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सेनाध्यक्ष की उम्र पर जंग

जागरण मेहमान कोना
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सरकार बनाम सेनाध्यक्ष विवाद सुलझने की बजाय और उलझता जा रहा है। जनरल अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। अब मामला नाजुक मोड़ पर पहुंच गया है। जनरल वीके सिंह प्रमाणों के साथ दावा कर रहे हैं कि उनका जन्म 31 मई, 1951 को हुआ न कि 31 मई, 1950 को। लिहाजा वह भारतीय सेनाध्यक्ष के पद पर मई, 2013 तक रहने के हकदार हैं। जनरल सिंह ने अपने दावे को मजबूती देने के लिहाज से सरकार को दस्तावेजों के साथ एक मांगपत्र दिया। इसमें उनका जन्म प्रमाणपत्र भी शामिल है। मूलत: राजपूत रेजीमेंट से संबंध रखने वाले जनरल सिंह के किसी भी दावे को सरकार मानने के लिए तैयार नहीं है। सरकार का मत है कि जनरल को आगामी 31 मई को ही अपना पद छोड़ना होगा। रक्षा मंत्रालय ने पिछले हफ्ते में जनरल की मांग को खारिज कर दिया था।


दावे को खारिज करते हुए मंत्रालय ने कहा कि जनरल की वही जन्मतिथि मानी जा रही है, जो उन्होंने सेना में भर्ती के वक्त जन्म प्रमाणपत्र के साथ दी थी। सरकार ने फैसला देश के अटार्नी जनरल से सलाह-मशविरा करने के बाद लिया। पर जनरल सिंह निराश-हताश होने वाले नहीं लगते। आखिर उन्होंने रणभूमि में दुश्मन को लोहे के चने चबवाए हैं। वह सन 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में लड़े थे। उनके पिता भी भारतीय सेना में कर्नल थे। जाहिर है, यदि कोई और होता तो वह संभवत: सरकारी फैसले के बाद शांत बैठ जाता। खबर है कि जनरल सिंह अब अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। वह 5 जनवरी को म्यांमार यात्रा पर निकलने से पहले सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। सरकार और जनरल के बीच जो कुछ चल रहा है, वह बेहद निराशाजनक है। करीब छह महीने से यह सारा मसला मीडिया की सुर्खियों में है। इसमें दोनों पक्ष अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे। भारत पर नजर रखने वाले देश, खासतौर पर चीन तथा पाकिस्तान, सरकार और जनरल के बीच चल रही रस्साकशी को किस तरह से ले रहे होंगे, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। वे आनंद में होंगे। जाहिर है, सरकार बनाम जनरल विवाद से भारत के रक्षा क्षेत्र की साख पर बट्टा लग रहा है। अभी और कितना लगेगा, यह वक्त बताएगा। जनरल सिंह के जन्म संबंधी विवाद के बीच में सरकार को अब नए सेनाध्यक्ष के नाम की भी घोषणा करनी होगी। रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी को इस संबंध में फैसला लेना होगा। आमतौर पर नियम यह है कि नए सेनाध्यक्ष के नाम का फैसला निवर्तमान सेनाध्यक्ष के रिटायर होने से दो माह पहले हो जाता है।


जनरल सिंह की जन्मतिथि को लेकर समूचा विवाद साल 2006 में शुरू हो गया था जब सरकार के समक्ष उनका नाम को‌र्प्स कमांडर के रूप में आया। विगत साल रक्षा मंत्री एके एंटनी ने संसद को एक सवाल के जवाब में बताया था कि साल 2006 में जनरल सिंह की जन्मतिथि को लेकर जब मसला उठा तबसे ही उनकी जन्मतिथि 10 मई, 1950 मानी जा रही है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी इस विवाद में कूद गए हैं। वे जनरल सिंह का साथ दे रहे हैं। उन्होंने इस बाबत बयान भी दिया। यह बात समझ से परे है कि कोई कांग्रेसी नेता, जो फिर से मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रखता है, एक प्रकार से अपनी ही सरकार के खिलाफ क्यों खड़ा हो गया है। जनरल सिंह को समझना चाहिए कि यदि सरकार के मन में उनको लेकर किसी प्रकार की दुर्भावना होती तो उन्हें दुनिया की इतनी बेहतरीन सेना की कमान पहले ही नहीं सौंपी जाती। अमोल पालेकर की फिल्म प्रहार : दि फाइनल अटैक में छोटे से किरदार को शानदार तरीके से निभाने वाले जनरल सिंह को यह भी समझना चाहिए कि सरकार और उनके बीच चल रहे विवाद से समूची भारतीय सेना पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा होगा।


लेखक विवेक शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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