Menu
blogid : 5736 postid : 3373

पहले किसे मिले भारत रत्न

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments


देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न अब तक केवल साहित्य, कला, विज्ञान और लोकसेवा के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए दिया जाता था, लेकिन पिछले दिनों इसमें बदलाव कर दिया गया। लिहाजा, अब किसी भी मानवीय कार्य में उल्लेखनीय योगदान देने वालों को भारत रत्न दिया जा सकता है। साफ है कि केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद अब खेल की दुनिया के दिग्गजों को भी देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिए जाने का रास्ता साफ हो गया। खेल मंत्रालय की ओर से ही भारत सरकार को इस बाबत एक पत्र भेजा गया था, जिसके बाद सरकार ने इस बदलाव को मंजूरी दी है। सरकार के इस कदम की प्रशंसा के साथ कुछ विवाद भी शुरू हो गया है। मसलन, भारत रत्न सबसे पहले किस खिलाड़ी को दिया जाना चाहिए- सचिन तेंदुलकर या फिर ध्यान चंद को। मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी बीते कई सालों से इस मसले पर नजर रखे हुए हैं। इस खबर को देने के बाद उनकी पहली टिप्पणी यही थी कि सचिन को सम्मान देने के लिए सरकार ने यह बदलाव किया। इस टिप्पणी में दम है, क्योंकि बीते कुछ सालों से जिस तरह से सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने की मांग ने जोर पकड़ा हुआ है, उसका दबाव सरकार पर जरूर पड़ा होगा। तभी तो 57 सालों के बाद सरकार को प्रावधान में बदलाव करना पड़ा। ऐसा भी नहीं है कि इन सालों के दौरान भारतीय खेल को कोई सितारा नहीं मिला था, लेकिन हकीकत यही है कि कोई भी सितारा उस तरह से अपने हुनर, बाजार और मीडिया को नहीं साध पाया, जिस तरह से तेंदुलकर ने कम से कम बीते दो दशक से संभाला हुआ है। लिहाजा, सचिन तेंदुलकर का भारत रत्न पर दावा जितना मजबूत है, उससे ज्यादा मजबूत बना दिया गया है। कोई शक नहीं कि सचिन तेंदुलकर एक बेमिसाल क्रिकेटर हैं।


टेस्ट और वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन, सबसे ज्यादा शतक जैसे कोई 70 व‌र्ल्ड रिकॉर्ड सचिन के नाम हैं। बीते 22 सालों से वे लगातार बिना थके और रुके भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में लगे हुए हैं। क्रिकेट के प्रति उनके अनुशासन, समर्पण और प्रतिबद्धता की दूसरी मिसाल नहीं मिलती। दुनिया भर में वे भारत के एंबेसडर के तौर पर जाने जाते हैं। इन सबको मिलाकर अगर देखें तो सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलना ही चाहिए। लेकिन क्या वाकई उनका दावा इस सम्मान पर सबसे पहले बनता है? यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब आम लोगों की भावुकता के आधार पर तलाशने की कोशिश हो रही है। दरअसल, एक निष्पक्ष आकलन यह भी होना चाहिए कि क्या सचिन तेंदुलकर का भारतीय क्रिकेट में जितना योगदान है, उतना योगदान किसी दूसरे खेल के किसी सितारे का है या नहीं। खुद खेलमंत्री अजय माकन ने कहा कि उनके दिमाग में फौरी तौर पर हॉकी के जादूगर ध्यानचंद और सचिन तेंदुलकर का नाम उभर रहा है। बहुत संभव है कि सरकार इन दोनों को एक साथ ही सम्मान देने की घोषणा कर दे। अगर ऐसा होता है तो यही कहा जाएगा कि प्रावधानों में बदलाव सचिन के लिए ही किया गया है। किसी खेल और उसके लिए योगदान के मामले में मेजर ध्यानचंद सचिन तेंदुलकर से कहीं आगे दिखते हैं। उन्होंने बिना प्रचार के दौर में और सीमित संसाधनों के बूते भारतीय हॉकी को शिखर तक पहुंचाया था। न केवल भारत के लिए लगातार तीन ओलंपिक खेलों में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता, बल्कि इस खेल को राष्ट्रीय खेल में प्रतिष्ठित कराने में भी अप्रत्यक्ष तौर पर अहम योगदान दिया।


वर्ष 1936 के बर्लिन ओलंपिक में उनके खेल को देखते हुए हिटलर मंत्र मुग्ध हो गया था। हिटलर ने ध्यानचंद को बढ़ी हुई सुविधाओं और रुतबे के साथ जर्मनी की टीम की ओर से खेलने का अनुरोध किया था, लेकिन ध्यानचंद ने मातृभूमि के सामने हिटलर के अनुरोध को ठुकरा दिया था। हमें यह भी ध्यान देना होगा कि परतंत्र भारत में ध्यानचंद वैसे सितारे थे, जिन्होंने दुनिया भर में भारत की पहचान को सम्मानित ढंग से स्थापित किया था। ऐसे में ध्यानचंद को सबसे पहले भारत रत्न दिए जाने से इस सम्मान की गरिमा बढ़ेगी ही, कम नहीं होगी। कम से कम इस बहाने सरकार यह संदेश तो दे ही सकती है कि वह राष्ट्रीय खेल के प्रति संवेदनशील है। सरकार के इस संदेश से आनन-फानन में कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन आज की युवा पीढ़ी को अपने स्वर्णिम अतीत के बारे जानने का मौका मिलेगा।


