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जांच से बच क्यों रही बीसीसीआइ

जागरण मेहमान कोना
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पहले पाकिस्तान के तीन क्रिकेटरों को स्पॉट फिक्सिंग के मामले में सजा, इसके बाद आइसीसी के एंटी करप्शन यूनिट के पूर्व मुखिया पॉल कॉन्डोन का बयान कि दुनिया भर की टीमें मैच फिक्सिंग में शामिल रही हैं और इसके एक ही दिन बाद भारत के पूर्व क्रिकेटर विनोद कांबली का आरोप कि 1996 व‌र्ल्ड कप का सेमीफाइनल फिक्स था। इन तीनों प्रकरण ने क्रिकेट की दुनिया को एक बार फिर से फिक्सिंग के दलदल में ला दिया है। वैसे कांबली का आरोप दमदार नहीं दिख रहा है। उनके मुताबिक तत्कालिन कप्तान अजहरुद्दीन ने 1996 व‌र्ल्ड कप के सेमीफाइनल में टॉस जीतकर बल्लेबाजी करने के फैसले को बदलकर फील्डिंग को चुना था। इसलिए यह मैच फिक्स था। अजहरुद्दीन पर लगया गया आरोप इसलिए भी संगीन हो जाता, क्योंकि बीसीसीआइ ने 2000 में अजहर पर फिक्सिंग के आरोप में आजीवन पाबंदी लगा दी थी।


बावजूद इसके कांबली का आरोप सही नहीं दिख रहा है, क्योंकि अजहर के मुताबिक टॉस जीतने पर फील्डिंग करने का फैसला टीम की बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया था। संजय मांजरेकर सहित टीम के कई खिलाडि़यों और तब के कोच अजीत वाडेकर ने भी इसकी तस्दीक की है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या बीसीसीआइ को कांबली के आरोपों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए या फिर बीसीसीआइ को इस बात की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए कि कोई खिलाड़ी बिना किसी पुख्ता सबूत के इस तरह के गंभीर आरोप दूसरे खिलाडि़यों पर नहीं लगा सके। केंद्रीय खेलमंत्री अजय माकन ने बीसीसीआइ से इस मामले की जांच कराने को भी कहा, लेकिन बीसीसीआइ ने इससे इनकार कर दिया। लेकिन बेहतर होता है कि बीसीसीआइ इस मामले में कांबली से ही पूछताछ करती और यह जानने की कोशिश करती कि 15 साल बाद वे किस आधार पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं।


कांबली का आरोप भले गलत हो, लेकिन यह भी सही है कि भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट मैचों की फिक्सिंग एक असंगठित उद्योग में तब्दील हो चुका है। दरअसल, भारत क्रिकेट की दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। बीते एक दशक के दौरान इस खेल के सबसे बड़े सितारे भी भारतीय क्रिकेट की देन हैं। बाजार और खिलाडि़यों के ग्लैमर की वजह से भारतीय क्रिकेट निश्चित तौर पर सट्टेबाजों का सबसे हॉट पिक रहा है। इंग्लैंड की अदालत में सुनवाई के दौरान ही यह बात सामने आई कि भारत-पाक के बीच एक क्रिकेट मैच के दौरान सैकड़ों करोड़ का सट्टा लगता है और यह रकम एक मैच के दौरान 5,000 करोड़ रुपये तक भी जा पहुंचती है। यह इतनी बड़ी रकम है कि इसको बनाने के लिए भारतीय क्रिकेटरों को भी प्रभावित करने की लगातार कोशिश की जाती रही होंगी। आइसीसी के तमाम दावों के बीच सट्टेबाजों और मैच फिक्सरों की हिम्मत लगातार बढ़ रही है। इसी साल के व‌र्ल्ड कप के बाद आइसीसी की एक रिपोर्ट में यह सामने आई थी कि सट्टेबाजों ने दुनिया भर के करीब 55-56 क्रिकेटरों से संपर्क साधा था। इन क्रिकेटरों ने बाकायदा आइसीसी को इसके बारे में सूचित भी किया था। हालांकि एक पहलू ऐसा है, जिससे थोड़ी उम्मीद बंधती है कि भारतीय क्रिकेटर जल्दी नहीं फिसलते होंगे, क्योंकि उन्हें दुनिया भर के खिलाडि़यों के मुकाबले क्रिकेट खेलने पर बेहतर पैसा मिलता है।


खिलाडि़यों के विज्ञापन का बाजार भी सैकड़ों करोड़ का है, जहां वे अपने साफ-सुथरी छवि से ज्यादा से ज्यादा पैसा बना रहे हैं। बावजूद इसके दावे से नहीं कहा जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट में सबकुछ ठीक चल रहा है। क्योंकि हर इंटरनेशनल मैच से पहले देश के अलग-अलग जगहों से सट्टेबाजों के गिरफ्तार होने की बात सामने आती है। आइपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी ने तो अपने ट्विटर खाते में लिखा है कि मैच से जुड़े अंपायर और प्रशासक भी मैच फिक्स करने में संलिप्त होते हैं, लेकिन उनसे संबंधित शिकायतों को दबा दिया जाता है। ऐसे में अब यह मांग उठनी स्वाभाविक है कि बीसीसीआइ इस मामले की गंभीरता को समझते हुए सख्त कदम उठाए। इंग्लैंड की तरह ही इस बात का प्रावधान हो कि फिक्सिंग में शामिल खिलाडि़यों पर आपराधिक मामले चलाए जाएं। हालांकि इसके लिए जरूरी है कि बीसीसीआइ के साथ सरकार भी सक्रियता दिखाकर इसके लिए संबंधित कानूनी पहल करे। लेकिन बोर्ड और सरकार का रवैया इन मामलों में कितना अलग होता है, इसे अभी भारत के प्रस्तावित खेल विधेयक के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।


लेखक प्रदीप कुमार टीवी पत्रकार हैं


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