Menu
blogid : 5736 postid : 1907

राह से भटका अन्ना का आंदोलन

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Rajnath Suryaक्या अन्ना हजारे का कांग्रेस हराओ का नारा उचित है? जब सरकार की ओर से यह आश्वासन मिल चुका है कि संसद के शीतकालीन सत्र में लोकपाल विधेयक पेश करने के लिए वह प्रतिबद्ध है तो फिर अन्ना हजारे को उसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए थी या नहीं? कांग्रेस की ओर से बार-बार कहा जा रहा है कि विधेयक शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा, तो फिर उन्होंने कांग्रेस हराओ का नारा क्यों दिया? उनका अभियान तो इस दौरान सभी सांसदों को घेरने का था, उसका क्या हुआ? अन्ना की तरफ से कहा जा रहा है कि कांग्रेस हराओ का अभियान दबाव बनाने के लिए है। टीम अन्ना कह रही है कि या तो कांग्रेस लिखकर दे कि वह जनलोकपाल विधेयक का समर्थन करती है, जैसा कि भाजपा के अध्यक्ष ने किया है तभी उस पर भरोसा किया जा सकता है। अन्ना के इस रुख से कांग्रेस में उबाल आना स्वाभाविक है और उसने जहां उन्हें राजनीति में आने की चुनौती दी है वहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा यह कहे जाने कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जहां भी अभियान चलता है संघ के स्वयंसेवक उसमें भाग लेते रहे हैं, को मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह की इस मुहिम को और भी हवा दे दी है कि यह अभियान भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बल्कि अगले निर्वाचन में भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए चलाया जा रहा है। अन्ना ने हिसार के इस चुनाव के साथ ही अगले वर्ष होने वाले पांच राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन में, विशेषकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार का ऐलान कर दिया है।


निश्चय ही विधानसभाओं के चुनाव संसद के शीतकालीन अधिवेशन के बाद ही होंगे तो फिर क्या तब तक उन्हें प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी? अन्ना शुरू से कह रहे हैं कि उनका अभियान भ्रष्टाचार के खिलाफ है, किसी पार्टी के खिलाफ नहीं। उन्होंने कांग्रेस में भी अच्छे लोगों के होने की बात कही थी। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या भ्रष्टाचारी सिर्फ कांग्रेस में ही हैं। राजनीतिक दल चाहे वे राष्ट्रीय हों या क्षेत्रीय, क्या इससे सर्वथा मुक्त हैं? इन सवालों का अन्ना की तरफ से अभी माकूल जवाब नहीं मिला है कि अचानक उनकी कांग्रेस विरोधी मुहिम का निहितार्थ क्या है? अन्ना को युवा पीढ़ी के लिए ‘रोल मॉडल’ मान लिया गया था। क्या उस भावना को इस अभियान के कारण आघात नहीं पहुंचेगा। अन्ना और उनकी टीम ने सरकार की अपार शक्ति के मुकाबले जीत हासिल की थी, क्या वह अपना धैर्य खो चुकी है? इस पर बहस भी चल रही है तथा पक्ष और विपक्ष में अभिमत भी व्यक्त किए जा रहे हैं, लेकिन किसी के भी समझ में नहीं आ रहा है कि आंदोलन का स्वरूप क्यों बदल गया है? अन्ना और उनके सहयोगियों ने साफ-साफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जो कुछ पिछले दिनों उन्होंने कहा है उससे इसके कारण का संकेत ढूंढा जा सकता है।


अन्ना ने प्रधानमंत्री की सौजन्यता और सकारात्मक रुख की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे तो भले आदमी हैं, काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ करना चाहते हैं, लेकिन जिस ‘रिमोट कंट्रोल’ से उनकी सरकार का संचालन हो रहा है वह ऐसा नहीं होने दे रहा है। उनका सीधा आरोप कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर है। इसी के साथ पिछले दिनों कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री मान लिए गए राहुल गांधी ने भी उनकी जिस प्रकार से आलोचना की उससे वह काफी खिन्न हुए हैं और उन्होंने यह नतीजा निकाला है कि कांग्रेस को तभी झुकाया जा सकता है जब उसे यह समझ में आ जाए कि उसका वोट बैंक खिसक रहा है। सोनिया-राहुल के निर्वाचन क्षेत्रों में चलाए गए जनलोकपाल बिल के पक्ष में मत संग्रह भी इसी उद्देश्य से कराए गए थे। दोनों ही निर्वाचन क्षेत्रों में अस्सी प्रतिशत से अधिक लोगों ने जनलोकपाल बिल के पक्ष में मत प्रगट किया है। अन्ना और उसकी टीम को संभवत: यह समझ आ गया कि जब तक कांग्रेस को चुनाव में हारने का भय नहीं होगा तब तक वह कोई सार्थक निर्णय नहीं लेगी। संभवत: महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा अन्ना को दिया गया यह आश्वासन कि उनका संगठन और राज्य सरकार प्रभावी लोकपाल के पक्ष में है, कांग्रेस के भयभीत होने के प्रथम लक्षण के रूप में प्रगट हुआ है। प्रधानमंत्री की विवशता की स्थिति के कारण पिछले दिनों भ्रष्टाचार के मामले में मंत्री-मंत्री के आचरण में भेदभाव करना कांग्रेस की अविश्वसनीयता बढ़ाने का कारण बना है। एक ओर वह सहयोगी दलों के मंत्रियों के खिलाफ सबूत जुटाने में लगी है तो दूसरी ओर कांग्रेसी मंत्रियों को बचाने के लिए हर उपाय कर रही है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जिन लोगों ने संसद में मतदान के लिए घूस देने के मामले का पर्दाफाश किया उन्हें भी जेल में डाल दिया गया है। ऐसी सरकार से न्यायपूर्वक आचरण की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?


कांग्रेस के आचरण से अच्छा आचरण तो मायावती कर रही हैं, जिन्होंने जनता के भयवश अब तक अपने आठ मंत्रियों को हटा दिया है तथा कई अन्य को बाहर निकालने का रास्ता साफ हो रहा है। पर्दे के पीछे से काम करने की सोनिया गांधी ओर राहुल गांधी की क्षमता और नियोजन के निहितार्थ पर भी अब खुलकर टिप्पणी होने लगी है। इन सबके बावजूद अन्ना हजारे को कांग्रेस हराओ अभियान की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी। इससे स्वाभाविक रूप से उनकी नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों को मुखरित होने का अवसर मिलेगा। देश की जनता यह भली भांति समझ चुकी है कि भ्रष्टाचार का स्नोत कहां से निकलकर देश को दंश दे रहा है। इसलिए अच्छा होता कि अन्ना का अभियान भ्रष्टाचार के खिलाफ तक ही रहता। तब शायद कांग्रेस का भी एक बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा हो जाता, जैसा जयप्रकाश के आंदोलन के साथ हुआ था।


लेखक राजनाथ सिंह सूर्य राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh