन करीब-करीब साल भर से तय था। अमेरिका में बराक ओबामा और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी के बीच कांटे के संघर्ष की उम्मीद की जा रही थी। एक हद तक ऐसा हुआ भी, लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में प्राप्त मतों के हिसाब से ओबामा की जीत एकतरफा नजर आई। अर्थव्यवस्था के आधार पर देखें तो भारत के लिए अमेरिका और चीन, दोनों ही महत्वपूर्ण साझेदार हैं। 2030 तक चीन, अमेरिका और भारत का त्रिकोण विश्व की तीन बड़ी एकल अर्थव्यवस्थाओं का त्रिकोण बन जाएगा। फिलहाल, इन तीनों देशों की जीडीपी इस प्रकार है। अमेरिका की करीब 17000 अरब डॉलर, चीन की 7000 अरब डॉलर और भारत की 2000 अरब डॉलर। गोल्डमैन सैक्स का आकलन है कि 2030 तक चीन की अर्थव्यवस्था 25600 अरब डॉलर, अमेरिका की 22800 अरब डॉलर और भारत की 6680 अरब डॉलर पर पहुंच जाएंगी। हालांकि 2012 के अंत में इन देशों की आर्थिक स्थिति भविष्य को लेकर संदेह पैदा करती है।


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चिंताजनक अर्थव्यवस्था, वाशिंगटन में नेतृत्व के समक्ष बढ़ते राजकोषीय घाटे से निपटने की चुनौती, बीजिंग और दिल्ली के बीच सामाजिक-राजनीतिक असंतोष आदि ऐसे पहलू हैं जिनसे एक चिंताजनक तस्वीर उभरती है। समतामूलक और समावेशी सामाजिक-आर्थिक विकास इन तीनों देशों में नजर नहीं आता। वैश्विक आर्थिक मंदी की मार ने हालात को और गंभीर कर दिया है। इसकी जद में अब अपेक्षाकृत मजबूत यूरोप भी आ गया है। अमेरिका के लिए तात्कालिक प्राथमिकता बढ़ते राजकोषीय घाटे से निपटना है, जिसकी पहली परीक्षा 1 जनवरी, 2013 को होगी। भारी-भरकम घाटे पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका के लिए खर्च में कटौती और आय में बढ़ोतरी अनिवार्य हो गई है। राष्ट्रपति ओबामा और अमेरिकी कांग्रेस की राजनीतिक समझ व निर्णय लेने में सहयोग की भावना का असर अमेरिका की साख और ताकत पर पड़ेगा। अक्टूबर 2012 तक अमेरिका में सार्वजनिक ऋण बढ़कर 11400 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा अमेरिका की कुल जीडीपी का 72 फीसदी है। कर्ज की यह रकम इतनी बड़ी है कि व्यवस्थित करना बेहद मुश्किल है। अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अमेरिका अब लापरवाही नहीं बरत सकता। बढ़ते राजकोषीय घाटे के भयावह दुष्परिणाम निकलेंगे, जो अमेरिका की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विश्व महाशक्ति की उसकी हैसियत को भी बर्बाद कर सकते हैं। यह समस्या इतनी विकराल है कि अमेरिकी राजनीतिक प्रतिष्ठान की वर्तमान अवस्था, कॉरपोरेट जगत के निहित स्वार्थ और अमेरिकी नागरिकों की शानशौकत वाली जीवनशैली इसे हल करने में अड़चने डालेंगी। बीजिंग की तस्वीर भी निराशाजनक है। वर्तमान नेतृत्व को एक अरब से अधिक जनता में बढ़ते असंतोष से निपटने के उपाय तलाशने होंगे। चीन के आधे से अधिक लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और अपनी भड़ास सोशल मीडिया तथा अन्य मंचों पर अभिव्यक्त करते हैं। चीन में उच्च राजनीतिक तबके और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अमीर-गरीब के बीच चौड़ी होती खाई से उपजा असंतोष खुलकर सामने आ रहा है। 1989 का थ्येन आन मन नरसंहार सामाजिक-राजनीतिक असंतोष की ही पैदाइश थी। इस प्रकार की किसी घटना की पुनरावृत्ति बीजिंग को हर हाल में रोकनी होगी।


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सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ चीन आर्थिक-सामाजिक रूपांतरण के दौर से भी गुजर रहा है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) में शीर्ष स्तर पर जो चिंतन-मनन चल रहा है वह हू जिंताओ के 8 नवंबर के भाषण में परिलक्षित होता है। चौंकाने वाले अंदाज में जिंताओ ने अपनी साथियों से कहा कि हम पृथकता और रुकावट की पुरानी राह नहीं पकड़ सकते और न ही हम अपनी पताका को बदलने के टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर चल सकते हैं। हू जिंताओ का भाषण चीन के हालात पर जबरदस्त टिप्पणी है। सीसीपी नेतृत्व में पांचवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले शी जिनपिंग क्या चीन की जटिल सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से पार पाने के लिए अधिक प्रगतिशील रास्ता अपनाएंगे? अमेरिका और यूरोप में छाई मंदी ने चीन की निर्यातोन्मुखी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। अब चीन की विकास दर सिकुड़ने लगी है। 2012 के पूर्वा‌र्द्ध में विकास दर 8 प्रतिशत पर आ गई है। यद्यपि विश्व के अन्य भागों से तुलना में यह दर भी बेहद प्रभावशाली है, किंतु इससे चीन चिंतित है। देखना होगा कि शी-ली जोड़ी क्या नई नीति बनाती है? कट्टरपंथी माओवादी विचारधारा की ओर वापसी, जिसके सीसीपी में बहुत से पैरोकार हैं, से अमेरिका, जापान और भारत के साथ चीन के संबंधों में बिगाड़ आएगा। द्वीप विवादों को लेकर चीन के पहले ही जापान और अमेरिका के साथ संबंध कटु चल रहे हैं। चीन और अमेरिका के प्रशासन के साथ व्यवहार के लिए भारत में संप्रग-2 सरकार के पास करीब एक साल का प्रभावी राजनीतिक जीवन है। इस बीच विश्व को सामरिक और सुरक्षा चुनौतियों-मसलन अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया और पूर्वी एशियाई द्वीप विवाद का सामना करना पड़ेगा। ओबामा, शी या ली और मनमोहन सिंह की पहली बैठक कंबोडिया में होगी। क्या त्रिकोणीय संबंधों में सुधार के लिए प्रमुख संरचनात्मक समीक्षा पर वे सहमत होंगे? इसी में इस सदी के लिए अवसर निहित हैं।


लेखक सी उदयभाष्कर सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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Tags:America, Barack Obama, China, President, Republican, Dollar, India, CCP, Communist  Party, अमेरिका ,  बराक ओबामा, राष्ट्रपति , भारत , डॉलर, चीन, अमेरिकी कांग्रेस, जीडीपी

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