मेजर ध्यानचंद के सामने हैं सचिन तेंदुलकर। उनकी कामयाबियां उन्हें अविश्वसनीय बनाती हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि तेंदुलकर से पहले भारतीय क्रिकेट की कोई पहचान नहीं थी। बतौर बल्लेबाज भी वह उस मुंबइया शैली की समृद्ध परंपरा का हिस्सा हैं, जिसने हमें विजय मर्चेट, सुनील गावस्कर और दिलीप वेंगसरकर जैसे बल्लेबाज दिए हैं। हालांकि सचिन ने इस परंपरा को अपने रंग से कहीं ज्यादा चमकदार जरूर बनाया है। उनके खेल को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं है कि वह अभी कुछ साल और क्रिकेट खेलते रहेंगे। ऐसे में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के मौके भविष्य में भी मिलते रहेंगे। उन्हें संन्यास लेने की घोषणा के बाद भी सम्मानित किया जा सकता है। इन दोनों के अलावा भी कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिनके योगदान को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनका दावा भी इस सम्मान के लिए कहीं से कमतर नहीं है। क्रिकेट की बात करें तो सुनील गावस्कर और कपिल देव इसके उपयुक्त दावेदार नजर आते हैं। दरअसल, सुनील गावस्कर पहले ऐसे भारतीय क्रिकेटर हैं, जिनकी बदौलत क्रिकेट की दुनिया में भारत की मजबूत पहचान बनी थी। वे सच्चे मायने में भारत के पहले ग्लोबल स्पोर्टस्टार थे।


वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों की चौकड़ी के सामने बिना हेलमेट के नाटे कद के गावस्कर जिस दिलेरी से रन बटोरते थे, उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती। विदेशी पिचों पर उनके लगातार रन बनाने की काबिलयत के चलते उन्हें दुनिया भर में सम्मान से देखा जाता रहा। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी वे लगातार क्रिकेट को बेहतर बनाने की कोशिशों का हिस्सा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कपिल देव ने भारत में तेज गेंदबाजी की विधा को संजीवनी दी। भारतीय क्रिकेट हमेशा इन दोनों के योगदान का ऋणी रहेगा। ऐसे में ये दोनों शख्सियत भी भारत रत्न की सशक्त दावेदार हैं। इन सितारों के अलावा दूसरे खेलों के दिग्गज भी इस सम्मान के उतने ही हकदार दिखाई दे रहे हैं। मसलन, बीते दो दशक से शतरंज को भारत के घर-घर तक पहुंचाने में विश्वनाथन आनंद का अहम योगदान रहा है। वे विश्व चैंपियन बनने वाले भारतीय खिलाड़ी तो बने ही, उनके चलते भारत में शतरंज एक खेल कैरियर के तौर पर काफी फला-फूला।


हालांकि विश्वनाथन आनंद की महानता यह है कि उन्होंने खुद इस सम्मान के लिए तेंदुलकर को कहीं ज्यादा उपयुक्त ठहराया है, लेकिन हकीकत यही है कि सचिन तेंदुलकर का जितना क्रिकेट में योगदान रहा है, शतरंज में आनंद का योगदान उससे कम नहीं है। इसी तरह भारतीय एथलीट जगत में मिल्खा सिंह और पीटी उषा का योगदान भी उन्हें भारत रत्न के दावेदारों में लाकर खड़ा करता है। इन दोनों ने उस खेल में अहम मुकाम हासिल किया, जिसमें बुनियादी तौर पर हम विश्वस्तरीय नहीं हो सकते। इन सबके बीच सुपरस्टार निशानेबाज अभिनव बिंद्रा भी उभरकर सामने आए हैं। वे ओलंपिक इतिहास में भारत की ओर से गोल्ड मेडल जीतने वाले इकलौते खिलाड़ी हैं। लिहाजा, भारत रत्न पर उनका भी दावा मजबूत है। बिंद्रा के नाम की अनुशंसा भारतीय निशानेबाजी संघ ने भी कर दी है, लेकिन बिंद्रा के साथ भी वही पहलू है, वे अभी युवा हैं और निशानेबाजी में बने हुए हैं। लिहाजा, उन्हें सम्मानित किए जाने के लिए थोड़ा इंतजार किया जा सकता है। बहरहाल, हकीकत यही है कि इन खिलाडि़यों में भारत रत्न के लिए पहले दावेदार के तौर पर ध्यानचंद कहीं ज्यादा उपयुक्त दिखते हैं। सबसे पहले उन्हें सम्मानित किए जाने से भारत रत्न का गौरव बढ़ेगा।


लेखक प्रदीप कुमार टीवी पत्रकार हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh