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अनिश्चितता के दौर में बीजिंग

जागरण मेहमान कोना
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अनिश्चितता के दौर में बीजिंग हत्या, भ्रष्टाचार, यौनाचार के आरोपों से घिरे चीन के शीर्ष नेता बो शिलाई को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। राष्ट्रपति हू जिंताओ की अध्यक्षता में हुई बैठक में दागदार बो को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उनके खिलाफ अब आपराधिक मामले चलाए जाएंगे। लंबे समय तक बो शिलाई और उनकी पत्नी ग्यू केलाई का चोंगकिंग पर एकछत्र राज रहा है। भ्रष्टाचार के अलावा इन पर एक ब्रिटिश व्यापारी के सहयोगी की हत्या का आरोप है। इस फैसले से बो मामले का पटाक्षेप हो गया है-कम से कम सार्वजनिक तौर पर। इसी के साथ एक दशक के बाद चीन में नेतृत्व परिवर्तन का रास्ता साफ हो गया है। राष्ट्रपति हू जिंताओ पद से हट जाएंगे और चीन के उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग को कम्युनिस्ट पार्टी की बागडोर सौंप देंगे।


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C.Uday Bhaskarपार्टी ने यह भी घोषणा की है कि अब 18वीं पार्टी कांग्रेस 8 नवंबर को होगी तथा इसी में हू से शी को नेतृत्व परिवर्तन पर मुहर लग जाएगी। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में अंदरूनी घटनाक्रम, चाहे यह धुंधला हो या फिर खुलेआम और बीजिंग में तीव्र सत्ता संघर्ष व इससे जुड़े सामाजिक-आर्थिक संकेतक क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन गए हैं। इनका वृहत्तर वैश्विक सामरिक माहौल पर भी असर पड़ेगा। चेयरमैन माओ के समय से ही परंपरावादी और बीजिंग में पार्टी के कट्टरपंथियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ अनुदार तथा अपेक्षाकृत उदार व आगे देखने वाले विचारकों के बीच बंद दरवाजों में चलने वाला भीषण सत्ता संघर्ष अब और तीक्ष्ण और मुखर हो चला है। बहुत से बड़े नेताओं का नाटकीय पतन हो गया है। कुछ की रहस्यमयी हवाई दुर्घटनाओं में मौत हो चुकी है और कुछ अन्य भ्रष्टाचार के आरोपों में फंस गए हैं या फिर उनके परिजन शर्मनाक आचरण के दोषी पाए गए हैं।


हालिया वर्षो में जब हू जिंताओ की सत्ता पर पकड़ मजबूत हो चली थी, बीजिंग के एक पूर्व मेयर चेन जितोंग और शंघाई में एक शक्तिशाली पार्टी सचिव चेन लियांग्यू, दोनों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था और उन्हें 2007 में जेल में डाल दिया गया था। चीन के जानकारों का दावा है कि किसी राजनेता से जुड़े हुए किसी भी आपराधिक मामले को चीन में जारी सत्ता संघर्ष से अलग करके नहीं देखा जा सकता। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में जबरदस्त चालबाजियां और दांवपेंच आजमाए जा रहे हैं, जहां बहुत-कुछ दांव पर लगा है और दांव उलटा पड़ने पर सामना क्रूरता से होता है। बो शिलाई मामले की अंदरूनी पड़ताल से पता चलता है कि संघर्षरत गुटों में एक तरह की सर्वसम्मति बनी है-यह देखते हुए कि बो के बहुत से कट्टर समर्थक हैं और पार्टी इस मामले को 8 नवंबर से पहले बंद करने के लिए सहमत है। उम्मीद जताई जा रही है कि नवंबर के आखिर तक हू जिंताओ की टीम सत्ता नई टीम को सौंप देगी और शीर्ष नेतृत्व में आमूलचूल बदलाव हो जाएगा।


इस प्रकार शी जिनपिंग युग की शुरुआत हो जाएगी। अतीत में बीजिंग के आंतरिक सत्ता संघर्ष के चीन की विदेश और सुरक्षा नीतियों पर पड़े प्रभाव को देखते हुए वर्तमान घटनाक्रम से चीन के पड़ोसी राज्यों और खासतौर पर भारत को सचेत हो जाना चाहिए। बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर 1962 युद्ध, जिसके माध्यम से माओ भारत और नेहरू को सबक सिखाना चाहते थे, के पीछे एक बड़ा कारण उस समय चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में जारी कट्टरपंथियों व उदारवादियों के बीच सत्ता संघर्ष का बड़ा हाथ था। फिलहाल चीन एक जटिल और अनिश्चित दौर से गुजर रहा है, जो 2008 में सफल बीजिंग ओलंपिक और शांतिपूर्ण उदय के उल्लास से शुरू हुआ था। पिछले चार वर्षों में अपने पड़ोसियों के साथ सख्त व्यवहार तथा हू जिंताओ की मूल्यवान राजनीतिक साख के कारण चीन की बढ़ती कूटनीतिक स्वीकार्यता बढ़ी है। दक्षिण चीन सागर में बीजिंग की दबंगई के बाद आसियान देश सावधान हो गए हैं। फिलहाल चीन एक निर्जन द्वीप को लेकर जापान के साथ उलझा हुआ है। कुछ अन्य कारणों के चलते अमेरिका के साथ चीन के संबंध तनावपूर्ण हैं। अर्थव्यवस्था की अंदरूनी स्थिति धुंधली नजर आ रही है और हू जिंताओ-वेन जियाबाओ द्वारा जिस प्रोत्साहन की उम्मीद की जा रही थी वह भी अपेक्षानुरूप नहीं रहा है।


औद्योगिक अशांति बढ़ती जा रही है और 23 सितंबर को उत्तर चीन के एक शहर में हुए विरोध प्रदर्शन आने वाले तूफान की सूचना दे रहे हैं। इन परिस्थितियों में समझदारी का तकाजा है कि बीजिंग अपने सबसे बड़े पड़ोसी के साथ संबंध शांतिपूर्ण बनाए रखे। यही दृष्टिकोण दिल्ली का भी होना चाहिए। ध्यान रहे कि अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव 6 नवंबर को होना है और चीन का नेतृत्व परिवर्तन दो दिन बाद यानी 8 नवंबर को। अगले दशक में चीन के दो सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध अमेरिका और भारत के साथ रहेंगे। नेतृत्व परिवर्तन के दौरान चीन और अमेरिका की विदेश नीति में किसी बड़े बदलाव की अपेक्षा नहीं की जा सकती। चाहे लोकतंत्र हो या फिर तानाशाही, अनिश्चित घरेलू हालात में विदेश नीति संबंधी मामले नेपथ्य में चले जाते हैं। एक सख्त नेता की छवि तथा राष्ट्रवादी कार्ड की बातें तो मीडिया और साइबर जगत की उपज हैं। चीन में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या करोड़ों में है। लाखों चीनी ब्लॉगर और सोशल मीडियाकर्मी चीन में जनमत को प्रभावित करने की बड़ी शक्ति बन गए हैं। बो शिलाई मामले के बाद उम्मीद की जा सकती है कि हू-शी हस्तातंरण अपेक्षाकृत सहज और शांतिपूर्ण होगा और चीन उस संतुलन को फिर से पा लेगा जो हू जिंताओ के कार्यकाल के आखिरी दौर में बिगड़ गया था।


लेखक  सी. उदयभाष्कर सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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Tag:China, Beijing, President, Communist Party ,Beijing Olympics चीन , बीजिंग , प्रेसिडेंट , कोम्मुनिस्ट  पार्टी  ,बीजिंग  ओलंपिक्स

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